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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-162

जय श्री राधे कृष्ण ……. "चलत मोहि चूड़ामणि दीन्ही, रघुपति हृदयँ लाइ सोइ लीन्ही, नाथ जुगल लोचन भरि बारी, बचन कहे कछु जनक कुमारी ।। भावार्थ:- चलते समय उन्होंने मुझे चूड़ामणि (उतार कर) दी । श्री रघुनाथ जी ने उसे...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-161

जय श्री राधे कृष्ण ……. "नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट, लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ।। भावार्थ:- (हनुमान जी ने कहा), आप का नाम रात-दिन पहरा देने वाला है, आप का ध्यान ही किंवाड़ है...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-160

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सुनत कृपानिधि मन अति भाए, पुनि हनुमान हरषि हियँ लाए, कहहु तात केहि भाँति जानकी, रहति करति रच्छा स्वप्रान की ।। भावार्थ:- (वे चरित्र) सुनने पर कृपानिधि श्री रामचन्द्र जी के मन को बहुत ही...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-159

जय श्री राधे कृष्ण ……. "नाथ पवनसुत कीन्हि जो करनी, सहसहुँ मुख न जाइ सो बरनी, पवनतनय के चरित सुहाए, जामवंत रघुपतिहि सुनाए ।। भावार्थ:- हे नाथ! पवन पुत्र हनुमान ने जो करनी की, उसका हजार मुखों से भी वर्णन...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-158

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सोइ बिजई बिनई गुन सागर, तासु सुजसु त्रैलोक उजागर, प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू, जन्म हमार सुफल भा आजू ।। भावार्थ:- वही विजयी है, वही विनयी है और वही गुणों का समुद्र बन जाता...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-157

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जामवंत कह सुनु रघुराया, जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया, ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर, सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर !! भावार्थ:- जामवंत ने कहा - हे रघुनाथ जी! सुनिए । हे नाथ !...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-156

जय श्री राधे कृष्ण ……. "प्रीति सहित सब भेंटे रघुपति करुना पुंज, पूछी कुसल नाथ अब कुसल देखि पद कंज ।। भावार्थ:- दया की राशि श्री रघुनाथ जी सबसे प्रेम सहित गले लग कर मिले और कुशल पूछी । वानरों...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-155

जय श्री राधे कृष्ण ……. "राम कपिन्ह जब आवत देखा, किएँ काजु मन हरष बिसेषा, फटिक सिला बैठे द्वौ भाई, परे सकल कपि चरनन्हि जाई ।। भावार्थ:- श्री राम जी ने जब वानरों को कार्य किए हुए आते देखा तब...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-154

जय श्री राधे कृष्ण ……. "नाथ काजु कीन्हेउ हनुमाना, राखे सकल कपिन्ह के प्राना, सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ, कपिन्ह सहित रघुपति पहिं चलेऊ ।। भावार्थ:- हे नाथ! हनुमान ने ही सब कार्य किया और सब वानरों के प्राण बचा...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-154

जय श्री राधे कृष्ण ……. "आइ सबन्हि नावा पद सीसा, मिलेउ सबन्हि अति प्रेम कपीसा, पूँछी कुसल कुसल पद देखी, राम कृपाँ भा काजु बिसेषी ।। भावार्थ:- सबने आ कर सुग्रीव के चरणों में सिर नवाया । कपिराज सुग्रीव सभी...

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