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संवेदना और स्वार्थ

संवेदना और स्वार्थ एक ब्राह्मण को विवाह के बहुत सालों बाद पुत्र हुआ! लेकिन कुछ वर्षों बाद बालक की असमय मृत्यु हो गई! ब्राह्मण शव लेकर श्मशान पहुंचा! वह मोहवश उसे दफना नहीं पा रहा था. उसे पुत्र प्राप्ति के...

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मिट्टी का दिया

मिट्टी का दीया काशी के पास गंगा किनारे एक छोटा-सा आश्रम था। वहाँ रहते थे गुरु वेदांतानंद। उनके पास शिष्यों की भीड़ नहीं थी, सिर्फ़ एक शिष्य था – गिरधारी लाल। गिरधारी लाल बहुत बुद्धिमान था, वेद-उपनिषद कंठस्थ कर लेता...

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वास्तविक सौंदर्य

वास्तविक सौंदर्य बाहर से रुपवान होना बड़ी बात नहीं है अपितु भीतर से गुणवान होना बहुत बड़ी बात है। केवल बाहरी सौंदर्य ही श्रीकृष्ण को श्रीकृष्ण नहीं बनाता अपितु  उनकी उदारता और उनकी कारुण्यता ही उन्हें सहज आकर्षक बनाती है।...

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मंथरा के षड्यंत्र

मंथरा के षड्यंत्र मंथरा ने अनेकों बार श्री राम के विरुद्ध षड्यंत्र किये थे….मंथरा रामायण की एक महत्वपूर्ण और कदाचित सबसे घृणित पात्र मानी जाती है। घृणित इसलिए क्यूँकि उसी के कहने पर कैकेयी ने श्रीराम के लिए 14 वर्षों...

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दृष्टिकोण

दृष्टिकोण एक छह साल के बच्चे को गणित पढ़ाने वाली एक शिक्षिका ने पूछा, "अगर मैं आपको एक सेब और एक सेब और फिर एक सेब दूं, तो आपके पास आपके बैग में कितने सेब होंगे" कुछ पल के भीतर...

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जब भी मन उदास हो, अशांत हो

जब भी मन उदास हो, अशांत हो जब भी आपको कुछ भी अच्छा न लगे या मन में अजीब से विचार आने लगे तो आप उस वक़्त बस सिर्फ शांत रहें। किसी से कुछ भी न बोले। एक कोने में...

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हृदय और हाथ

हृदय और हाथ बागेश्वर धाम मंदिर का परिसर भक्तों से धीरे–धीरे भरने लगा था। सुबह की पहली किरण जब मंदिर के सुनहरे कलश को छूकर लौटी, तो ऐसा लगा मानो आज का दिवस किसी विशेष महोत्सव की आभा लिए हुए...

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सनातन धर्म की सीख-दुष्ट को कभी छोड़ो मत, चाहे अपनी गेंद फेंक कर ही विवाद मोल क्यों न लेना पड़े

सनातन धर्म की सीख-दुष्ट को कभी छोड़ो मत, चाहे अपनी गेंद फेंक कर ही विवाद मोल क्यों न लेना पड़े क्या गेंद यूँ ही यमुना में चली गयी थी या फिर श्रीकृष्ण ने जानबूझकर गेंद यमुना में फेंकी थी..? श्रीकृष्ण...

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ईश्वर पर छोड़ दो..….सुख पाओगे

ईश्वर पर छोड़ दो..….सुख पाओगे एक बहुत अरबपति महिला ने एक गरीब चित्रकार से अपना चित्र बनवाया, पोट्रट बनवाया। चित्र बन गया, तो वह अमीर महिला अपना चित्र लेने आयी। वह बहुत खुश थी। चित्रकार से उसने कहा, कि क्या...

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मर्यादा की डोर

मर्यादा की डोर सुबह का समय था। कॉलेज का गेट खुल चुका था और छात्र-छात्राओं की भीड़ अंदर जा रही थी। हर दिन की तरह आज भी प्रोफेसर अभय कस्वां अपनी कक्षा की ओर बढ़ रहे थे। रास्ते में उनकी...

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