lalittripathi@rediffmail.com

Month Archives: May 2024

Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-168

जय श्री राधे कृष्ण ……. "कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई, जब तव सुमिरन भजन न होई, केतिक बात प्रभु जातुधान की, रिपुहि जिति आनिबी जानकी ।। भावार्थ:- हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु! विपत्ति तो वही (तभी) है जब आप...

Stories

भावुक प्रसंग -मीरा चरित्र जरूर पढ़ें

भावुक प्रसंग -मीरा चरित्र जरूर पढ़ें मीरा को चित्तौड़ में आये कुछ मास बीत गये । गिरधर की रागसेवा नियमित चल रही है ।मीरा अपने कक्ष में बैठे गिरधरलाल की पोशाक पर मोती टाँक रही थी । कुछ ही दूरी...

Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-167

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सुन सीता दुख प्रभु सुख अयना,भरि आए जल राजिव नयना, बचन काय मन मम गति जाही,सपनेहुँ बूझिअ बिपति कि ताही ।। भावार्थ:- सीता जी का दु:ख सुन कर सुख के धाम प्रभु के कमल नेत्रों...

Stories

सुखी जीवन का रहस्य

सुखी जीवन का रहस्य पुराने समय में एक राजा था। राजा के पास सभी सुख-सुविधाएं और असंख्य सेवक-सेविकाएं हर समय उनकी सेवा उपलब्ध रहते थे। उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी। फिर भी राजा उसके जीवन के सुखी नहीं...

Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-166

जय श्री राधे कृष्ण ……. "सीता कै अति बिपति बिसाला, बिनहिं कहें भलि दीनदयाला ।। भावार्थ:- सीता जी की विपत्ति बहुत बड़ी है । हे दीनदयालु! वह बिना कही ही अच्छी है (कहने से आपको बडा़ क्लेश होगा) ।। निमिष...

Quotes

आचरण और व्यवहार हमारा सबसे बड़ा परिचय है

आचरण और व्यवहार हमारा सबसे बड़ा परिचय है शेर की गर्जना सदियों पहले जैसी बनी हुई है। भैंसा आज भी हजार वर्ष पहले जैसा है। गुस्सा आता है तो वह किसी को भी मार डालता है। सांप पहले जैसे फुफकारता...

Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-165

जय श्री राधे कृष्ण ……. "बिरह अगिनि तनु तूल समीरा, स्वास जरइ छन माहिं सरीरा, नयन स्त्रवहिं जलु निज हित लागी, जरैं न पाव देह बिरहागी ।। भावार्थ:- विरह अग्नि है, शरीर रुई है, और श्वास पवन है, इस प्रकार...

Stories

मदद और दया सबसे बड़ा धर्म

मदद और दया सबसे बड़ा धर्म कहा जाता है दूसरों की मदद करना ही सबसे बड़ा धर्म है। मदद एक ऐसी चीज़ है जिसकी जरुरत हर इंसान को पड़ती है, चाहे आप बूढ़े हों, बच्चे हों या जवान; सभी के...

Quotes

सुविचार-सुन्दरकाण्ड-164

जय श्री राधे कृष्ण ……. "अवगुन एक मोर मैं माना, बिछुरत प्रान न कीन्ह पयाना, नाथ सो नयनन्हि को अपराधा, निसरत प्रान करहिं हठि बाधा ।। भावार्थ:- हाँ, एक दोष मैं अपना अवश्य मानती हूँ कि आपका वियोग होते ही...

1 5 6 7
Page 6 of 7