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गोपी के गोपाल

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गोपी के गोपाल

एक छोटा सा पांच साल का बालक था गोपी। वह अपनी मां के साथ रहता था। उसकी मां मेहनत मजदूरी का काम करती थी । गोपी इसी साल से जंगल के रास्ते से  पाठशाला में पढ़ने जाता था। वह बहुत ही सीधा साधा और शांत बालक था। उसकी मां किसी तरह मजदूरी में मिले पैसे से उसका और अपना पर भरती थी । पाठशाला में कोई बच्चे उससे दोस्ती नहीं करते थे । इससे गोपी बहुत ही उदास रहता था। एक दिन अपनी मां से आकर कहता है मेरे कोई दोस्त नहीं है। उसकी मां समझ जाती है कि हमारी गरीबी के कारण मेरे बेटे को कोई अपना दोस्त नहीं बनाना चाहता। वह गोपी को कृष्ण भगवान की कहानी सुनाती है और उनकी मूर्ति के पास ले जाकर कहती है कि  यह” गोपाल” है। यही तुम्हारे मित्र हैं। तुम इन्हीं से बातें करना ।ये सबकी इक्क्षा पूरी करते हैं। रातभर गोपी के सपने में गोपाल  दिखाई देते हैं।

दूसरे दिन शाम को गोपी  जंगल के रास्ते से वापस आ रहा था  उसे एक बालक मिलता है। गोपी को रोककर उससे बातें करने लगता है और बताता है कि मैं गोपाल हूं ।अब रोज गोपी गोपाल से मिलता था। दोनों खेलते थे। गोपाल उसके लिए खाने पीने की चीजें लाता था।

 एक दिन  गुरुजी  सभी बालकों को कहते हैं कि कल  पाठशाला में सरस्वती पूजन होगा और सब मिलकर वनभोज करेंगे ।इसलिए तुम लोग अपने अपने  घर से खाना बनाने का  सामान लेकर आना और पांच  पांच बच्चों  का समूह बनाकर अलग-अलग प्रकार सामान  जैसे चावल,दाल, सब्जी,दूध आदि लाने को कहते हैं ।

गोपी को दूध लाना होता है ।वह घर आकर अपनी मां को बताता है कि कल मुझे दूध लेकर जाना है। उसकी मां चिंता में पड़ जाती है। उसे मजदूरी के पैसे भी नहीं मिले रहते हैं।वह जाकर सबसे पैसे मांगती है लेकिन अभी  मजदूरी के दिन पूरे ना होने के कारण कोई भी पैसे नहीं देते हैं ।दूसरे दिन सुबह फिर कोशिश करती है ,लेकिन कहीं  पैसे मिलते हैं, ना ही दूध।

गोपी पाठशाला नहीं जाना चाहता ।लेकिन मा उसे समझाकर भेज देती है कि बाकी के बालक तो दूध लाये होंगे। तुम गुरुजी को दूध न ला पाने का कारण बात देना।

पाठशाला जाते समय गोपी बहुत ही उदास होता है ।वह जंगल में पहुंचता है तो उसका मित्र गोपाल उसका इंतजार करते रहता है ।गोपी इस समयसे देखकर पूछता है आज तुम अभी । गोपाल मुस्कुराते हुए कहता है  आज मुझे तुमसे अभी मिलने का मन किया इसलिए मैं अभी आ गया हूं ।आज तो तुम बहुत उदास दिख रहे हो ।तब गोपी उसे अपनी समस्या बताता है। गोपाल कहता हैं  रुको में आता हूँ।वह थोड़ी दूर जाकर आता है। गोपी को एक छोटे से लोटे में दूध देता है और कहता है ये लो दूध ले जाओ। गोपी खुशी ख़ुशी पाठशाला पहुंचता है और गुरु जी को दूध का लोटा देता है । गुरु जी बहुत ही क्रोधित हो जाते हैं और  कहते हैं इतना थोड़ा सा दूध लाया है । इससे क्या होगा।जा गुरु मां को दे देना। गोपी अंदर जाता है और दूध का लोटा  गुरु मां को दे देता है।जब गुरु मां दूध को दूसरे बर्तन में खाली करती है तो बर्तन बर्तन भर जाता है। ऐसे बहुत सारे बर्तन भर जाते हैं  पर लोटे का दूध खत्म नही होता।वो एकदम से डर जाती है और गुरु जी को पुकारने लगती है ।गुरु जी आते हैं तो उन्हें दिखाती है  की छोटे से लोटे का दूध  बर्तनों में डाला तो इतना सारा हो गया है ।उनको लगता है कि यह क्या जादू हो रहा है।

   गुरु जी गोपी को डांटने लगते हैं कि तू  कहाँ से दूध लाया है। देख  क्या जादू हो रहा है ।गोपी बताता है कि मेरा एक मित्र है गोपाल और गोपाल के बारे में सारी बातें बताता है।

 गुरु जीउसकी बातों पर विश्वास नहीं करते हैं और कहते हैं अपने मित्र से मिलवा ।गुरु जी, गुरु मां और सारे बालक गोपी के पीछे पीछे चलने लगते हैं और जंगल में पहुंचते हैं। गोपी अपने मित्र गोपाल को आवाज देने लगता है। गोपाल मुस्कुराते हुए आ जाता है। लेकिन वह किसी को दिखाई नहीं देता, केवल गोपी को दिखाई देता है ।गोपी उनसे उससे कहता है कि इनको विश्वास नहीं हो रहा है कि दूध तुमने दिया है ।गुरु जी कहते हैं तुम अकेले किससे बातें कर रहे हो। यहां तो कोई नहीं है। सब केवल गोपी को देखते रहते हैं।

 तब गोपी गोपाल से  कहता है कि यह लोग तुम्हें नहीं देखेंगे तो इन्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं होगा।तब गोपाल सबके सामने प्रकट रूप में आते हैं और गुरु जी और सभी को दिखाई देने लगते हैं ।गुरु जी तो उनको देखकर पहचान जाते हैं यह तो हमारे मदन मोहन, श्री कृष्ण, मुरलीधर हैं ।यही गोपी के मित्र हैं। वह उनके चरणों में गिर जाते हैं और क्षमा मांगने लगते हैं । गोपी से भी क्षमा मांगते हैं । कहते हैं आज तुम्हारे कारण हमें ईश्वर  साक्षात दर्शन हो गए।

 भगवान अपने असली रूप में सबको दर्शन देते हैं।गोपी भी जान जाता है कि भगवान ही मेरे मित्र गोपाल के रूप में आते हैं। इस प्रकार गोपी के सीधे सादे ,निश्छल मन के कारण भगवान ही उसके मित्र बन जाते हैं।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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