पारिवारिक संस्कार व अनुशासन
उन महिलाओं के विषय में तो बहुत कुछ लिखा गया है, जो ससुराल में पीड़ित हुई हैं, लेकिन उन ससुराल वालों का क्या ? जो बहुओं से काफी दुःखी एवं पीड़ित हो रहे हैं…?….मेरे बहुत से परिचितों में कई घर ऐसे हैं, जो किसी से कुछ कह भी नहीं पाते हैं, वल्कि मन ही मन घुटते रहते हैं । कामकाजी महिलाएं अपनी आत्मनिर्भरता एवं स्वावलम्बी होने के कारण मनमानी करती हैं, कुछ स्वेच्छाचारी, निरंकुश महिलाएं तो अपने पति से ही अधिकांश घरेलू कामकाज कराती हैं । सास-ससुर से कोई मतलब नहीं रखतीं हैं, लड़के बेचारे दोनों तरफ सम्भालते रहते हैं । अपना एक रूपया भी किसी पर खर्च नहीं करना सिर्फ अपने लिए ही करना. और जब कभी समझाने की कोशिश की जाए तो दहेज़ लेकर आयी हूँ, कोई नौकरानी थोड़े ना हूँ.. इत्यादि तकिया कलाम….! और कोई कुछ अधिक बोल दे तो रूठकर मायके जाकर बैठ जाती हैं । जिन्हें माता-पिता भी प्रलोभनवश समझाने की कोशिश नहीं करते, क्योंकि उन्हें कमाने वाली और देखरेख करने वाली बेटी जो मिल जाती है, यही बेटियां पीहर में अपने माता-पिता के लिए तो सब कुछ करने के लिए तैयार रहती हैं, किन्तु ससुराल में अपने पति, सास-ससुर, देवर, जेठ एवं अन्य परिजनों से बेरुखी और अलगाव बना लेतीं हैं, अतिमहत्वाकांक्षी होकर भेदभाव का व्यवहार, दुराग्रहवश दुराभाव भी करतीं हैं ।
ये सारी बातें बच्चियों की वर्तमान परवरिश पर सवाल उठाती हैं, कि हम किस प्रकार से अपनी बेटियों को शिक्षा, सीख व संस्कार दे रहे हैं, जिन्हें लड़कों से बराबरी कर कंधे से कंधा मिलाकर चलना तो सिखा रहे हैं…. लेकिन उनके सुखद गृहस्थ जीवन को अंधकारमय, अवसादग्रस्त और भटकाव के गहरे गर्त में धकेल रहे हैं, इस धोखाधड़ी के फलस्वरूप उनकी खुशियों को ग्रहण लग जाता है, बेटियां ससुराली जीवन के वास्तविक आनन्द से वंचित हो जातीं हैं । अधिकांश माता-पिता बेटियों को पारिवारिक अनुशासन, संस्कार, मर्यादाओं की सीख देना कदापि भूल रहे हैं अथवा जानबूझकर नहीं दे रहे हैं । साथ ही बड़े बुजुर्गो की इज्जत करना, परिवार को सुरक्षित तरीके से सुगठित, परस्पर समन्वय, सामंजस्य, सहिष्णुता, सौजन्य सद्भाव, सौहार्द्र सहित मेल-जोल से चलाना इत्यादि सारी बातों को सिखाना भूल गए हैं । फलस्वरूप नयी पीढ़ी की नवविवाहिता बहुयें निश्छल मन से प्रेम, स्नेह, कारुण्यभाव रहित होकर क्रियमाणरत हैं, वही संचित दूषित कर्म से उनका प्रारब्ध सृजित करेगा, जिसका भोग कष्टप्रद रहेगा, यह श्रीमद् भगवद्गीता के सिद्धान्त सापेक्ष तथ्य है । वस्तुत: आज माॅं सती अनुसुइया जैसी पतिव्रत सीख और ससुरालीजनों से व्यवहृत होने वाली समझाहिश देने वाली माताओं का कदाचित अभाव है, अतिशय न्यूनता है । प्रत्युत अधिकांश माताएं कूटनीतिक भेदिये, गुप्तचर की भांति बेटियों की ससुराल से मोबाईल फोन द्वारा मिनिट टू मिनिट गतिविधि सूचना संकलन में विशेष अभिरुचि सहित निमग्न रहतीं हैं । अब तो स्त्री सुबोधनी, पतिव्रता नारी इत्यादि पुस्तकों, चारित्रिक साहित्य का अध्ययन, अवलम्बन, आश्रय, स्वाध्याय को सुनिश्चित सर्वथा विराम दे दिया गया है, अत्याधुनिक वर्तमान युग परिदृश्य में पारिवारिक संस्कारों को जीवटता प्रदान करने वाले उपरोक्त सभी घटक हास्यास्पद, हेय, परित्यज्य, अनुपयुक्त समझे जा रहे हैं । सभी माताओं एवं पिताओं से मेरी विनम्र करवद्ध प्रार्थना है, कि आपकी एक छोटी सी कोशिश से कई घरों में सुख-शांति बहाल हो सकती है, बेटियों को सही मार्गदर्शन करें, मोबाईल फोन द्वारा पूर्वाग्रह अभिरुचि के दोष से परहेज़ करें, तो कई घर, टूटने, चौपट होने से बच सकते हैं । प्रमुखतया युवावस्था के जोश में होश खोने वाली पीढ़ी की करनी बिगड़ने, फिसलने से निरापद, सुरक्षित रह सकती है, बेटियां इस जन्म के वर्तमान क्रियमाण व संचित कर्मों के प्रारब्ध भोग के प्रति सजग होकर विवेक को सम्हाल सकें और भगवदीय विचारों को आधार बनाकर, आस्थावान होकर श्रद्धा एवं विश्वास की पटरी पर सुसंस्कारित जीवन की गाड़ी को सहजता व कुशलतापूर्वक विधेयक लक्ष्य, मंजिल तक पहुंचा सकें । ताकि पीहर और ससुराल दोनों ही कुल कृतार्थ हो सकें, तदनुसार निष्पाप, निष्कलंक, निर्दोष जीवनशैली का आदर्श समुन्नत, सुस्थापित हो सके ।
समस्त नववधुओं से भी हार्दिक स्नेह सहित सानुरोध विशेषाग्रह है, कि वह भी अपने पारिवारिक जीवन के महनीय महत्व, गरिमा, मर्यादा, प्रतिष्ठा, आदर्श व मर्यादाओं का भरसक ध्यान रखें, भलीभांति समझें और विजातीय कलुषित भावनाओं, कुछ अतिक्रमणशील सदोष आदतों, क्रियाकलापों का पूरी तरह निग्रह, वहिष्कार, परित्याग करें । सभी वधुएं दोनों कुलों का मान सहेजने, संवारने का स्मरण रखते हुए मां सीता जैसे उद्दाम चरित्र व निष्पक्ष पवित्र आचरण का अनुकरण, अनुशीलन, अनुगमन, अनुपालन करें, सुनिश्चित रूप से आपका जीवन धन्य, सुफल, सार्थक, सुमंगलकारी ही होगा । पारिवारिक जीवन सुखद, स्नेहयुक्त, समन्वयक बनाने हेतु ईश्वर आप सबको सविवेक सकारात्मक सद्बुद्धि प्रदान करें । आपका जीवन निर्मल, निर्दोष व्यतीत होवे, ऐसी सद् भावनाओं, शुभकामनाओं सहित
(Copy n paste )
जय श्रीराम