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    सुंदरकांड की सुन्दरता  

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    सुंदरकांड की सुन्दरता  

सुंदरकांड में 1 से 26 तक जो दोहे हैं, उनमें शिवजी का गायन है, वो शिव जो सत्य हैं , सुन्दर हैं और कल्याणप्रद हैं। जहां तक कल्याण का सवाल है, तो पहले हमें अपने शरीर को स्वस्थ बनाना चाहिए, शरीर स्वस्थ होगा तभी हमारे सभी काम हो पाएंगे। किसी भी काम को करने के लिए अगर शरीर स्वस्थ है तभी हम कुछ कर पाएंगे। सुंदरकांड की एक से लेकर 26 चौपाइयों में तुलसी ने कुछ ऐसे गुप्त-मंत्र हमारे लिए रखे हैं जो प्रकट में तो हनुमान जी का ही चरित्र है लेकिन अप्रकट में जो चरित्र है वह हमारे शरीर में चलता है। हमारे शरीर में 72000 नाड़ियां हैं उनमें से भी तीन सबसे महत्वपूर्ण हैं।

जैसे ही हम सुंदरकांड प्रारंभ करते हैं- ॐ श्री परमात्मने नमः.., तभी से हमारी नाड़ियों का शुद्धिकरण प्रारम्भ हो जाता है। सुंदरकांड में एक से लेकर 26 दोहे तक में ऐसी ताकत है, ऐसी शक्ति है, जिसका बखान करना ही इस पृथ्वी के मनुष्यों के बस की बात नहीं है। इन दोहों में किसी भी राजरोगको मिटाने की क्षमता है, यदि श्रद्धा से पाठ किया जाए तो इसमें ऐसी संजीवनी है, कि बड़े से बड़ा रोग निर्मूल हो सकता है।

सुंदरकांड की एक से लेकर 26 चौपाइयों में शरीर के शुद्धिकरण का फिल्ट्रेशन प्लांट मौजूद है। हमारे शरीर की लंका को हनुमान जी महाराज स्वच्छ बनाते हैं। जैसे-जैसे हम सुंदरकांड के पाठ का अध्ययन करते जाएंगे वैसे-वैसे हमारी एक-एक नाड़ियां शुद्ध होती जाएंगी। शरीर का जो तनाव है, टेंशन है वह 26वें दोहे तक आते-आते समाप्त हो जाएगा। आप कभी इसका अपने घर प्रयोग करके देखना, सामूहिक सुंदरकांड में तो इसका लाभ कई गुना बढ़ जाता है क्योंकि  आज के युग में कोई शक्ति समूह में ज्यादा काम करती है। अगर वह साकारात्मक है तब भी और यदि नकारात्मक है तब भी ज्यादा काम करेगी। बड़ी संख्या में या अपने परिवार के साथ में, साकारात्मक शक्तियां एकत्र होकर जब सुंदरकांड का पाठ करती हैं तो भला किस रोग का मजाल कि वह हमारे शरीर में टिक जाए। आप घर पर इसका प्रयोग कर इसकी सत्यता की पुष्टि कर सकते हैं। किसी का यदि ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ है तो उसे संकल्प लेकर हनुमान जी के आगे बैठना चाहिए, और यह संपुट अवश्य लगाएं-

मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सो दसरथ अजिर बिहारी।।

यह संपुट बड़ा ही प्रभावकारी है, इसे बेहद प्रभावकारी परिणाम देने वाला संपुट माना गया है। आप मानसिक संकल्प लेकर सुंदरकांड का पाठ आरंभ करें और देखें 26वें दोहे तक आते-आते आपका ब्लड प्रेशर नार्मल हो जायेगा, आप स्वयं रक्तचाप नाप कर देख सकते हैं वह निश्चित सामान्य होगा नार्मल होगा। 100 में से 99 लोगों का निश्चित रूप से ठीक होगा, केवल उस व्यक्ति का जरूर गड़बड़ मिलेगा जिसके मन में परिणाम को लेकर शंका होगी जो सोच रहा होगा कि होगा कि नहीं होगा, उस एक व्यक्ति का परिणाम गड़बड़ हो सकता है आप पूर्ण श्रद्धा के साथ सुंदरकांड का पाठ करें परिणाम शत-प्रतिशत अनुकूल आएगा ही आयेगा।

सुंदरकांड की एक से लेकर 26 दोहे तक की यह फलश्रुति है कि आपका शरीर बलिष्ट बने। क्योंकि शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् जब तक हमारा शरीर स्वस्थ है, तभी तक हम धर्म-कर्म कर सकते हैं, शरीर स्वस्थ है तो हम भगवान् का नाम ले सकते हैं। यदि शरीर में बुखार है, ताप है तो हमें प्रभु नाम-जप की माला करना अच्छा लगेगा ही नहीं इसलिए शरीर तो हमारा रथ है इसका पहले ध्यान रखना है, स्वस्थ रखना है।

सुंदरकांड तुलसीदास जी का हनुमान जी के लिए एक वैज्ञानिक अभियान है और जैसे ही 26वां दोहा आएगा, वैसे ही मंगल भवन अमंगल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी।।

कैलाश में बैठे भगवान् शिव और मां पार्वती के साथ यह वार्तालाप है, सुंदरकांड में 26वें दोहे के बाद जो गंगा बहती है वह शिव कल्याणप्रद हैं__इसमें हमारे शरीर का जो ऊपर का भाग है, उसे स्वस्थ रखने की संजीवनी है। जैसे-जैसे हम पाठ करते जाएंगे 26वें दोहे के बाद हमारा मन शांत होता जाएगा।

प्रत्येक व्यक्ति की कोई-न-कोई इच्छा जरूर होती है, बिना इच्छा के कोई व्यक्ति नहीं हो सकता। सुंदरकांड हमारी व्यर्थ की इच्छाओं को निर्मूल करता है, साथ ही हमारी सद्इच्छाओं को जागृत करता है। विभीषण जी ने राम जी से कहा ही है- उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही॥

यहां विभीषण जी ने  स्वीकार किया है- प्रभु मुझे भी वासना थी कि मुझे लंका का राज मिलेगा। लेकिन जब से श्री राम जी के दर्शन हुए हैं तभी से वासना‘ ‘उपासनामें परिवर्तित हो गई है। सुंदरकांड वासना को उपासना में परिवर्तन करने का सबसे बड़ा संस्कार केंद्र है।

हमारे शरीर का थर्ड फ्लोर मस्तिष्क और मन अक्सर हमेशा गर्म रहता है। आज की इस आपाधापी के समय 10 आदमियों में 9 व्यक्तियों को टेंशन है, कोई-न-कोई तनाव तो है ही और यह तनाव जिसको नहीं है वह तो योगी है। इसलिए जो गोली आप लेते हैं, उसे मत लेना, स्थगित कर देना बस आप सब सुंदरकांड का प्रेम से पाठ करना, हनुमान जी के सामने बैठकर। स्वयं सुंदरकांड में दो जगह हनुमान जी का वादा है-

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान। सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥

इसी प्रकार एक और वचन है-भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारी। तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्द्ध करहिं त्रिसिरारी।।

सुंदरकांड हमें यूं ही अच्छा नहीं लगता है, यह हमें इसलिए अच्छा लगता है क्योंकि यह हमारे अंदर का जो तत्व है उसको दस्तक देता है, कि जागो हमारे अंदर जो दिव्यता है सुंदरकांड उसको जगाने का काम करता है इसीलिए तो विभीषण जी ने कहा है-

उर कछु प्रथम वासना रही।  प्रभु पद प्रीति सरिस सो बही।।

प्रभु श्री राम जी कहते हैं- निर्मल मन जन सो मोहि पावा।

मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥ जिसका मन निर्मल है, वही मुझे पाएगा। कबीर दास जी इसे बेहद सरल ढंग से परिभाषित किया।

कबीरा मन निर्मल भया निर्मल भया शरीर। फिर पाछे पाछे हरि चले कहत कबीर कबीर।।

शरीर और मन दोनों निर्मल हो जायेंगे। सुंदरकांड हमें निरपेक्ष बनाता है, सुंदरकांड हमें जो हमारे लिए हितकर है वह भी हमें प्रदान करता है। हमें जो मिलना है वह तो हम लिखवाकर ही आए हैं, गाड़ी बंगला, सुख-वैभव, यह हमारा प्रारब्ध तय करता है, पर जो हम लिखावाकर नहीं आए हैं, वह हमें सुंदरकांड देता है।

सुंदरकांड में हमें सब कुछ देने की क्षमता है लेकिन प्रभु से मांग कर उन को छोटा मत कीजिए। तुम्हहि नीक लागै रघुराई। सो मोहि देहु दास सुखदाई॥

हे प्रभु आपको जो ठीक लगता है वह हमें दीजिए। उदाहरण के लिए यदि कोई बालक अपने पिता से 10 या 20 रुपये मांगता है और पिता उसे रुपये देकर अपना कर्तव्य पूरा मान लेगा, यानी पिता सस्ते में छूट जायेगा, लेकिन वही बालक अपने पिता से कहता है कि पिताजी, जो आप को ठीक लगे वह मुझे दीजिए, ऐसा सुनते ही पिता की टेंशन बढ़ जाएगी, तनाव छा जाएगा क्योंकि पिता पुत्र को सर्वश्रेष्ठ देना चाहता है। इसलिए परमपिता परमेश्वर को, मांगकर छोटा मत कीजिए, उनसे कहिए जो बात प्रभु को ठीक लगे, वही मुझे दीजिए। फिर भगवान् जब देना शुरू करेंगे तो हमारी ले लेने की क्षमता नहीं होगी। उसी क्षमता को बढ़ाने का काम यह सुंदरकांड करता है।

सुंदरकांड के द्वितीय चरण में एक महामंत्र है

दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।

यह चौपाई रामचरितमानस का तारक मंत्र है, इसे अपने हृदय पर लिखकर रख लीजिए। रामचरित मानस का यह मंत्र हमें उस संकट से मुक्ति दिलाता है जिसके बारे में हमें भी नहीं पता है। इसी प्रकार रामचरितमानस का एक और महामृत्युंजय मंत्र है- नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट । लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहिं बाट ॥ यदि आपको मृत्यु का भय लग रहा है तो इस दोहे का रटन कीजिए, यदि आपको लगता है कि आप फंस गए हैं और निकलना असंभव जान पड़ रहा है, ऐसे में घबराने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। आप हनुमान जी का ध्यान करके इस दोहे का रटन शुरू कर दीजिए। हनुमान जी महाराज की कृपा से 15 मिनट में संकट टल जाएगा।

इस पंक्ति का, इस दोहे का कुछ विद्वान इस तरह भी अर्थ निकालते हैं कि जो आपके भाग्य में लिखा है, उसको तो आपको भोगना ही है, लेकिन उसे सहन करने की शक्ति रामजी के अनुग्रह से हनुमान जी प्रदान करते हैं और जीवन से हर परेशानियों को मुक्त कर देते हैं।

समस्त प्राणियों का एकमात्र लक्ष्य शान्ति है। जहां शान्ति होगी वहीं पूर्णता होगी, और जहां पूर्णता होगी वही अखण्ड एवं शाश्वतिक आनन्द भी होगा। अतः शान्ति के बिना सुख कहां ? भक्तिभाव से पूर्ण, सुंदरकांड के पारायण का प्रथम फल हमें शाश्वत-शान्ति प्रदान करता है। सुंदरकांड के आरम्भ के मंगलाचरण में ही श्री गोस्वामी जी ने लिखा है- शान्तम् , शाश्वतम्  और शान्तिप्रदम् पर शान्त वही होगा जिसे शान्ति मिली होगी। इस कांड में- (१) शान्ति-सीता का समाचार पाकर अशान्त श्री राम को शान्ति मिली, (२) समुद्र तट पर बैठी हुई मरणासन्न वानरी-सेना को शान्ति मिली (३) हनुमान जी को तो साक्षात् शान्तिदेवी से वरदान पाकर परम शान्ति मिली और (४) वैराग्य पुत्र के द्वारा श्री राम-नाम तथा श्री राम-कथा और रामनाम अंकित अति सुंदर मुद्रिका पाकर शान्तिदेवी को महाशान्ति मिली__क्योंकि , शान्ति ज्ञान-वैराग्य की जननी है , और पराभक्ति ही शान्ति है ; और यही सीता है..! अतः इस मंगलमय-कांड का प्रथम मंगलाचरण- शान्तम् एवं शान्तिप्रदम् के शोध से आरंभ होता है- ‘शान्तम् शाश्वतमप्रमेयमनघं  निर्वाणशान्तिप्रदम्..!’

हनुमान जी की असीम अनुकंपा को बखान करना किसी के भी बस में नहीं है। हम केवल उसका अनुभव साझा कर सकते हैं। सुंदरकांड दिन-प्रतिदिन अपने अर्थ को व्यापक बनाता जाता है। जो आज आपके लिए एक अर्थ है, तो कल दूसरा होगा। ये महिमा है सुंदरकांड की।

  अतः श्रद्धा और विश्वास के साथ सुंदरकांड का पाठ करते रहिये और प्रतिदिन प्रभु के अनेकों प्रसाद को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ाते रहिये।

‘भवानी शंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रुपिणौ’ अर्थात- ‘जो विश्वास ‘भगवान्-शिव’ के साक्षात्कार का आधार बन सकता है, जो श्रद्धा स्वयं ‘मां-भवानी’ को अनुकूल कर सकती है, उस श्रद्धा, उस विश्वास के समक्ष अप्राप्य क्या रहता है, असंभव क्या बनता है।

विश्वास के समक्ष सब कुछ संभव है, असंभव भी संभव है।’

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

2 Comments

  • बहुत ही उपयोगी जानकारी।।।
    श्रीप्रभु के चरणों में उत्तरोत्तर प्रीति वृद्धि होगी।।।
    जय श्री राम।।।
    जय श्री हनुमान।।।

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