जय श्री राधे कृष्ण …….
“निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारींं, भईं सभीत निसाचर नारीं ।।
भावार्थ:- बन्धन से निकल कर वे सोने की अटारियों पर जा चढ़े । उनको देखकर राक्षसों की स्त्रियाँ भयभीत हो गयीं ।।
हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास, अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास ।।
भावार्थ:- उस समय भगवान की प्रेरणा से उनचासों पवन चलने लगे । हनुमान जी अट्टहास कर के गरजे और बढ़ कर आकाश से जा लगे…. ।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी ।
हरहु नाथ मम संकट भारी ।।
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
