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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-137

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जय श्री राधे कृष्ण …….

निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारींं, भईं सभीत निसाचर नारीं ।।

भावार्थ:- बन्धन से निकल कर वे सोने की अटारियों पर जा चढ़े । उनको देखकर राक्षसों की स्त्रियाँ भयभीत हो गयीं ।।

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास, अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास ।।

भावार्थ:- उस समय भगवान की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगे । हनुमान जी अट्टहास कर के गरजे और बढ़ कर आकाश से जा लगे…. ।।

दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।

सुप्रभात

आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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