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रिटायरमेंट

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रिटायरमेंट

तक़रीबन 26 साल नौकरी करने के बाद तन्विक बाबू इसी महीने रिटायर होने वाले थे । वे एक प्राइवेट कंपनी में आदेशपाल (चपरासी) के पद पर कार्यरत थे । एक तरफ़ जहाँ तन्विक जी को इस बात का सुकून था कि चलो अब तो एक खड़ूस , बत्तमीज औऱ क्रूर बॉस से छुटकारा मिलेगा , वहीं दूसरी ओर उन्हें इस बात की भी चिंता सता रही थी कि रिटायरमेंट के बाद अब उनका समय कैसे बीतेगा औऱ उनपर जो जबरदस्त आर्थिक जिम्मेदारी है, उसका निर्वहन वे कैसे करेंगे ??

दरअसल तन्विक बाबू को एक मात्र लड़की थी जिसकी पढ़ाई औऱ फ़िर व्याह की चिंता उन्हें खाए जा रही थी । रिटायमेंट के बाद इस महंगाई में घर के ख़र्च के साथ साथ बेटी की शादी उनके लिए एक बड़ी चुनौती से कम न थी। ऊपर से उनकी बीमार पत्नी के इलाज़ का ख़र्च अलग से मुँह बाए खड़ा था ।

हालांकि लगभग 60 कर्मचारियों वाले उस दफ़्तर में अपने सुप्रीम बॉस सहित कुछ लोगों के बुरे बर्ताव के कारण वे मन ही मन बड़े दुखी रहते थे । फ़िर भी जब महीने की एक तारीख़ को उनके हाथों पर उनकी तनख्वाह आ जाती थी तब उनका सारा दुख दर्द फ़ुर्र हो जाता था ।

तन्विक बाबू ख़ुद भी शारीरिक रूप से दुरुस्त न थे । उनकी याददाश्त तो कुछ कमजोर हो ही चली थी , उनका अब हांथ भी कांपने लगा था । न चाहते हुए भी कुछ न कुछ गलती अक़्सर उनसे भी हो ही जाती थी ।वे क़भी दफ़्तर की सफ़ाई करना भूल जाते तो क़भी चाय में चीनी डालना। क़भी कभार तो गंदे ग्लास से ही किसी कर्मचारी को पानी पिला देते थे जिसके लिए उन्हें कुछ न कुछ भला बुरा सुनना पड़ता था । फ़िर भी सबकुछ चलते जा रहा था ।

आख़िरकार वो दिन भी आ ही गया जिस दिन तन्विक बाबू का दफ़्तर में आख़री दिन था । तन्विक जी वक़्त से कुछ पहले ही दफ़्तर पहुँच कर अपने नियमित कार्य में जुट गए। सबकुछ रोज़ की ही तरह था , बस आज दफ़्तर में ख़ामोशी कुछ ज़्यादा थी ।

शाम में जब आख़री बार दफ़्तर से घर जाने का वक़्त हुआ तो तन्विक बाबू ने टूटे मन से सोचा कि अंतिम बार खड़ूस बॉस के केबिन में जाकर उससे मिल लिया जाए लेकिन उन्हें बताया गया कि अन्य कर्मचारियों के साथ बॉस एक जरुरी मीटिंग कर रहे हैं , फ़िलहाल उन्हें कुछ देर इंतज़ार करना होगा ।

दो घंटे इंतज़ार के बाद भी जब मीटिंग ख़त्म नहीं हुई तो तन्विक बाबू मन ही मन चिढ़ गए औऱ बॉस को कोसने लगे……साला क्या अहंकारी आदमी है, सिर्फ़ एक मिनट के लिए मुझें बुलाकर मिल लेता …अकड़ू साला ।

अंत में मायूस होकर तन्विक बाबू ने बिना बॉस से मिले ही अपने घर लौटने का मन बना लिया , ठीक तभी किसी ने आवाज़ दी….साहब तुम्हें बुला रहे हैं ।

तन्विक बाबू झटपट अंदर दाख़िल हुए लेकिन बॉस के केबिन का नज़ारा कुछ बदला बदला सा था।तन्विक जी को देखते ही सभी कर्मचारियों ने ज़ोर से ताली बजाकर उनका गर्मजोशी से स्वागत किया ।फ़िर बॉस ने मेज़ पर रखे एक केक को काटने के लिए तन्विक जी को धीरे से इशारा किया ।

पार्टी समाप्ति के बाद अब बॉस ने बोलना शुरु किया….तन्विक , हम सब ने आज मिलकर सामुहिक रूप से ये फैसला लिया है कि तुम्हें फ़िलहाल नौकरी से कार्यमुक्त न किया जाए औऱ तुम्हारी सेवाएं पहले की तरह ही बहाल रखी जाए क्योंकि हमें एक ईमानदार, जिम्मेदार औऱ वफ़ादार व्यक्ति की सख़्त आवश्यकता है । कुछ मामूली लापरवाहियों को अगर नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो तुम एक बेहद ही कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति हो। तुम्हें तुम्हारी सेवाओं के बदले प्रत्येक कर्मचारी की तरफ़ से महीने के अंत में पाँच सौ रुपये दिए जाएंगे ।हालांकि ये हमारे ऑफिस के नियम के खिलाफ है , फ़िर भी तुम्हारी आर्थिक जरुरतों के देखते हुए तुम्हारे लिए ऐसा करना पड़ रहा है लेकिन ध्यान रहे तुम्हारी गलतियों के लिए तुम्हें मिलने वाली डांट में कोई रियासत नहीं मिलेगी ।

बॉस ने अपनी बातों को बीच में रोकते हुए रूपयों का एक बंडल तन्विक बाबू के हाथों में थमाया औऱ फ़िर बोलना शुरू किया….आज ही ये पाँच लाख रुपए हम सब ने मिलकर तुम्हारे लिए जमा किए हैं ताकि तुम अपनी बेटी की शादी धूमधाम से कर सको ।

बॉस ने जैसे ही अपनी वाणी को विराम दी तालियां फ़िर से गड़गड़ा उठी ।

तन्विक बाबू रोते हुए बॉस के चरणों में झुक गए लेकिन बॉस ने उन्हें पकड़कर अपने गले से लगा लिया ।

ऑफिस से निकलने के बाद डबडबाई आँखों को लेकर तन्विक बाबू अपने घर की ओर जाते हुए बस यही सोच रहे थे कि आज तक जिन लोगों को वे खड़ूस औऱ बेरहम समझ रहे थे , वे हक़ीक़त में कुछ औऱ ही निकल गए ।

शिक्षा:- अक़्सर हमारे नकारात्मक विचारों के कारण किसी भी व्यक्ति के प्रति हमारे मन में जो धारणा बन जाती है वो हमेशा सही नहीं होती । क़भी क़भी लोग इतने भी बुरे नहीं होते जितने हम उन्हें मान बैठते हैं ।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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