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गुरुजी और चाय का प्याला

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गुरुजी और चाय का प्याला

एक बार गुरुजी सत्संग करके आ रहे थे, रास्ते में गुरुजी का मन चाय पीने को हुआ। उन्होंने अपने ड्राइवर को कहा भैया ,हमे चाय पीनी है

ड्राइवर ने गाड़ी 5 स्टार होटल के आगे खड़ी कर दी। गुरुजी ने कहा नहीं आगे चलो यहाँ नहीं फिर ड्राइवर ने गाड़ी किसी होटल के आगे खड़ी कर दी। गुरूजी ने वहां भी मना कर दिया।

काफी आगे जाकर एक छोटी सी ढाबे जैसी दुकान आई। गुरूजी ने कहा यहाँ रोक दो- यहाँ पर पीते हैं चाय…..

ड्राइवर सोचने लगा- कि अच्छे से अच्छे होटल को छोड़ कर गुरुजी ऐसी जगह चाय पीएंगे। खैर वो कुछ नहीं बोला। ड्राइवर चाय वाले के पास गया और बोला भैया एक अच्छी सी चाय बना दो। जब दुकानदार ने पैसों वाला गल्ला खोला तो उसमे गुरूजी का स्वरूप फोटो लगा हुआ था।

गुरूजी का स्वरूप देख कर ड्राइवर ने दुकानदार से पूछा तुम इन्हें जानते हो, कभी देखा है इन्हें? तो दुकानदार ने कहा मैंने इनके दर्शन के लिए जाने वास्ते पैसे इकट्ठे किये थे। लेकिन वो चोरी हो गए,और मैं नहीं जा पाया। पर मुझे यकीन है- कि गुरूजी मुझे यहीं आ कर मिलेंगे। अब तो ड्राइवर का मन गुरुजी के प्रति श्रद्धा से भर गया,उसने तत्काल चाय का प्याला वापस रखा

और दुकानदार से कहा भैया जाओ और चाय उस कार मैं दे कर आओ। तो दुकानदार बोला अगर मैं चाय देने के लिए चला गया- तो कहीं फिर से मेरे पैसे चोरी न हो जायें। तो ड्राइवर ने कहा चिंता मत करो अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम्हारे पैसे अपनी जेब से दूंगा।दुकानदार चाय, कार मैं देने के लिए चला गया।जब वहां उसने गुरुजी को देखा तो हैरान हो गया।आँखों में आंसू देखे तो गुरू जी ने कहा तूने कहा था- कि मैं तुम्हे यहीं मिलने आऊं और अब मैं तुमको मिलने आया हूँ- तो तुम रो रहे हो।

इतना प्यार था उस आदमी के अन्दर आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।जब मन सच्चा हो और इरादे नेक हो तो भगवन को भी आना पड़ता है, अपने भगत के लिए।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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