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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-79

जय श्री राधे कृष्ण ……. "मातु कुसल प्रभु अनुज समेता, तव दुख दुखी सुकृपा निकेता, जनि जननी मानहु जिय ऊना, तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना….!! भावार्थ:- हे माता ! सुंदर कृपा के धाम प्रभु भाई लक्ष्मण जी के सहित...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-78

जय श्री राधे कृष्ण ……. "बचनु न आव नयन भरे बारी, अहह नाथ हौं निपट बिसारी, देखि परम बिरहाकुल सीता, बोला कपि मृदु बचन बिनीता…..!! भावार्थ:- (मुंह से) वचन नहीं निकलता, नेत्रों में (विरह के आंसुओं का) जल भर आया...

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अयोध्या आंदोलन के हनुमान-5 – आचार्य धर्मेंद्र

आचार्य धर्मेंद्र का पूरा जीवन हिंदी, हिंदुत्व और हिन्दुस्तान के उत्कर्ष के लिए समर्पित रहा। अपने पिता महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज के समान उन्होंने भी अपना सम्पूर्ण जीवन भारत माता और उसकी संतानों की सेवा में, अनशनों, सत्याग्रहों, जेल यात्राओं,...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-77

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सहज बानि सेवक सुखदायक, कबहुँक सुरति करत रघुनायक, कबहुँ नयन मम सीतल ताता, होइहहिं निरखि स्याम मृदु गाता…..!! भावार्थ:- सेवक को सुख देना उनकी स्वाभाविक बान है । वे श्री रघुनाथ जी क्या कभी मेरी...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-76

जय श्री राधे कृष्ण ……. "अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी,अनुज सहित सुख भवन खरारी, कोमलचित कृपाल रघुराई, कपि केहि हेतु धरी निठुराई……!! भावार्थ:- मैं बलिहारी जाती हूँ। अब छोटे भाई लक्ष्मण जी सहित खर के शत्रु, सुख धाम प्रभु का...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-75

जय श्री राधे कृष्ण ……. "हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी, सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी, बूड़त बिरह जलधि हनुमाना, भयहु तात मो कहुँ जल जाना……!!. भावार्थ:- भगवान का जन (सेवक) जान कर अत्यंत गाढ़ी प्रीत हो गई । नेत्रों में जल...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-74

जय श्री राधे कृष्ण ……. "नर बानरहि संग कहु कैसें, कही कथा भइ संगति जैसें….!! भावार्थ:- (सीता जी ने पूछा-) नर और वानर का संग कहो कैसे हुआ ? तब हनुमान जी ने जैसे संग हुआ था, वह सब कथा...

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सुविचार

जय श्री राधे कृष्ण ……. "मेंढक को सोने की कुर्सी पर भी बैठा देंगे फिर भी वो छलांग लगा कर दोबारा कीचड़ में ही जायेगा, जिंदगी में कुछ लोग इसी तरह के होते हैं….!! सुप्रभात आज का दिन प्रसन्नता से...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-73

जय श्री राधे कृष्ण ……. "राम दूत मैं मातु जानकी, सत्य सपथ करुणानिधान की, यह मुद्रिका मातु मैं आनी, दीन्हि राम तुम्ह कहं सहिदानी….!! भावार्थ:- (हनुमान जी ने कहा) हे माता जानकी ! मैं श्री राम जी का दूत हूंँ...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-72

जय श्री राधे कृष्ण ……. "श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई, कही सो प्रगट होति किन भाई, तब हनुमंत निकट चलि गयऊ, फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ….!! भावार्थ:- (सीता जी बोलीं-) जिस ने कानों के लिए अमृत रूप यह सुंदर कथा कही...

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