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आत्मा से तृप्त -तो फिर आप क्या खाओगे

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आत्मा से तृप्त लोग

बस स्टैंड पर बैठा मैं गृह नगर जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था। अभी बस स्टेण्ड पर बस लगी नहीं थी। मैं बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था। मेरे को देखकर कोई 10 एक साल की बच्ची मेरे पास आकर बोली, “बाबू पैन ले लो,10 के चार दे दूंगी। बहुत भूख लगी है कुछ खा लूंगी।” उसके साथ एक छोटा-सा लड़का भी था, शायद भाई हो उसका।

मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए। उसका जवाब इतना प्यारा था, उसने कहा, फिर हम कुछ खाएंगे…… कैसे ?. मैंने कहा: मुझे पैन तो नहीं चाहिए पर तुम खाओगे कुछ जरूर।

मेरे बैग में बिस्कुट के दो पैकेट थे, मैने बैग से निकाल एक-एक पैकेट दोनों को पकड़ा दिया। पर मेरी हैरानी की कोई हद ना रही जब उसने एक पैकेट वापिस करके कहा,”बाबू जी!एक ही काफी है, हम बाँट लेंगे”। मैं हैरान हो गया जवाब सुन के ! मैंने दुबारा कहा: “रख लो, दोनों कोई बात नहीं।”

फिर आत्मा को झिझोड़ दिया बच्ची के जवाब ने उसने कहा:………….. “तो फिर आप क्या खाओगे”? मैंने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा,इसे कहते हैं आत्मा के तृप्त लोग! किसी से इतना भी मत लेना कि उसके हिस्से का भी हम खा जाए…………….

महादेव भी हमें ये ही सिखाते है की हमें दुसरो की सोचने वाले आत्मा से तृप्त बनना चाहिए..

महाशिवरात्रि की शुभकामनायें

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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