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सवाल इज्ज़त का है

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सवाल इज्ज़त का है

एक बार एक पहलवान रात को कहीं जा रहा था कि अंधेरे का फ़ायदा उठाकर चार चोरों ने उसपर हमला कर दिया। लेकिन पहलवान उनसे इस तरह भिड़ गया जैसे कोई बहादुर इंसान लड़ सकता था औऱ उसने चारों को पस्त कर दिया। वे चार थे लेकिन पहलवान ने उनकी हड्डी पसली तोड़ दी । कुछ समय बाद बामुश्किल वे चारों चोर उस पहलवान पर  काबू पा सके। उसके बाद फिर जब उसकी जेब में हाथ डाला तो केवल एक अठन्नी निकली तब वे हैरान रह गए। उन्होंने पहलवान से पूछा कि आज अगर तेरे पास कुछ रुपए होते तो तू हमें जिंदा नही छोड़ता। हद कर दी तूने भी। अठन्नी के पीछे ऐसी मारकाट मचाई और हमलोग भी इसलिए बर्दाश्त कर गए क्योंकि हमें लगा तेरे पास बहुत माल है। अजीब आदमी है तू तो……

पहलवान ने कहा – सवाल कम या ज्यादा माल का नहीं है बल्कि सवाल इज्ज़त का है। अपनी माली हालत मैं बिल्कुल अजनबी लोगों के सामने प्रकट नहीं करता । जेब में अठन्नी ही है लेकिन उससे मेरी आबरू तब तक ढकी हुई है जब तक कोई सच्चाई जान नहीं जाता। तुम लोग ये हकीकत जान कर मुझें बेआबरू न कर पाओ इसलिए मैं लड़ा। अगर मेरे पास दो लाख रुपये रहते तो मैं खुशी खुशी तुम लोगों को दे देता ।

गुलामी के कई दशक राष्ट्र रक्षा युद्ध में धर्म छूट गया। हिंदुओं ने धर्म के लिए लड़ना ही छोड़ दिया वरना जब तक लड़े तब तक सभी आततायियों को धूल धूसरित किया, उनका मान मर्दन कर उनको कुत्ते की मौत मारा।

हिंदुओं ने लड़ने की प्रवृत्ति त्याग दिया तो अहिंसा के नाम पर सेक्युलरों की नई नस्ल पैदा हो गयी जिसे न राष्ट्र से मतलब रहा न धर्म से और यही नस्ल हिन्दू धर्म को घुन की तरह खा रही है। धर्म विरोधियों से पहले इनका इलाज ही जरूरी है।

बाकी सनातन धर्म ही हर हिन्दू की आबरू है, मान सम्मान है और उसे बचाने के लिए पहलवान की तरह हमेशा युद्ध को तत्पर रहना हमारी सनातन संस्कृति है। इसे जिंदा रखिये।

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जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
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