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पुण्य की महत्ता

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पुण्य की महत्ता

एक बहुत अमीर धनपति था। वह नित्य ही एक घी का दीप जलाकर मंदिर में रख आता था। एक निर्धन व्यक्ति था,वह सरसों के तेल का एक दीपक जलाकर नित्य गली में रख देता था।वह अंधेरी गली थी। दोनों मरकर यमलोक पहुँचे तो धनकुबेर उस अमीर को निम्न स्थिति की सुविधाएँ दी गई,और उस निर्धन को उच्चश्रेणी की। यह व्यवस्था देखी तो धनकुबेर ने धर्मराज से पूछा- यह भेद क्यों,जबकि मैं भगवान के मंदिर में दीपक जलाता था,वह भी घी का।

धर्मराज मुस्कुराएँ और बोले- पुण्य की महत्ता मूल्य के आधार पर नहीं, कार्य की उपयोगिता के आधार पर होती है। जहां तुमने घी के दिए जलाए वो मंदिर तो पहले से ही प्रकाशवान था, पर उस निर्धन व्यक्ति ने ऐसे स्थान पर प्रकाश फैलाया, जो गली अंधेरी थी..उसके दीपक के प्रकाश में हजारों व्यक्तियों ने लाभ उठाया।

मित्रों…ईश्वर आपके कार्य से मानव मात्र को प्राप्त होने वाली उपयोगिता पर प्रसन्न होते हैं ना कि धन या दिखावे पर..!!

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जय श्रीरा

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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