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सुपरहीरो

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सुपरहीरो

“सर कुछ काम नहीं है तो आज मैं थोड़ा जल्दी निकल जाऊं ।” एक घंटे से कुर्सी पर बैठे घड़ी की सुइयां देख रहे रघु ने प्रकाश के कैबिन में घुसते हुए कहा ।  “यार रघु, बस ये फाइल गुप्ता जी के ऑफिस में दे देना फिर तुम उधर से ही निकल जाना ।” प्रकाश ने भी एक नज़र घड़ी पर मारी और जवाब दिया । “ठीक है सर ।” “और सुनो, जाने से पहले एक कप चाय पिला दो यार, सिर फटा जा रहा है ।” रघु निकल ही रहा था कि प्रकाश ने एक और काम बता दिया उसे । “ठीक सर, अभी लाया ।”…. थोड़ी देर में रघु चाय बना कर ले आया । उसने चाय प्रकाश को दी और फाइल लेकर निकल पड़ा । हालांकि फाइल गुप्ता जी के ऑफिस तक पहुंचाना कोई आसान काम नहीं था । रघु को वहां जाने में आधा घंटा लगता और फिर वापस आ कर घर जाने में आधा घंटा और । वो लगातार अपनी घड़ी देखे जा रहा था ।  जैसे तैसे वो अपनी साइकिल खींचता हुआ गुप्ता जी के ऑफिस पहुंचा, फाइल रखी और वहां से चलने लगा ।

“अरे रघु, यार रहीम आज छुट्टी पर है और कुछ क्लाइंट्स आने वाले हैं । ज़रा  ये समान ला दो मार्किट से ।” गुप्ता जी ने एक और काम फ़र्मा दिया था रघु को उसने घड़ी की तरफ देखा 5.45 हो चुके थे । देर हो रही थी मगर वो गुप्ता जी को ना भी नहीं कह सकता था । मजबूरी में उसे जाना पड़ा ।  आधा घंटा लग गया उसे समान लेकर लौटने में । उसने जल्दी से समान रखा और वहां से निकलने लगा तभी गुप्ता जी बोले “रघु थोड़ी देर रुक जाओ । क्लाइंट्स के रहते कुछ ज़रूरत पड़ सकती है । यकीन रखो तुम्हें निराशा नहीं होगी दोस्त ।” रघु ने एक बार फिर से घड़ी की तरफ देखा । हालांकि वो जानता था गुप्ता जी दिलेर आदमी हैं । काम के बदले में वो कुछ ना कुछ तो ज़रूर देंगे । लेकिन अभी उसके लिए पैसे से भी ज़रूरी कुछ था । “वो बात नहीं है सर । आज ज़रा जल्दी घर जाना था ।” “समझ सकता हूं भाई लेकिन अभी मैं किसी और को बुला भी नहीं सकता और ये क्लाइंट बहुत ज़रूरी हैं । इनके स्वागत में कमी नहीं करना चाहता मैं । देख लो अगर रुक सको तो अहसान होगा तुम्हारा । मैं सच में निराश नहीं करूंगा तुम्हें ।” गुप्ता जी को काम करवाना अच्छे से आता है और रघु तो वैसे भी दो मीठे शब्दों का भूखा रहा है हमेशा से । उसने कुछ सोचा और फिर उसे बात माननी ही पड़ी गुप्ता जी की ।

कुछ ही देर में उनके क्लाइंट्स आ गये और उनकी पार्टी शुरू हो गई । देखते देखते 2 घंटे बीत गए । इस बीच रघु को कई बार बाज़ार दौड़ना पड़ा था । 8.30 हो चुके थे । गुप्ता जी ने रघु की तरफ देखा और फिर उसे बाहर ले गए । “मुझे लगता है अब कुछ चाहिए नहीं होगा । तो तुम जा सकते हो । वैसे भी बहुत समय ले लिया तुम्हारा शुक्रिया इतना कहते हुए गुप्ता जी ने रघु के हाथ में 500 का नोट थमा दिया । रघु ने मुस्कुराते हुए उनका धन्यवाद किया और एक बार घड़ी की तरफ फिर से देखते हुए वहां से निकल गया ।

वो मार्किट में कुछ देर रुका और फिर 10 बजे तक घर पहुंचा । दरवाजा खटखटाया तो रोशनी ने दरवाजा खोला उसके चेहरे पर नाराजगी झलक रही थी  “अरे ऐसे मत देखो, बुरा फंस गया था । गुप्ता जी के यहां रुकना पड़ गया ।।     ” रघु ने घर में घुसते हुए हाथ में पकड़े लिफाफे एक तरफ रखे और जूते उतारते हुए अपनी सफाई देने लगा । “जल्दी आ जाते तो सब साथ में खाना खा लेते ?” “क्या हुआ ? सो गया क्या ?”……”हां काफ़ी देर पूछता रहा पापा कब आएंगे, फिर टीवी देखते देखते सो गया  ये सब क्या है ?” रोशनी ने लिफाफों को देखते हुए पूछा ।  “सब तुम्हें ही बता दें ?” रोशनी ने तब तक लिफाफे में देख लिया था । “अरे वाह, मगर आप तो कह रहे थे फिज़ूलखर्ची है ?”  ….”है तो लेकिन अब साल में उसकी एक मांग भी पूरी ना कर सकें तो कमाने पर लानत है ।”

“अच्छा अब डयलॉग ना मारिए । चल के उसे उठाने की कोशिश करते हैं । वैसे उम्मीद कम ही है क्योंकि वो ढीठ है आपकी तरह ही । एक बार सो गया तो फिर उठता नहीं ।” “चलो तो देखते हैं ज़्यादा ढीठ कौन है उसे जगाने वाला बाप या वो खुद ।” दोनों मुस्कुराए और कमरे की तरफ बढ़ गए । “सोमू, ए सोमू । उठ तो, पापा आ गए ।” “मां, सोने दो ना ।” “ए बेटा देख तो सही पापा क्या लाए हैं ।” “नहीं देखना ना अभी । सुबह देख लूंगा ।” “ठीक है तो मत देख । जा रहा हूं मैं ये लेकर ।” रघु कमरे से जाने लगा ।  “क्या है पापा ?” रघु के जाने ए पहले सोमू आंख मलता हुआ उठकर बैठ गया था ।  रघु ने एक बड़ा सा लिफ़ाफ़ा खोला और उसमें से एक केक निकालते हुए बोला “हैप्पी बड्डे बेटा ।” इसके बाद रोशनी और रघु दोनों उसे बड्डे विश करने लगे । सोमू केक देख कर ऐसे खुश हुआ कि ना जाने क्या मिल गया हो उसे । काफ़ी महीने पहले से ही वो अपनी क्लास के दोस्तों के किस्से सुनाता रहता था कि किसने अपने जन्म दिन पर कैसे केक काटा ।

रोशनी भी महीने भर पहले से रघु को कह रही थी कि इस बार सोमू के जन्मदिन पर केक काटेंगे लेकिन रघु ये कह कर मना कर देता कि 300-400 का केक आता है, बेकार में इतने पैसे क्यों बर्बाद करने । वो भले ही ऐसा कहता था लेकिन उसने मन ही मन सोच लिया था कि इस बार वो बेटे की ये इच्छा ज़रूर पूरी करेगा । हालांकि बेटे को हैसीयत से ज़्यादा महंगे स्कूल में पढ़ाने और घर का खर्च निकालने के बाद उसके हाथ में कुछ बचता नहीं था लेकिन इस बार उसने इतने पैसे अलग से निकाल लिए थे  । इसके बाद आज गुप्ता जी के दिए पैसों से और आसानी हो गई थी । रघु ने दूसरे लिफाफे भी खोले । उनमें खाने पीने का सामान और एक सोमू के पसंद की ड्रेस थी । सोमू की तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था । वो बार बार अपने पिता को गौर से देख रहा था । ज़माने के लिए एक नौकर जो दूसरों का आदेश मानता है, चाय बनाता है जूठे बर्तन धोता है वो रघु अपने बेटे की नज़रों में हीरो है । शायद यही हीरो बनने के लिए वो ये काम करता है ।

बच्चे सुपरहीरोज़ के बारे में बाद में जानते हैं लेकिन उनका पहला हीरो उनके पिता ही होते हैं फिर भले वे किसी दफ्तर के चपरासी हों या फिर अधिकारी । और इधर एक पिता की ज़िंदगी खुद को अपने बच्चों की नज़र में हीरो बनाए रखने में ही निकल जाती है ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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