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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-193

जय श्री राधे कृष्ण ……. "समुझत जासु दूत कइ करनी, स्त्रवहिं गर्भ रजनीचर घरनी, तासु नारि निज सचिव बोलाई, पठवहु कंत जो चहहु भलाई|| भावार्थ:- जिनके दूत की करनी का विचार करते ही (स्मरण आते ही) राक्षसों की स्त्रियों के...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-192

जय श्री राधे कृष्ण ……. "रहसि जोरि कर पति पग लागी, बोली बचन नीति रस पागी, कंत करष हरि सन परिहरहू, मोर कहा अति हित हियँ धरहू ।। भावार्थ:- वह एकांत में हाथ जोड़ कर पति (रावण) के चरणों लगी...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-191

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जासु दूत बल बरनि न जाई, तेहि आएँ पुर कवन भलाई, दूतिन्ह सन सुनि पुरजन बानी, मंदोदरी अधिक अकुलानी ।। भावार्थ:- जिस के दूत के बल का वर्णन नहीं किया जा सकता, उसके स्वयं नगर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-190

जय श्री राधे कृष्ण ……. "उहाँ निसाचर रहहिं ससंका, जब तें जारि गयउ कपि लंका, निज निज गृह सब करहिं बिचारा, नहिं निसिचर कुल केर उबारा ।। भावार्थ:- वहाँ (लंका में) जब से हनुमान जी लंका को जला कर गए,...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-189

जय श्री राधे कृष्ण ……. "एहि बिधि जाइ कृपानिधि उतरे सागर तीर, जहं तहं लागे खान फल भालु बिपुल कपि बीर ।। भावार्थ:- इस प्रकार कृपा निधान श्री राम जी समुद्र तट पर जा उतरे । अनेकों रीछ - वानर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-188

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सहि सक न भार उदार अहिपति बार बारहिं मोहई, गह दसन पुनि पुनि कमठ पृष्ठ कठोर सो किमि सोहई, रघुबीर रुचिर प्रयान प्रस्थिति जानि परम सुहावनी, जनु कमठ खर्पर सर्पराज सो लिखत अबिचल पावनी ।।...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-187

जय श्री राधे कृष्ण ……. "चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खर भरे, मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दुख टरे, कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं, जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-186

जय श्री राधे कृष्ण ……. "नख आयुध गिरि पादपधारी, चले गगन महि इच्छाचारी, केहरिनाद भालु कपि करहीं, डगमगाहिं दिग्गज चिक्करहीं ।। भावार्थ:- नख ही जिनके शस्त्र हैं, वे इच्छानुसार (सर्वत्र बेरोक - टोक) चलने वाले रीछ - वानर पर्वतों और...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-185

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जोइ जोइ सगुन जानकिहि होई, असगुन भयउ रावनहि सोई, चला कटकु को बरनैं पारा, गर्जहिं बानर भालु अपारा ।। भावार्थ:- जानकी जी को जो - जो शकुन होते थे, वही - वही रावण के लिए...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-184

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जासु सकल मंगलमय कीती, तासु पयान सगुन यह नीती, प्रभु पयान जाना बैदेहीं, फरकि बाम अंग जनु कहि देहीं ।। भावार्थ:- जिन की कीर्ति सब मंगलों से परिपूर्ण है, उन के प्रस्थान के समय शकुन...

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