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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-65

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जय श्री राधे कृष्ण …….

कह सीता बिधि भा प्रतिकूला, मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला, देखिअत प्रगट गगन अंगारा, अवनि न आवत एकउ तारा….!!

भावार्थ:- सीता जी (मन ही मन) कहने लगीं – (क्या करूं) विधाता ही विपरीत हो गया। ना आग मिलेगी, ना पीड़ा मिटेगी। आकाश में अंगारे प्रगट दिखाई दे रहे हैं, पर पृथ्वी पर एक भी तारा नहीं आता…!!

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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