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फूल की तरह खिलाते जाओ, होली पर्व मनाते जाओ

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फूल की तरह खिलाते जाओ, होली पर्व मनाते जाओ

फाल्गुन का महीना अपने मन को खिलाने वाला होता है , बसंती बयार जब बहती है फूलों की खुशबू अपनी आप ही दूर दूर तक पहुंचनी प्रारंभ हो जाती है…… क्या हम अपने मन रूपी को सुमन को खिला नहीं सकते हैं एक बार खिलानी का प्रयास करो तो सही फिर देखो तुम्हारे खुशबू है कहां कहां तक पहुंचती है।

जब होली का महापर्व आता है तब अपने आप ही हमारे मन में एक नई उमंग की तरंग उभरनी प्रारंभ हो जाती है मन में एक बार मस्ती का संचार होते ही हमारा मन विभिन्न रंगों की ओर आकर्षित होना प्रारंभ हो जाता है हमारा जीवन अपने आप ही विविधता के साथ आगे बढ़ना प्रारंभ हो जाता है हम अपने मन की तरह अपने आप आपको तरंगित बनाना प्रारंभ करते हैं तो हमारा जीवन अपनी आप ही अन्य को प्रकार की गुणों से परिपूर्ण बनना प्रारंभ हो सकता है होली का महापर्व हमारे को यह प्रेरणा प्रदान करता है हम अपने जीवन में अपने दुर्गुणों की होली जलाने के पश्चात अपने आप को अच्छे-अच्छे गुणों के साथ आगे बढ़ाने का प्रयास करना प्रारंभ कर दे तो हमारा जीवन अपने आप ही होली के विभिन्न रंगों की तरह गुणों से गुंफित होना प्रारंभ हो जाएगा।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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