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लोकमंगल की अयोध्या-    लोकतंत्रीय पुरुषोत्तम

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लोकमंगल की अयोध्या–    लोकतंत्रीय पुरुषोत्तम

वाल्मीकि रामायण में मारीच कहता है:- “रामो विग्रहवान् धर्मः।” यानि राम धर्म के अवतार हैं। इस ‘रामधर्म’ में राजधर्म, मनुष्य धर्म, युद्ध धर्म की परिभाषा भी अंतर्निहित है। अयोध्या सत्ता के शिखर का प्रतीक थी। लेकिन राम के ‘अयोध्या स्टेट’ ने अपने सैन्य बल का उपयोग कभी अपने राज्य विस्तार की भावना से या देश में शक्तिशाली (सुपर पाॅवर) केंद्र बनने के लिए कभी नहीं किया। बाली-वध के पश्चात किष्किंधा को सुग्रीव को सौंपना या लंका को विभीषण को सौंपकर, फिर उधर की तरफ कभी न देखना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

राम कोई सामान्य व्यक्ति नहीं थे। न अयोध्या कोई ‘सामान्य स्टेट’ थी। राम की ससुराल भी राजा जनक का राज्य मिथिला था। आसपास के राजा-रजवाड़े उनके मित्र थे। वे चाहते तो मित्र राज्यों और ससुराल की सेना को लेकर एक ‘नाटो’ जैसी सेना बनाकर लंका पर हमला कर सकते थे।

 पर इतने सामर्थ्यशाली होते हुए भी उन्होंने जीवन-मूल्यों की रक्षार्थ अपनी लड़ाई को जनसाधारण की लड़ाई बनाया। आदिवासी, वनवासियों को लेकर आतंक के प्रतीक रावण की लंका पर हमला किया- वह भी जनबल से, लोकशक्ति से, सेना के जरिए नहीं।

“राम का यह साधुत्व उन्हें त्याग और विनम्रता की प्रतिमूर्ति बनाता है।”

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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