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Month Archives: March 2024

Stories

तिजोरी

तिजोरी पत्नी के देवलोक गमन करने के बाद – एक दिन पत्नी के गहनें बेचकर – एक भारी – मज़बूत – अभेद – तिजोरी खरीद लाया। अपने कमरे की दीवार में फिक्स करवाने के बाद – घण्टों दरवाज़ा बन्द कर...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-122

जय श्री राधे कृष्ण ……. "प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि, गए सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि ।। भावार्थ:- खर के शत्रु श्री रघुनाथ जी शरणागतों के रक्षक और दया के समुद्र हैं । शरण जाने पर प्रभु तुम्हारा अपराध...

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दया की महिमा

दया की महिमा एक बहेलिया था। चिड़ियों को जाल में या गोंद लगे बड़े भारी बाँस में फँसा लेना और उन्हें बेच डालना ही उसका काम था। चिड़ियों को बेचकर उसे जो पैसे मिलते थे, उसी से उसका काम चलता...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-121

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जाकें डर अति काल डेराई, जो सुर असुर चराचर खाई, तासों बयरु कबहुं नहिं कीजै, मोरे कहें जानकी दीजै ।। भावार्थ:- जो देवता, राक्षस और समस्त चराचर को खा जाता है, वह काल भी जिनके...

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हनुमानजी ने तोड़ दिया था गरुड़ का अभिमान

हनुमानजी ने तोड़ दिया था गरुड़ का अभिमान भगवान श्रीकृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। विष्णु ने ही राम के रूप में अवतार लिया और विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में। श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां थीं- रुक्मणि,...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-120

जय श्री राधे कृष्ण ……. "बिनती करउँ जोरि कर रावन, सुनहु मान तजि मोर सिखावन, देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी, भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी ।। भावार्थ:- हे रावण! मैं हाथ जोड़ कर तुमसे विनती करता हूँ, तुम अभिमान...

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भय

भय आदरणीय हमारे बंधुओं जी अधिकतर हम अपने घर की सबसे ऊपर छत पर खड़े हो जाते है और नीचे देखते है हमे भय लगता है क्यों जी सही कहा हमने कैसा भय ?.....जैसे हमारे मकान की जड़े यानि नींव...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-119

जय श्री राधे कृष्ण ……. "जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे, तेहि पर बांधेउ तनय तुम्हारे, मोहि न कछु बांधे कइ लाजा, कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा ।। भावार्थ:- तब जिन्होंने मुझे मारा, उन को मैंने भी मारा ।...

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परमात्मा हर जगह मौजूद है

परमात्मा हर जगह मौजूद है एक प्रसिद्ध साधवी हुई हैं! जवानी में वह बहुत ही खूबसूरत थी।  एक बार चोर उसे उठाकर ले गए और एक वेश्या के कोठे पर ले जाकर उसे बेच दिया। अब उसे वही कार्य करना...

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सुविचार-सुन्दरकाण्ड-118

जय श्री राधे कृष्ण ……. "खायउँ फल प्रभु लागी भूंखा, कपि स्वभाव तें तोरेउँ रूखा, सब के देह परम प्रिय स्वामी, मारहिं मोहि कुमारग गामी ।। भावार्थ:- हे (राक्षसों के) स्वामी ! मुझे भूख लगी थी, (इसलिए) मैंने फल खाए...

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