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मन का अहंकार

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“मन का अहंकार”
बूढी मां और लाचार बाप को बिलखता छोड़कर एक ऋषि तपस्या करने के लिए वन में चले गए ! तप करने के बाद जब ऋषि उठे तो देखा कि एक कौवा अपनी चोंच में एक चिड़िया का बच्चा दबाकर उड़ रहा है !

ऋषि ने क्रोध से कौवे की ओर देखा ! ऋषि की आंखों से अग्नि की ज्वाला टूट पड़ी और कौवा जलकर वही खत्म हो गया !
अपनी इस सिद्धि को देख कर ऋषि फूले नही समा रहे थे !

अहंकार से भरे हुए ऋषि मठ की ओर चल पड़े और रास्ते में ऋषि एक दरवाजे पर जाकर भिक्षा के लिए खड़े हो गए ! उनके बार-बार पुकारने पर कोई बाहर नही आया तो ऋषि क्रोधित हो गए ! उन्होंने फिर पुकारा पर इस बार आवाज आई स्वामी जी ठहरिए मैं अभी साधना कर रही हूं ! जब साधना पूरी हो जाएगी तब मैं आपको भिक्षा दूंगी !

अब ऋषि की क्रोध की सीमा पार हो गई थी ! ऋषि क्रोध में आकर आकर बोले दुष्टा ! तुम साधना कर रही हो या एक ऋषि का अपमान कर रही हो ! जानते नही कि इस अवहेलना का परिणाम क्या हो सकता है ! भीतर से उतर आया मैं जानती हूं आप शाप देना चाहेंगे किंतु मैं कोई कौवा नहीं जो आप के प्रकोप से जलकर नष्ट हो जाऊंगी ! जिसने जीवन भर पाला है मैं उस मां को छोड़कर कर तुम्हें भिक्षा कैसे दे सकती हूं !

ऋषि का सिद्धि का अहंकार चूर चूर हो गया ! कुछ देर बाद वह महिला बाहर आई तो ऋषि ने आश्चर्यपूर्वक महिला से पूछा ! अब कौन सी साधना करती है जिससे तुम मेरे बारे में सब कुछ जानती हो ! उस महिला ने कहा – महात्मन मैं अपने पति बच्चे परिवार और समाज के प्रति कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करती हूं! यही मेरी सिद्धि है..!!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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