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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-71

जय श्री राधे कृष्ण ……. "रामचंन्द्र गुन बरनैं लागा, सुनतहिं सीता कर दुख भागा, लागीं सुनैं श्रवन मन लाई आदिहु तें सब कथा सुनाई….!! भावार्थ:- वे श्री रामचंद्र जी के गुणों का वर्णन करने लगे (जिनके) सुनते ही सीता जी...

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सुविचार

जय श्री राधे कृष्ण ……. "कोई भी परेशानी वास्तव में उतनी बड़ी नहीं होती जितनी हम उसे बार- बार सोचकर बना देते हैं…!! सुप्रभात आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो.....

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-70

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जीति को सकइ अजय रघुराई, माया ते असि रचि नहिं जाई, सीता मन बिचार कर नाना, मधुर बचन बोलेउ हनुमाना l…..!! भावार्थ:- श्री रघुनाथ जी तो सर्वथा अजेय हैं, उन्हें कौन जीत सकता है ?...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-69

जय श्री राधे कृष्ण ……. "तब देखी मुद्रिका मनोहर, राम नाम अंकित अति सुंदर, चकित चितव मुदरी पहिचानी, हरष बिसाद हृदयँ अकुलानी…..!! भावार्थ:- तब उन्होंने राम - नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर अंगूठी देखी । अंगूठी को पहचान...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-68

जय श्री राधे कृष्ण ……. "कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब, जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ…..!! भावार्थ:- तब हनुमान जी ने हृदय में विचार कर (सीता जी के सामने) अंगूठी डाल दी, मानो अशोक ने...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-67

जय श्री राधे कृष्ण ……. "नूतन किसलय अनल समाना, देहि अगिनि जनि करहि निदाना, देखि परम बिरहाकुल सीता, सो छन कपिहि कलप सम बीता….!! भावार्थ:- तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह-रोग का अन्त मत कर...

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सुविचार

जय श्री राधे कृष्ण ……. "अच्छे कर्म भी करने पड़ते है साहब सिर्फ पूजा करने से भगवान नही मिलते। जब कर्म है काला तो क्या करेगी माला….!! सुप्रभात आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो.....

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-66

जय श्री राधे कृष्ण ……. "पावकमय ससि स्रवत न आगी, मानहुँ मोहि जानि हतभागी, सुनहि बिनय मम बिटप असोका, सत्य नाम करु हरु मम सोका….!! भावार्थ:- चंंद्रमा अग्निमय है, किन्तु वह भी मानो मुझे हतभागिनी जान कर आग नहीं बरसाता।...

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सुविचार

जय श्री राधे कृष्ण ……. "अपनी स्वयं की क्षमता से कार्य करना चाहिए , अन्य लोगों की निर्भरता का त्याग तत्काल कर देना चाहिए….!! सुप्रभात आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो.....

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-65

जय श्री राधे कृष्ण ……. "कह सीता बिधि भा प्रतिकूला, मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला, देखिअत प्रगट गगन अंगारा, अवनि न आवत एकउ तारा….!! भावार्थ:- सीता जी (मन ही मन) कहने लगीं - (क्या करूं) विधाता ही विपरीत हो...

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