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आचरण और व्यवहार हमारा सबसे बड़ा परिचय है

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आचरण और व्यवहार हमारा सबसे बड़ा परिचय है

शेर की गर्जना सदियों पहले जैसी बनी हुई है। भैंसा आज भी हजार वर्ष पहले जैसा है। गुस्सा आता है तो वह किसी को भी मार डालता है। सांप पहले जैसे फुफकारता और डंसता था, आज भी उसी तरह करता है। इन सबके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया। केवल मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो अपने व्यवहार में परिवर्तन कर सकता है। मनुष्य भटका हुआ देवता है। यदि उसे सही राह पर चलाने के लिए कोई कुशल गाइड मिल जाए तो वह अपनी असाधारण ऊंचाई और सामर्थ्य से हर किसी को चमत्कृत कर सकता है। लेकिन अक्सर हम अपने सुखों और छोटे स्वार्थों की दौड़ में विचलित हो जाते हैं। जीवन के सबसे महत्वपूर्ण कार्य, अपने आचरण यानी चरित्र निर्माण को भुला बैठते हैं।

राम का स्मरण करते ही मर्यादा मूर्तिमान हो जाती है। सीता और हनुमान का नाम आते ही पवित्रता और भक्ति की अनुभूति होने लगती है। दान का प्रसंग छिड़ते ही कर्ण की छवि उभरती है। क्या हमने भी अपनी कोई ऐसी पहचान बनाई है? प्राचीन काल जैसी सत्य-निष्ठा आज हममें नहीं है। पहले इंसान घबराता था कि उस से कोई बुरा काम न हो जाए, कहीं उसे झूठ न बोलना पड़े। आज यह निष्ठा समाप्त हो गई है। आज जो झूठ बोल सकता है, बात को छिपा सकता है, वही अधिक कुशल और व्यवहारिक माना जाता है। इस प्रवृत्ति ने हमारी संपूर्ण आस्था को आंदोलित कर दिया है।

आदमी का भरोसा कहीं जम नहीं पा रहा है, क्योंकि हम अपने जीवन मूल्यों को आचरण में लाना भूलते गए हैं। हमारे जीने का तरीका ही हमारी सबसे बड़ी पहचान है। हमारी संपदा है- हमारा चरित्र। यही आचरण और व्यवहार हमारा सबसे बड़ा परिचय है। हम एक ओर तो शांति के लिए आकाश में कबूतर उड़ाते हैं और दूसरी तरफ इंसान के विनाश के लिए घातक शस्त्रों का निर्माण करते रहते हैं।

यही वजह है कि हम ऊपरी तौर पर विकास के नए-नए कार्तिमान तो बनाते रहते हैं, लेकिन हमारा और हमारे समाज का नैतिक मूल्यों का ग्राफ पतन की निचली सतह तक पहुंचता जा रहा है। जानकारियों के बीच खड़े मानव के पास समझ के मीठे जल का एक लोटा भी नहीं है। इसका परिणाम गंभीर मनोरोगों से लेकर कलह, अशांति और गहन विषाद के रूप में सामने आ रहा है। जीवन में अराजकता फैल गई है। मन पर व्याकुलता छा गई है। सुख के समय अनीति के मार्ग पर दौड़ते रह कर, दुख के समय में जीवन समाप्त करने वाले कायरों की संख्या हर रोज बढ़ रही है। कहीं ऐसा न हो कि जिस मनुष्य की प्रगति के लिए हम बड़े-बड़े मॉल, सड़कें और आधुनिक सुविधाओं से युक्त भवन बना रहे हैं, आचरण के अभाव में उनमें रहने वाला मनुष्य ही पीछे छूट जाए।

मनुष्य के सर्वागीण विकास में उसके आचरण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अच्छा आचरण उसे परिवार व समाज में विशेष स्थान दिलाता है। सदाचारी व्यक्ति का सभी आदर करते हैं तथा वह सभी के लिए प्रिय होता है। सदाचरण के बिना किसी भी समाज में मनुष्य प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं कर सकता।

सदाचारी होने के लिए यह आवश्यक है कि वह दुर्गुणों से बचे तथा सद्गुणों को अपनाए। हमें सदैव सत्यवादी होना चाहिए। सभी मनुष्यों में एक-दूसरे के प्रति ईष्र्या व घृणा का भाव नहीं होना चाहिए। मनुष्य का दूसरों के प्रति घृणा व ईष्र्या का भाव, दूसरे के प्रति अलगाव उत्पन्न करता है, परंतु सदाचरण से दूसरों के हृदय में विशेष स्थान पाया जा सकता है। सदाचरण से परस्पर प्रेम व आदर-भाव बढ़ता है। मनुष्य को दूसरों के प्रति कभी भी इस प्रकार का व्यवहार नहीं करना चाहिए, जिसे वह स्वयं के लिए पसंद नहीं करता हो। उसे दूसरों के प्रति नम्रता का व्यवहार रखना चाहिए। नम्र व्यवहार रखने के लिए किसी प्रकार की धन की आवश्यकता नहीं होती, परंतु यह सत्य है कि नम्रता के दोबारा दूसरों के हृदय पर स्थायी प्रभाव डाला जा सकता है।

सदाचारी व्यक्ति किसी भी कमजोर व वृद्ध की उपेक्षा नहीं करता है। वह यथासंभव उनकी मदद करता है। अपने से कमजोर व्यक्ति को वह यथोचित रूप में सहयोग कर उसे साम‌र्थ्यवान देखना चाहता है। वृद्ध के प्रति वह सदैव आदर-भाव रखता है तथा उनकी आवश्यकताओं के प्रति जागरूक रहता है। छात्रों के लिए सदाचरण से तात्पर्य है कि वे अपने माता-पिता व गुरुजी का आदर करें तथा उनकी आज्ञा का पालन करें। अपने से कमजोर छात्रों तथा दीन-दुखियों की मदद करें। परस्पर ईष्र्या-भाव को त्याग कर मेलजोल से रहें। यदि कोई उनकी किसी प्रकार से सहायता करता है तो उसके प्रति धन्यवाद का भाव रखें। इसके अतिरिक्त यह आवश्यक है कि मित्रों, संबंधियों व अन्य व्यक्तियों से बातचीत करते समय हमारी भाषा स्पष्ट, शुद्ध व मधुर हो, ताकि दूसरों को वह अप्रिय न लगे। वाणी की तीव्रता इतनी हो कि सामने वाला व्यक्ति आपकी बात को स्पष्ट रूप से सुन सके। यदि कोई हमारे प्रति कटु शब्द का प्रयोग करता है तो ऐसी परिस्थिति में भी हमें अपना आपा नहीं खोना चाहिए। मधुरता, प्यार, सहयोग व अपनेपन के दोबारा कठोर से कठोर हृदय पर भी विजय पाई जा सकती है। सदाचारी व्यक्ति सदैव दूसरों के प्रति सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करता है। सभी परिस्थितियों में वह अपने सभी कर्तव्यों का निर्वाह करने का यथासंभव प्रयास करता है। वह ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था रखता है तथा स्वयं के लिए, अपने परिवारजनों व समस्त मानव जाति के कल्याण व उत्थान के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है। जीवनपर्यत सदाचरण में रहने वाला व्यक्ति जहां भी जाता है अपना एक अमिट प्रभाव छोड़ जाता है। वह सभी के लिए प्रिय एवं सम्मान का पात्र होता है। सदाचारी व्यक्ति अपने अच्छे आचरण से स्वयं का ही नहीं अपितु अपने माता-पिता, वंश व राष्ट्र का नाम ऊंचा करता है।

कृष्ण के ही कारण उनके माता-पिता व उनके वंश को प्रसिद्धि मिली। आदर्श पुत्र राम के कारण उनके माता-पिता धन्य हो गए..!!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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