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आखिरी सच

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आखिरी सच

शहर की पहचान अब उसकी चमकती इमारतों और भयानक रहस्यों से थी। इस शहर में जहाँ एक तरफ़ ऊंची इमारतें थीं, वहीं दूसरी तरफ़ अंधेरे की गहराई भी थी। पत्रकारिता की दुनिया भी कुछ ऐसी ही है , जहाँ सच अक्सर सत्ता की चमक में खो जाता है ।

इस दुनिया में एक नाम था – विनोद, एक ईमानदार और अनुभवी पत्रकार जो सच को उजागर करने के लिए कुछ भी कर सकता था।   

विनोद का सबसे भरोसेमंद शिष्य था, अर्जुन। अर्जुन ने विनोद से सीखा था कि पत्रकारिता सिर्फ़ ख़बर छापना नहीं, बल्कि सच्चाई को ज़िंदा रखना है। लेकिन एक दिन, विनोद की एक रहस्यमयी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। पुलिस ने इसे एक साधारण हादसा मानकर केस बंद कर दिया, पर अर्जुन का दिल मानने को तैयार नहीं था। वह जानता था कि यह कोई हादसा नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साज़िश थी। उसका शक शहर के सबसे शक्तिशाली और बेईमान मीडिया टाइकून, विक्रम मेहरा पर था। विक्रम मेहरा की सनसनीखेज ख़बरों और झूठी रिपोर्टिंग ने शहर के सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ दिया था ।  

विनोद की मौत के बाद, अर्जुन ने अपने गुरु की अंतिम नोटबुक को पढ़ना शुरू किया। नोटबुक में एक अजीब पहेली लिखी थी – “सच्चाई का रास्ता रोशनी से नहीं, अंधेरे से होकर गुज़रता है।” यह पहेली उसे विक्रम मेहरा के खिलाफ सबूतों की खोज में ले गई । जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया, उसे महसूस हुआ कि विनोद ने अपनी मौत की भविष्यवाणी कर दी थी और अपने पीछे कुछ सुराग छोड़े थे ।  

एक शाम, जब अर्जुन अपने ऑफिस में बैठा था, तो उसे एक धमकी भरा फोन आया, “अगर तुम पीछे नहीं हटे, तो तुम्हारा हश्र भी विनोद जैसा होगा।” अर्जुन डर गया, पर उसकी प्रेरणा अब सिर्फ़ न्याय की थी। वह जानता था कि यह सिर्फ़ एक बाहरी संघर्ष नहीं है, बल्कि उसके अंदर का डर और विनोद को खोने का दुख भी है, जिसे उसे जीतना होगा ।  

अर्जुन की खोज उसे शहर के एक पुराने और बंद पड़े प्रिंटिंग प्रेस तक ले गई। उस प्रेस की दीवारों पर अब काई जम गई थी और मशीनें जंग खा चुकी थीं। वहाँ उसे विनोद की एक पुरानी डायरी मिली, जिसके पन्ने पूरी तरह से साफ़ थे। अर्जुन ने निराश होकर उसे फेंक दिया, लेकिन फिर उसे याद आया कि विनोद ने हमेशा कहा था, “कभी-कभी, सबसे बड़ा सच सबसे ज़्यादा साफ़-सुथरा होता है।” उसने डायरी को उठाया और उसे एक खास रोशनी में देखा। डायरी पर एक अदृश्य स्याही में लिखा था, “मेरा हत्यारा वह है जो सबसे करीब है, पर सबसे अनजान है।”

इस रहस्य ने अर्जुन को चौंका दिया। वह मेहरा के बारे में सब कुछ जानता था, तो वह अनजान कैसे हो सकता है? अर्जुन ने मेहरा के बारे में और जानकारी जुटाई। वह अपनी एक महिला मित्र, शिखा से मिला जो मेहरा की कंपनी में काम करती थी। शिखा ने उसे मेहरा के सारे राज बताए, लेकिन अचानक एक दिन शिखा का भी अपहरण हो गया।

अब अर्जुन के पास सिर्फ़ एक ही रास्ता बचा था – सीधे मेहरा से मुकाबला करना। वह मेहरा के आलीशान ऑफिस पहुँचा और उससे भिड़ गया। मेहरा ने उसे मुस्कुराते हुए देखा और कहा, अरे, विनोद का शिष्य! तुम अभी भी उस सच्चाई की तलाश में हो, जो तुम्हारे गुरु ने सालों पहले ही दफ़न कर दी थी।”

मेहरा ने अपनी कुर्सी पर आराम से बैठते हुए कहा, “तुम सोचते हो कि तुम्हारा गुरु कोई महान आदर्शवादी था? वह इतना बहादुर नहीं था जितना तुम समझते हो, अर्जुन। जब असली ख़तरा सामने आता है, तो हर कोई अपने सिद्धांत बेच देता है।” मेहरा ने साज़िश भरी हँसी के साथ कहा, तुम्हारे गुरु ने अपनी जान बचाने के लिए खुद ही मुझसे संपर्क किया था, और उसने मुझे वो राज दिए जिनकी मुझे ज़रूरत थी। वह धोखेबाज़ था, अर्जुन… उसने तुम सबको धोखा दिया।” मेहरा की इस बात ने अर्जुन को अंदर तक हिला दिया। वह अपने गुरु पर विश्वास करना चाहता था, लेकिन मेहरा के शब्द उसके मन में एक ज़हर की तरह घुल रहे थे।

मेहरा के इस झूठे आरोप ने अर्जुन की हिम्मत तोड़ दी। उसे लगा कि उसका गुरु एक डरपोक इंसान था। तभी, मेहरा के पीछे खड़ी एक छाया हिलने लगी। वह शिखा थी, जिसने मेहरा के सारे राज एक रिकॉर्डर में रिकॉर्ड कर लिए थे। शिखा ने मेहरा को बताया, “यह सब विनोद सर ने ही प्लान किया था। वह जानते थे कि आप झूठ बोलेंगे। इसीलिए उन्होंने मुझे यह रिकॉर्डर दिया था।”

मेहरा को लगा कि वह जीत गया था, पर तभी एक और आवाज़ गूंजी, “विक्रम, तुमने मुझे धोखेबाज़ कहा, लेकिन असली धोखेबाज़ तो तुम निकले!”

कमरे की रोशनी अचानक तेज़ हो गई और एक दरवाज़ा खुला। अंदर से एक बूढ़ा आदमी बाहर आया। वह कोई और नहीं, बल्कि विनोद था, जो ज़िंदा था!

यह देखकर मेहरा के चेहरे का रंग उड़ गया। विनोद ने बताया कि यह सब उसकी योजना थी । वह जानता था कि विक्रम की सत्ता और दौलत से लड़ना आसान नहीं है। इसलिए उन्होंने अपनी मौत का नाटक रचा ताकि अर्जुन जैसा एक सच्चा और ईमानदार पत्रकार सच को बाहर ला सके। विनोद ने बताया, “सच को उजागर करने का यह सबसे अच्छा तरीका था ताकि विक्रम तुम्हारे सामने अपनी पूरी सच्चाई पेश करे।”  

विनोद ने यह भी बताया, “तुमने अपनी आँखों से देखा, पर उस पर विश्वास नहीं किया। मेहरा का अपराध तुम्हारे सामने था, पर तुम उसकी झूठी बातों में आ गए। सच्ची पत्रकारिता वही है जो सच को अपने दिल से महसूस करती है।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में संघर्ष तभी खत्म होता है, जब हम अपने अंदर के डर को जीत लेते हैं ।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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