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बेटी और बहू

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बेटी और बहू

कांता देवी अपने सात साल के पोते के साथ क्रिकेट खेल रही थी। अंशु कह रहा था दादी आप बॉलिंग करो। “अंशु बेटा दादी तो बुढ़िया है। देखो ज्यादा नहीं दौड़ सकती।”….”दादी मैं जोर से नहीं मारूंगा”….दादी पोते का मैच चल ही रहा था कि गेट पर आहट‌ हुई। देखा तो अंशु की बुआ कामिनी आ रही थी।

बुआ! अंशु दौड़ कर बुआ की पैरों से लिपट गया। झट से बुआ के पैर छूकर कहा “बुआ आप इतने दिनों बाद क्यों आये”? बुआ ने पर्स से अंशु को उसकी फेवरेट चॉकलेट निकाल कर दी और प्यार से उसे पूछा कैसा है मेरा बच्चा? जवाब में अंशु ने गर्दन हिला दी। कामिनी ने मां के गले लगते हुए कहा कैसी हो माँ? माँ मुस्कुराती हुई बोली मैं ठीक हूँ। तू आज कितने दिनों बाद आयी है?

“अरे माँ बैंक के जॉब का तो तुम्हें पता ही है छुट्टी मिलती कहां है? आज छुट्टी ली थी तो सोचा तुमसे मिल आऊँ।”  दोनों माँ बेटी बातें करने लगे। कांता जी बिटिया के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करने लगी। चाय पीते हुए कामिनी ने कहा “माँ भैय्या और भाभी ने तो तुम्हें अपने बच्चे की आया बना कर रख दिया है। इस उम्र में तुम सारा दिन अंशु के पीछे दौड़ती रहती हो, ये उम्र है तुम्हारी बच्चे पालने की। दोनों अच्छा कमा रहे हैं। डे बोर्डिंग में डाल सकते हैं।”

प्रकाश कामिनी का भाई इंजीनियर है और भाभी रमा प्रोफेसर है। “उन्होंने तो तुम्हें अपने घर का चौकीदार बना दिया है।”  कांता देवी ने कहा अरे कामिनी! तू ये क्या बातें लेकर बैठ गई है। माँ के पास आई है। दो चार मन बहलाने वाली बातें कर। माँ मुझ से तुम्हारी ये हालत देखी नहीं जाती। तुम कहो तो मैं भाभी से बात करती हूँ।‌

कांता देवी चौंक ग‌ईं। “खबरदार जो इस तरह की फालतू बात की अपनी भाभी से। जब गुड़िया पैदा हुई थी तब से लेकर उसके पाँच साल की होने तक जो रोज ऑफिस जाते हुए तुम उसे यहां छोड़ जाती थी। तब तो तुम्हें कभी नहीं लगा कि मेरी उम्र हो गई है। अब तुम्हारे बच्चे तुम्हारे सास ससुर के साथ रहते हैं तो क्या तुम्हारे सास  ससुर जवान हैं? पर माँ….! पर वर कुछ नहीं। मैं सही सलामत हूँ। प्रकाश और रमा मेरा बहुत ख्याल रखते हैं।सारे काम के लिए नौकर हैं। और मैं अपने पोते को जरा सा देख लेती हूँ। तो मैं आया बन गई। सच तो ये है कि अंशु के बहाने मैं अपना बचपन जी लेती हूं। मुझे अच्छा लगता है। जब वो सारा दिन दादी दादी करके मेरे पीछे घूमता रहता है। माँ तुम तो कुछ समझती नहीं बड़ी भोली हो। देख बेटा ये मेरा घर है। इसे कैसे चलाना है। मैं और रमा देखेंगे। तू अपना घर देख। और हां एक बात और परिवार का जो सदस्य घर पर रहता है वो चौकीदार नहीं होता। ये हम सबका घर है और इसकी देखभाल की जिम्मेदारी हम सबकी है। इतने में रमा भी आ गई।  उसके चेहरे पर थकान झलक रही थी।

 कामिनी को देख कर मुस्कराई पैर छूकर बोली दीदी! इस बार आप बहुत दिनों बाद आयी हैं। सब कैसे हैं घर पर? कामिनी बोली सब ठीक हैं। अरे माँ आप मुझे फोन कर देती तो मैं हलवाई के यहां से दीदी के फेवरेट समोसे और रसमलाई ले आती। मैं इन्हें फोन कर देती हूँ। कि ये आ रहें हैं, ले आयेंगे। जा कर हाथ मुँह धोकर कपड़े बदल थक गई है। कांता जी ने प्यार से उसे देखते हुए कहा। रमा फ्रेश होकर आ कर बैठ गई।

दीदी ‌आप कब आये? यही कोई दो घंटे पहले कामिनी फीकी सी हँसी हँस दी। अरे वाह! तब तो आपने माँ से बहुत गप्पें लडा़ई होंगी। मैंने मिस कर दिया। हाँ हमने बहुत सारी बातें की। इसे ‌सीख दे रही थी। बहुत दिनों बाद आयी है। इसलिए इसका कोर्स छूटा हुआ था। तो हो गया कोर्स पूरा? रमा खिल‌खिलाते हुए बोली। नहीं अभी थोड़ा बाकी है। कांता जी हँस कर बोली अरे दीदी ‌माँ एक बहुत अच्छी टीचर हैं ।वह जो भी सिखाना चाहती हैं। सिखा कर छोड़ती हैं। कामिनी दोनों का मुंह ताक रही थी। किसी साथी की सवारचित रचना

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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