lalittripathi@rediffmail.com
Stories

सर्वस्व दान

226Views

सर्वस्व दान

एक पुराना मन्दिर था! दरारें पड़ी थी!| खूब जोर से वर्षा हुई और हवा चली ! मन्दिर बहुत-सा भाग लड़खड़ा कर गिर पड़ा! उस दिन एक साधु वर्षा में उस मन्दिर में आकर ठहरे थे! भाग्य से वे जहाँ बैठे थे, उधर का कोना बच गया! साधु को चोट नहीं लगी! साधु ने सबेरे पास के बाजार में चंदा करना प्रारम्भ किया! उन्होंने सोचा – ‘मेरे रहते भगवान् का मन्दिर गिरा है तो इसे बनवाकर तब मुझे कहीं जाना चाहिये!’

बाजार वालों में श्रद्धा थी! साधु विद्वान थे! उन्होंने घर-घर जाकर चंदा एकत्र किया! मन्दिर बन गया! भगवान् की मूर्ति की बड़े भारी उत्सव के साथ पूजा हुई! भण्डारा हुआ! सबने आनन्द से भगवान् का प्रसाद लिया! भण्डारे के दिन शाम को सभा हुई| साधु बाबा दाताओं को धन्यवाद देने के लिये खड़े हुए! उनके हाथ में एक कागज था! उसमें लम्बी सूची थी! उन्होंने कहा – ‘सबसे बड़ा दान एक बुढ़िया माता ने दिया है! वे स्वयं आकर दे गयी थीं!’

लोगों ने सोचा कि अवश्य किसी बुढ़िया ने सौ-दो-सौ रुपये दिये होंगे! कई लोगों ने सौ रुपये दिये थे! लेकिन सबको बड़ा आश्चर्य हुआ!

जब बाबा ने कहा – ‘उन्होंने मुझे चार आने पैसे और थोड़ा-सा आटा दिया है! लोगों ने समझा कि साधु हँसी कर रहे हैं!

साधु ने आगे कहा – ‘वे लोगों के घर आटा पीसकर अपना काम चलाती हैं! ये पैसे कई महीने में वे एकत्र कर पायी थीं! यही उनकी सारी पूँजी थीं! मैं सर्वस्व दान करने वाली उन श्रद्धालु माता को प्रणाम करता हूँ!’

लोगों ने मस्तक झुका लिये! सचमुच बुढ़िया का मनसे दिया हुआ यह सर्वस्व दान ही सबसे बड़ा था!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

1 Comment

Leave a Reply to SUBHASH CHAND GARG Cancel reply