सुविचार-सुन्दरकाण्ड-172
जय श्री राधे कृष्ण ……. "बार बार प्रभु चहइ उठावा, प्रेम मगन तेहि उठब न भावा, प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा, सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा ।। भावार्थ:- प्रभु उनको बार - बार उठाना चाहते हैं, परन्तु प्रेम में...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "बार बार प्रभु चहइ उठावा, प्रेम मगन तेहि उठब न भावा, प्रभु कर पंकज कपि कें सीसा, सुमिरि सो दसा मगन गौरीसा ।। भावार्थ:- प्रभु उनको बार - बार उठाना चाहते हैं, परन्तु प्रेम में...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत, चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत ।। भावार्थ:- प्रभु के वचन सुनकर और उनके (प्रसन्न) मुख तथा (पुलकित) अंगों को देख कर हनुमान जी हर्षित हो गये...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं, देखेउँ करि बिचार मन माहीं, पुनि पुनि कपिहि चितव सुरत्राता, लोचन नीर पुलक अति गाता ।। भावार्थ:- हे पुत्र! सुन, मैंने मन में (खूब) विचार कर के देख लिया...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "सुनु कपि तोहि समान उपकारी, नहिं कोउ सुर नर मुनि तनुधारी, प्रति उपकार करौं का तोरा, सनमुख होइ न सकत मन मोरा ।। भावार्थ:- (भगवान कहने लगे) हे हनुमान! सुन तेरे समान मेरा उपकारी देवता,...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई, जब तव सुमिरन भजन न होई, केतिक बात प्रभु जातुधान की, रिपुहि जिति आनिबी जानकी ।। भावार्थ:- हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु! विपत्ति तो वही (तभी) है जब आप...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "सुन सीता दुख प्रभु सुख अयना,भरि आए जल राजिव नयना, बचन काय मन मम गति जाही,सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही ।। भावार्थ:- सीता जी का दु:ख सुन कर सुख के धाम प्रभु के कमल नेत्रों...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "सीता कै अति बिपति बिसाला, बिनहिं कहें भलि दीनदयाला ।। भावार्थ:- सीता जी की विपत्ति बहुत बड़ी है । हे दीनदयालु! वह बिना कही ही अच्छी है (कहने से आपको बडा़ क्लेश होगा) ।। निमिष...
आचरण और व्यवहार हमारा सबसे बड़ा परिचय है शेर की गर्जना सदियों पहले जैसी बनी हुई है। भैंसा आज भी हजार वर्ष पहले जैसा है। गुस्सा आता है तो वह किसी को भी मार डालता है। सांप पहले जैसे फुफकारता...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "बिरह अगिनि तनु तूल समीरा, स्वास जरइ छन माहिं सरीरा, नयन स्त्रवहिं जलु निज हित लागी, जरैं न पाव देह बिरहागी ।। भावार्थ:- विरह अग्नि है, शरीर रुई है, और श्वास पवन है, इस प्रकार...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "अवगुन एक मोर मैं माना, बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना, नाथ सो नयनन्हि को अपराधा, निसरत प्रान करहिं हठि बाधा ।। भावार्थ:- हाँ, एक दोष मैं अपना अवश्य मानती हूँ कि आपका वियोग होते ही...