lalittripathi@rediffmail.com
Stories

कर्मो का लेखा – जोखा

328Views

कर्मो का लेखा – जोखा

बेटा बन कर,बेटी बनकर,दामाद बनकर,और बहु बनकर कौन आता है ? जिसका तुम्हारे साथ कर्मों का लेना देना होता है। लेना देना नहीं होगा तो नहीं आयेगा। एक फौजी था। उसके मां बाप नहीं थे। शादी नहीं की,बच्चे  नहीं ,भाई नहीं, बहन नहीं, अकेला ही कमा कमा के फौज में जमा करता जा रहा था। थोड़े दिन में एक सेठ जी जो फौज में माल सप्लाई करते थे उनसे उनका परिचय हो गया और दोस्ती हो गई । सेठ जी ने कहा जो तुम्हारे पास पैसा है वो उतने के उतने ही पड़ा हैं । तुम मुझे दे दो मैं कारोबार में लगा दूं तो पैसे से पैसा बढ़ जायेगा इसलिए तुम मुझे दे दो। फौजी ने सेठ जी को पैसा दे दिया। सेठ जी ने कारोबार में लगा दिया। कारोबार उनका चमक गया, खूब कमाई होने लगी कारोबार बढ़ गया। थोड़े ही दिन में लड़ाई छिड़ गई।

लड़ाई में फौजी घोड़ी पर चढ़कर लड़ने गया। घोड़ी इतनी बदतमीज थी कि जितनी ज़ोर- ज़ोर से लगाम खींचे उतनी ही तेज़ भागे। खीेंचते खींचते उसके गल्फर तक कट गये लेकिन वो दौड़कर दुश्मनों के गोल घेरे में जाकर खड़ी हो गई। दुश्मनों ने एक ही वार किया,और फौजी मर गया घोड़ी भी मर गई। अब सेठ जी को मालूम हुआ कि फौजी मर गया, तो सेठ जी बहुत खुश हुए कि उसका कोई वारिस तो है नहीं अब ये पैसा किसीको नही देना पड़ेगा। अब मेरे पास पैसा भी हो गया कारोबार भी चमक गया लेने वाला भी नहीं रहा तो सेठ जी बहुत खुश हुए।  कुछ ही दिन के बाद सेठ जी के घर में लड़का पैदा हो गया अब सेठ जी और खुश कि भगवान की बड़ी दया है। खूब पैसा भी हो गया कारोबार भी हो गया लड़का भी हो गया लेने वाला भी मर गया, सेठ जी बहुत खुश हुए। वो लड़का होशियार था पढ़ने में समझदार था। सेठ जी ने उसे पढ़ाया लिखाया जब वह पढ़ लिखकर बड़ा हो गया तो सोचा कि अब ये कारोबार सम्हाल लेगा चलो अब इसकी शादी कर दें।

शादी करते ही घर में बहुरानी आ गई। अब उसने सोचा कि चलो बच्चे की शादी हो गई अब कारोबार सम्हाल लेगा। लेकिन कुछ दिन में बच्चे की तबियत खराब हो गई। अब सेठ जी डाॅक्टर के पास हकीम के पास वैद्य के पास दौड़ रहे हैं। वैद्य जी जो भी दवा खिला रहे हैं वह दवा असर नहीं कर रही ,बीमारी बढ़ती ही जा रही। पैसा बरबाद हो रहा है और बीमारी बढ़ती ही जा रही है रोग कट नहीं रहा पैसा खूब लग रहा है। अन्त में डाॅक्टर ने कह दिया कि मर्ज़ लाइलाज हो गया।इसको अब असाध्य रोग हो गया ये बच्चा दो दिन में मर जायेगा। डाॅक्टरों के जवाब देने पर सेठ जी निराश होकर बच्चे को लेकर रोते हुए आ रहे थे रास्ते में एक आदमी मिला। कहा अरे सेठ जी क्या हुआ बहुत दुखी लग रहे हो। सेठ जी ने कहा ये बच्चा जवान था हमने सोचा बुढ़ापे में मदद करेगा। अब ये बीमार हो गया। बीमार होते ही हमने इसके इलाज के लिये खूब पैसा खर्च किया जिसने जितना मांगा उतना दिया। लेकिन आज डाॅक्टरों ने जवाब दे दिया अब ये बचेगा नहीं। असाध्य रोग हो गया लाइलाज मर्ज़ है। अब ले जाओ घर दो दिन में मर जायेगा।

आदमी ने कहा अरे सेठ जी तुम क्यों दिल छोटा कर रहे हो। मेरे पड़ोस में वैद्य जी दवा देते हैं। दो आने की पुड़िया खाकर मुर्दा भी उठकर खड़ा हो जाता है। जल्दी से तुम वैद्य जी की दवा ले आओ। सेठ जी दौड़कर गये दो आने की पुड़िया ले आये और पैसा दे दिया। दवाई की पुड़िया बच्चे को खिलाई बच्चा पुड़िया खाते ही मर गया। अब सेठ जी रो रहे हैं, सेठानी भी रो रही और घर में बहुरानी और पूरा गांव भी रो रहा । गांव में शोर मच गया कि बहुरानी की कमर जवानी में टूट गई सब लोग रो रहे हैं। तब तक एक महात्मा जी आ गये। उन्होनें कहा भाई ये रोना धोना क्यों हैं। लोग बोले इस सेठ का एक ही जवान लड़का था वो भी मर गया, इसलिए सब लोग रो रहे हैं। सब दुखी हो रहे हैं। महात्मा बोले सेठ जी रोना क्यों ?…..सेठ : महाराज जिसका जवान बेटा मर जाये वो रोयेगा नहीं तो क्या करेगा। ?

महात्मा:- तो आपको क्यों रोना। सेठ:- मेरा बेटा मरा तो और किसको रोना। महात्मा :- उस दिन तो आप बड़े खुश थे। सेठ : किस दिन?….. महात्मा:- फौजी ने जिस दिन पैसा दिया था। सेठ : हाँ कारोबार के लिए पैसा मिला था तो खुशी तो थी। महात्मा:- और उस दिन तो आपकी खुशी का ठिकाना ही नहीं था। सेठ : किस दिन ?…..महात्मा : अरे जिस दिन फौजी मर गया। सोचा कि अब तो पैसा भी नहीं देना पड़ेगा। माल बहुत हो गया कारोबार खूब चमक गया अब देना भी नहीं पड़ेगा बहुत खुश थे।

सेठ : हां महाराज खुश तो था। महात्मा:- और उस दिन तो आपकी खुशी का ठिकाना ही न था पता नहीं कितनी मिठाईयां बँट गईं। सेठ : किस दिन ?…महात्मा : अरे जिस दिन लड़का पैदा हुआ था। सेठ : महाराज लड़का पैदा होता है तो सब खुश होते हैं मैं भी हो गया तो क्या बात। ?

महात्मा : उस दिन तो खुशी से आपके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ते थे । सेठ : किस दिन ?……महात्मा : अरे जिस दिन बेटा ब्याहने जा रहे थे। सेठ : महाराज बेटा ब्याहने जाता है तो हर आदमी खुश होता है तो मैं भी खुश हो गया। महात्मा:- तो जब इतनी बार खुश हो गए तो ज़रा सी बात के लिए रो क्यों रहे हो। ?….. सेठ : महाराज ये ज़रा सी बात है। जवान बेटा मर गया ये ज़रा सी बात है।

महात्मा : अरे सेठ जी वहीं फौजी पैसा लेने के लिए बेटा बन कर आ गया। पढ़ने में लिखने में खाने में पहनने में और शौक मेें श्रृंगार में जितना लगाना था लगाया। शादी ब्याह में सब लग गया। और ब्याज दर ब्याज लगाकर डाक्टरों को दिलवा दिया। अब जब दो आने पैसे बच गये वो भी वैद्य जी को दिलवा दिये और पुड़िया खाकर चल दिया। अब कर्मो का लेना देना पूरा हुआ। सेठ जी ने कहा हमारे साथ तो कर्मो का लेन देन था। चलो हमारे साथ तो जो हुआ सो हुआ। लेकिन वो जवान बहुरानी घर में रो रही है जवानी में उसको धोखा देकर विधवा बनाकर चला गया उसका क्या जुर्म था कि उसके साथ ऐसा गुनाह किया। ?…. महात्मा बोले यह वही घोड़ी है। जिसने जवानी में उसको धोखा दिया। इसने भी जवानी में उसको धोखा दे दिया।

यही कहानी हम सभी की है, जो हमने बोया था वही हमें मिल रहा है। इसलिए किसी को दोष मत देना, दोषी मत देखना, हमारा ही स्वयं का दोष है। इन्द्रियों की हर क्रिया मे और मन के विकल्पों के बहते प्रवाह के काल मे उसके मात्र ज्ञाता दृष्टा रहकर अपने स्वभाव मे रहने का पुरुषार्थ करना ही हमारा एकमात्र कर्तव्य है।आगम, वेद, शास्त्र व पुराणों के साथ साथ सभी साधु संतों का कहना है कि यह संसार कर्मों का लेखा जोखा है इसमें जो जीव चैतन्य (आत्मा) के, स्वयं के स्वरूप, स्वभाव को जान लेगा वो समझदारी से भव सागर पार हो जाएगा..!!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

2 Comments

Leave a Reply