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लीला परमात्मा के खेल का नाम है

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लीला परमात्मा के खेल का नाम है

बुद्ध ने कहा है कि गुजरता था एक नदी के किनारे से,बच्चों को रेत के घर बनाते देखा, रुककर खड़ा हो गया, इसलिए खड़ा हो गया कि बच्चे भी रेत के घर बनाते हैं।

 थोड़ा इनके खेल को देख लूं। रेत के ही घर थे, हवा का झोंका आता, कोई घर खिसक जाता, किसी बच्चे का धक्का लग जाता, किसी का घर गिर जाता। किसी का पैर पड़ जाता, किसी का बनाबनाया महल जमीन पर मिल जाता।

बच्चे लड़ते, गाली देते, एक—दूसरे को मारते। किसी ने किसी का घर गिरा दिया हो, तो झगड़ा तो सुनिश्चित है। सारे झगड़े ही घरों के हैं। किसी का धक्का लग गया, किसी का घर गिर गया।

किसी ने बड़ी मुश्किल से तो आकाश तक पहुंचाने की कोशिश की थी; और किसी ने चोट मार दी, और सब जमीन पर गिर गया!

बुद्ध खड़े होकर देखते रहे। बच्चे एकदूसरे से लड़ते रहे। झगड़ा होता रहा। फिर सांझ होने लगी। फिर सूरज ढलने लगा।

फिर किसी ने नदी के किनारे आकर जोर से आवाज लगाई कि तुम्हारी माताएं तुम्हारी घर राह देख रही हैं; अब घर जाओ! जैसे ही बच्चों ने यह सुना, अपने ही बनाए हुए घरों पर कूद—फांद करके, उनको गिराकर, वे घर की तरफ चल पड़े।

बुद्ध खड़े थे, देखते रहे। उन्होंने कहा, जिस दिन हम अपने सारे जीवन को रेत के खेल जैसा समझ लें, और जिस दिन खयाल हमें आ जाए कि अब यह खेल समाप्त हुआ, पुकार आ गई वहां से असली घर की, अब उस तरफ चलें, तो उस दिन हम भी इनको गिराकर इसी तरह चले जाएंगे।

अभी लड़ रहे थे कि मेरे घर को गिरा दिया, अब खुद ही गिराकर भाग गए हैं!

बच्चे जैसे रेत के घर बनाकर खेल खेल रहे हों, वैसे ही जब कोई व्यक्ति जीवन को खेल बना ले, तो अनासक्त हो जाता है। परमात्मा के लिए जीवन एक खेल है।

ध्यान रहे, इसलिए हमने जो शब्द प्रयोग किया है, वह है, लीला। उसका अर्थ है, प्ले। हिंदू धारणा ईश्वर की, गंभीर धारणा नहीं है। बहुत प्रफुल्लित, बहुत खेल जैसी धारणा है। इसलिए हमने जगत को लीला कहा है। लीला अनूठा शब्द है।

दुनिया की किसी भाषा में इसका अनुवाद ‘नहीं किया जा सकता। क्योंकि अगर हम कहें प्ले, तो वह खेल का अनुवाद है।

लीला परमात्मा के खेल का नाम है और दुनिया में किसी धर्म ने चूंकि परमात्मा को कभी खेल के रूप में देखा नहीं, इसलिए लीला जैसा किसी भाषा में कोई शब्द नहीं है।

 लीला अनूठे रूप से भारतीय शब्द है। इसका कोई उपाय नहीं है। अगर हमें करना भी हो कोशिश, तो उसको डिवाइन प्ले।

लेकिन वह शब्द नहीं बनते। लीला काफी है। उसमें ईश्वर को जोड़ना नहीं पड़ता। लीला शब्द पर्याप्त है। उसका मतलब यह है कि यह सारा का सारा जो सृजन है, यह कोई गंभीर कृत्य नहीं है।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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