सुविचार-सुन्दरकाण्ड-88
जय श्री राधे कृष्ण ……. "अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई, प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई, कछुक दिवस जननी धरु धीरा, कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा…..!! भावार्थ:- हे माता ! मैं आप को अभी यहां से लिवा जाउँ, पर श्री राम चंद्र...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई, प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई, कछुक दिवस जननी धरु धीरा, कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा…..!! भावार्थ:- हे माता ! मैं आप को अभी यहां से लिवा जाउँ, पर श्री राम चंद्र...
एक बार एक मानव एक सन्त के पास गया और बोला आप मुझे दीक्षा देकर मेरा उद्धार कीजिये परन्तु मेरी कुछ मांगों को पूरा करके मुझ पर कृपा करें आशा है कि आप मुझे निराश नही लौटायँगे सन्त उसके भाव...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "ठंडा पानी और गरम प्रेस कपड़ों की सिकुड़न व सलवटें निकाल देतें हैं,ऐसे ही ठंडा दिमाग और ऊर्जा से भरा हुआ दिल जीवन की सारी उलझने मिटा देते हैं….!! सुप्रभात आज का दिन प्रसन्नता से...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "जौं रघुबीर होति सुधि पाई, करते नहिं बिलम्ब रघुराई, राम बान रबि उएं जानकी, तम बरुथ कहं जातुधान की….!! भावार्थ:- श्री राम चंद्र जी ने यदि खबर पाई होती, तो वे विलम्ब न करते ।...
पीठ पर एक छोटा सा बैग, धड़ पर पिंक टी शर्ट , आंखों पर फैंसी सा चश्मा, टखनों के ऊपर तक सीमित नेवी ब्लू पतलून और नीचे लॉफर शूज पहने स्पाइक हेयरकट वाला वो 18 -19 साल का कूल ड्यूड...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "परिस्थिति कुछ भी हो, डट कर खड़े रहना चाहिए। सही समय आने पर खट्टी कैरी भी मीठा आम बन ही जाती है…!! सुप्रभात आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो.....
जय श्री राधे कृष्ण ……. "निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु, जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु……!! भावार्थ:- राक्षसों के समूह पतंगों के समान और श्री रघुनाथ जी के बाण अग्नि के समान हैं। हे माता! हृदय में...
ईसा से लगभग सौ वर्ष पहले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या पहुँचे थे। तब तक अयोध्या उजड़ चुकी थी। यहाँ उनकी भेंट तीर्थराज प्रयाग से हुई। तीर्थराज ने उन्हें अयोध्या और सरयू के बारे में बताया। विक्रमादित्य ने अपनी उलझन...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "गलत व गलती में बहुत छोटा फर्क होता है। गलत सदा गलत नीयत से ही संभव होता है जबकि गलती सदा भूलवश होती है इसलिए गलतियां तो कीजिये पर गलत किसी के साथ मत कीजिये….!!...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "कह कपि हृदयँ धीर धरु माता, सुमिरु राम सेवक सुखदाता, उर आनहु रघुपति प्रभुताई, सुनि मन बचन तजहु कदराई….!! भावार्थ:- हनुमान जी ने कहा- हे माता ! हृदय में धैर्य धारण करो और सेवकों को...