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अच्छा बेटा या अच्छा पति

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अच्छा बेटा या अच्छा पति

पंद्रह घंटे का थकान भरा सफर कर चंचल अपने छोटे भाई समीर की शादी अटेंड कर दस दिन बाद आज ही घर आई थी। अपने तीन साल के बेटे प्रिंस को सोफे पर बिठाकर अभी वो अपने कमरे में जा ही रही थी कि ममता जी ने उससे कहा, ” बहू अब फटाफट से खाना बना ले। तेरी दोनों ननदे ससुराल से आज आ रही है। तो जो भी बनाना उनकी पसंद का बनाना। मैंने जरूरत का सारा सामान भी मंगवा कर रख दिया है”…..अपने कमरे की तरफ जाती हुई चंचल के पैर तो वही ठिठक गए। मन ही मन सोचने लगी कि ननदों को भी पता था कि मैं पंद्रह घंटे का सफर तय करके थकी हारी घर आऊंगी। फिर आज आने की क्या सूझी जबकि दोनों यही पास में ही रहती है। और हर रविवार को यहां आ जाती है।

इतने में बाहर ऑटो वाले को पैसे देकर उसका पति संजय भी अंदर आया और आकर सोफे पर पसर गया। उसे देखकर ममता जी बोली,  ” अरे! मेरा बेटा थक गया क्या? बहुत दूर है तेरा ससुराल तो। पता नहीं समधी समधन को क्या सूझी, जो तेरी शादी के बाद इतनी दूर जाकर शिफ्ट हो गए। अगर मुझे पता होता तो मैं इतनी दूर तेरा ससुराल कभी ना करती”

“अब मां इसमें हमारे बस की बात थोड़ी ना है। जहां पर बच्चों का काम होगा, माता-पिता वहां अपने आप ही शिफ्ट हो जाते हैं। फिर मम्मी जी पापा जी अकेले भी क्या करते यहाँ पर “…..संजय ने अपने सास-ससुर का पक्ष रखते हुए कहा।

ममता जी मुंह बनाती हुई चंचल की तरफ देख कर बोली, ” अब खड़ी खड़ी यहां क्या कर रही है? जा फटाफट से चाय बना कर ले आ। देख नहीं रही कि ये कितना थक गया है”……ममता जी की बात सुनकर संजय हंसते हुए बोला, ” अरे मां, मैं अकेला थोड़ी ना थका हूं। वो भी तो थकी है। वो भी मेरे साथ ही तो आई है”

” तो इतनी दूर से ट्रेन में बैठी-बैठी तो आई है। कौन सा ट्रेन में कोई काम कर रही थी, जो थक गई”….ममता जी चिढ़ती हुई बोली।

चंचल ने अपने लगेज की तरफ देखा तो संजय ने कहा, ” तुम जाओ और चाय बना लो। तब तक मैं ये सारे बैग उठाकर कमरे में रख देता हूं”……उसकी बात सुनकर चंचल तो रसोई में चली गई। पीछे से संजय उठकर बैग उठाकर कमरे में रखने लगा तो ममता जी बोली, “अरे थोड़ा आराम कर ले। अभी अभी थका हुआ तो आया है। बैग उठा कर वो नहीं रख सकती क्या, जो उसका काम तू कर रहा है”

“मां उसमें उसका काम और मेरा काम क्या है?…. इसमें मेरा भी तो सामान है।‌ अगर मैं रख दूंगा तो काम जल्दी ही फ्री होगा। फिर सोच रहा हूं कि बाहर से ही कुछ मंगा लेता हूं। बहुत जोर से भूख लग रही है। अब चंचल भी थक गई होगी तो क्या खाना बनाएगी”……”क्यों खाना क्यों मंगा रहा है? अभी तेरी दोनों बहने मधु और मेघा भी तो आ रही है यहां पर। उन्हें क्या बाहर का खाना खिलाएगा”

ममता जी की बात सुनते ही संजय जहां था,‌ वही रुक गया।  ” क्या मेघा दी और मधु दी आ रही है? आज अचानक कैसे आ रही है?”…..” अब तुझे देखे हुए काफी दिन हो गए थे तो इसलिए आ रही है। वो तो उनके बच्चों की परीक्षाए चल रही है। छुट्टियां नहीं मिली। नहीं तो बच्चों को भी लेकर ही आती”

” बहुत दिन तो कहां हो गए मां। अभी पाँच दिन पहले यहां से गया था तब तो दोनों ही मुझसे मिलकर गई थी”……संजय ने धीरे से कहा।  ” ये तो उनका प्यार है तेरे लिए जो वो तुझसे मिलने आना चाहती है। तो इसलिए बाहर से खाना मत मंगा। चुपचाप बहू को बोल दे कि उनकी पसंद की चीज बना दे। मेरी बेटियां कोई बाहर का आया हुआ खाना नहीं खायेगी “

“पर मां, चंचल भी तो थक चुकी है। पंद्रह घंटे का सफर कुछ कम नहीं होता है। ऊपर से तीन साल का बेटा है। ट्रेन में कितना परेशान कर दिया उसने”…..” एक बच्चे में ही थक गए तुम लोग। मैं भी तो तुम तीनों को ले लेकर के जाती थी तुम्हारी ननिहाल “……

” मां वो पंद्रह घंटे का रास्ता नहीं था “……” लेकिन एक घंटे तो ट्रेन में सफर करती ही थी ना। तब तो मेरी मदद के लिए कोई नहीं आता था। वो भी तीन तीन बच्चों के साथ”

” मां आपने क्या किया, वो आप जानो। आपकी सास ने आपके साथ क्या-क्या किया, आप जानती हो। लेकिन आपके साथ जो हुआ उसे बहू पर थोपना तो गलत है ना।‌भला उसका बदला बहू से क्यों?”……….” तेरे पापा ने तो कभी पलट कर जवाब नहीं दिया तेरी दादी को, जो तू अपनी पत्नी के लिए मेरे सामने हो जाता है”

” मां, पापा और मुझ में फर्क है। आप हर चीज में कंपेयर क्यों करते रहते हो? मेघा दी और मधु दी आ रही है तो उन्हें भूखा तो वापस नहीं भेजूंगा। लेकिन हां, खाना मैं बाहर से ही मंगा रहा हूं। चंचल भी थक चुकी है। उसे भी आराम चाहिए। अभी तो काम पर लगा दोगे। फिर बीमार पड़ गयी तो दो-तीन दिन तक घर का काम खुद करोगे। उससे बेहतर है खाना बाहर से ही मंगा ले”…..कहकर संजय ने खाना बाहर से ही ऑर्डर कर दिया।

ये देखकर ममता जी तिल मिलाकर रह गई। खैर, थोड़ी देर बाद अभी तीनों बैठकर चाय पी ही रहे थे कि  मेघा और मधु भी आ गई। उन्हें देखकर अम्मा जी बहुत खुश हुई। अभी वो लोग बैठकर हाल-चाल पूछ ही रही थी कि इतने में डिलीवरी बॉय खाना देने आ गया। संजय ने जाकर खाना लिया और पेमेंट कर के आ गया। ये देखकर मधु और मेघा ने ममता जी की तरफ इशारा करके पूछा कि क्या बात है खाना बाहर से क्यों मंगाया है?….

” भैया आजकल की बहूओ को जोर आता है ननदों के लिए खाना बनाने में इसलिए बाहर से खाना आया है “……ममता जी भी धीरे से बोली। पर ये बात चंचल को सुनाई दे गई। पर वो कुछ ना बोली बस उठकर रसोई में आ गई। क्योंकि वो जरा सा बोलेगी तो ममता जी दस बाते सुनाएगी। और इस बार तो दो ननदे भी साथ बैठी हुई थी।

संजय और चंचल ने मिलकर खाना निकाला और सब लोग साथ ही खाना खाने बैठ गए। इतने में मेघा बोली, ” कुछ भी कहो चंचल, तुम बड़ी भाग्यवान हो जो तुम्हें ऐसा ससुराल मिला है। पूरे परिवार के साथ बैठकर खा रही हो। वरना हम तो रोटियां बेल बेल कर ही परेशान हो जाते हैं”

” तुम्हें तो इसके लिए बहुत दान धर्म करने चाहिए और भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहिए जो तुम्हें हमारा भाई मिला। जो कम से कम यह तो समझता है कि बीवी थकी हुई है तो बाहर से खाना मंगा लो। वरना हमारे पति तो खाना बनवा ही लेते थे हमसे”…..मधु भी साथ की साथ बोली, पर चंचल मुस्कुरा कर रह गई।

” अरे वो तो मेरी दोनों बेटियां एक ही घर में है जो हिल मिलकर काम कर लेती है। नहीं तो इतना बड़ा परिवार है, कोई और होती तो बहुत बुरी हालत हो जाती”

” पर मां, कुछ भी कहो। ये तो इन दोनों की किस्मत इतनी अच्छी है इनकी सासू मां बराबर इनके साथ रसोई में लगी रहती है खाना बनाने के लिए। और क्या शानदार खाना बनाती है। और इनकी दोनों ननदें भी कोई भी काम हो, भाग भाग कर काम संभालती है”

संजय ने कहा तो ममता जी तुनकते हुए बोली,  ” क्यों तेरी बहनों ने क्या तेरी शादी में भाग-भाग कर काम नहीं किया था?” ……” तो अम्मा मैं कहां इनकी बुराई कर रहा हूं। मैं तो बता रहा हूं कि उनके परिवार वाले भी काफी मिल जुल कर काम करते हैं”

थोड़ी देर खाना खा लेने के बाद सब लोग बैठे तो मेघा ने कहा, ” अरे चंचल तुम्हें तो बहुत सारी विदाई मिली होगी। आखिर तुम तो इकलौती बहन हो। जरा हमें भी विदाई दिखाओ तो सही”…..तभी मधु भी बोली, ” हां हां, हम तो आज इसीलिए लिए आए हैं कि हम भी तो देखें आखिर हमारी भाभी को अपने मायके से क्या-क्या मिला है “???????

जब दोनों ने कहा तो चंचल उन्हें अपने साथ ही कमरे में ले गई। पूरा परिवार वही बेडरूम में ही बैठ गया। तब चंचल ने विदाई वाले बैग खोल कर दिखाएं। सचमुच बहुत सुंदर-सुंदर साड़ियां थी। ” अरे वाह! ये तो कितनी शानदार साड़ी है। इस पर तो एंब्रॉयडरी वर्क किया हुआ है। लगता है हाथों से किया है। है ना”…..मेघा ने पूछा तो चंचल बोली, ” हां दीदी, ये मां ने स्पेशली कहकर मेरे लिए बनवाई थी। बहुत महंगी पड़ी पर ” ” अरे तो हाथ की कारीगरी तो वैसे भी महंगी ही पड़ती है। मुझे तो ये साड़ी बहुत ही पसंद आई “…..बीच में ही मधु भी बोल पड़ी।

उसकी बात सुनकर चंचल मुस्कुरा दी लेकिन तभी ममता जी बोली, ” अरे मधु, तुझे ये साड़ी चाहिए तो तू रख ले। भाभी होने के नाते चंचल तुझे तो दे ही सकती है “……ममता जी की बात सुनते ही चंचल के चेहरे से मुस्कुराहट ही गायब हो गई। लेकिन संजय बीच में ही बोल पड़ा, ” दीदी, आप लोगों को ऐसी साड़ियां चाहिए तो मैं बनवा दूंगा। इस बार रक्षाबंधन पर मेरी तरफ से ऐसी ही साड़ियां आप दोनों के लिए “

” अरे क्यों बेवजह खर्चा कर रहा है।‌ जब साड़ी है तो यही दे दे”……” पर मां, ये साड़ी तो चंचल की मम्मी ने उसे दिलवाई है। इसे हम कैसे ले सकते हैं”…..मधु ने कहा। ” हां मां, दीदी सही तो कह रही है ” संजय ने मधु का समर्थन किया।

” क्यों नहीं ले सकते। भाभी की चीज पर तो ननद का भी हक होता है। तेरी दादी तो सीधा हुकुम करती थी देने के लिए। और तेरे पापा तो मेरी चीज दिलवा भी देते थे अपनी बहनों को। और तू पता नहीं कौन सी दुनिया से आया है जो देने से ही इनकार कर देता है। पर एक अच्छे बेटे की तरह तेरे पापा ने ने कभी इंकार नहीं किया अपनी मां को और बहनों को”

” मां आपके सामने अच्छा बेटा बनने के चक्कर में मैं अपनी पत्नी के साथ गलत नहीं कर सकता। अभी तो तुम अपने सामने अपनी मनमानी कर लोगी। लेकिन आने वाले वक्त में उनका मायका बंद करवा दोगी। कड़वा बोल रहा हूं लेकिन सच बोल रहा हूं। आज तुम अपनी कौनसी ननद को घर पर बुला लेती हो। सच सच बताओ “

संजय की बात का ममता जी बुरा मानते हुए बोली, ” सही बात है, बीवी के सामने बहनों को कौन पूछता है। आज तु मेरे सामने ही ये कह रहा है तो कल को तो पूछेगा भी नहीं अपनी बहन को”

” मां तुम छोटी सी बात को कहां से कहां लेकर जा रही हो। ये छोटी-छोटी बातें ही तो होती है जो मायका बिगाड़ने का काम करती है। वैसे संजय ने गलत नहीं कहा है। हमें हमारी दोनों बुआ जी से मिले हुए भी काफी टाइम हो चुका है। सिर्फ इसी कारण की उन्होंने तुम्हारे साथ ऐसा किया और तुमने उनका मायके का रास्ता बंद कर दिया”

अपनी बेटियों को संजय के पक्ष में बोलता देखकर ममता जी तो मुंह फुला कर कमरे से निकल गई। लेकिन कम से कम मधु और मेघा को तो यह बात समझ में आ गई कि अगर भविष्य में अपना मायका सही सलामत रखना है तो कुछ चीजों पर नियंत्रण जरूरी है।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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