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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-24

जय श्री राधे कृष्ण ……. जानेहिं नहीं मरमु सठ मोरा, मोर अहार जहाँ लगि चोरा, मुठिका एक महा कपि हनी, रुधिर बमत धरनीं ढनमनी…..!! भावार्थ:- हे मूर्ख! तूने मेरा भेद नहीं जाना ? जहां तक (जितने) चोर हैं, वह सब...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-23

जय श्री राधे कृष्ण ……. मसक समान रूप कपि धरी, लंकहि चलेउ सुमिरि नरहरी, नाम लंकिनी एक निसिचरी, सो कह चलेसि मोहि निंदरी……!! भावार्थ:- हनुमान जी मच्छर के समान (छोटा सा) रूप धारण कर नर रूप से लीला करने वाले...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-22

जय श्री राधे कृष्ण ……. पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचार, अति लघु रूप धरौं निसि नगर करौं पइसार….!! भावार्थ:- नगर के बहुसंख्यक रख वालों को देखकर हनुमान जी ने मन में विचार किया कि अत्यंत छोटा रूप,...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-21

जय श्री राधे कृष्ण ……. " मुट्ठी दुआओं की माता-पिता ने चुपके से सिर पर छोड़ दी….खुश रहो… कहकर और हम, नासमझ, जिंदगी भर मुक़द्दर का अहसान मानते रहे…..!! सुप्रभात आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो.....

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-20

जय श्री राधे कृष्ण ……. करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं, कहुँ महिष मानुष धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं, एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही, रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-19

जय श्री राधे कृष्ण ……. बन बाग उपबन बाटिका सर कूप बापीं सोहहीं, नर नाग सुर गंधर्ब कन्या रुप मुनि मन मोहहीं , कहुँ माल देह बिसाल सैल समान अतिबल गर्जहीं, नाना अखारेन्ह भिरहिं बहुबिधि एक एकन्ह तर्जहीं…..!! भावार्थ:- वन...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-18

जय श्री राधे कृष्ण ……. कनक कोट बिचित्र मनि कृत सुन्दरायतना घना , चउहट्ट हट्ट सुबट्ट बीथीं चारु पुर बहु बिधि बना, गज बाजि खच्चर निकर पदचर रथ बरूथन्हि को गनै, बहुरूप निसिचर जूथ अतिबल सेन बरनत नहिं बनै…..!! भावार्थ:-...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-17-A

जय श्री राधे कृष्ण ……. अति उतंग जलनिधि चहु पासा, कनक कोट कर परम प्रकासा……!! भावार्थ:- वह अत्यंत ऊंचा है। उसके चारों ओर समुद्र हैं । सोने के परकोटे (चहारदीवारी) का परम प्रकाश हो रहा है…..!! सुप्रभात आज का दिन...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-17

जय श्री राधे कृष्ण ……. *उमा न कछु कपि कै अधिकाई, प्रभु प्रताप जो कालहि खाई, गिरि पर चढ़ि लंका तेहिं देखी, कहि न जाइ अति दुर्ग बिसेषी…!! भावार्थ:- (शिव जी कहते हैं) हे उमा! इसमें वानर हनुमान की कुछ...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-16

जय श्री राधे कृष्ण ……. नाना तरु फल फूल सुहाए, खग मृग बृंद देखि मन भाए, सैल बिसाल देखि एक आगें, ता पर धाइ चढ़ेउ भय त्यागें……!! भावार्थ:- अनेकों प्रकार के वृक्ष फल - फूल से शोभित हैं। पक्षी और...

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