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खरगोश और लोमड़ी- सर्टिफिकेट

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खरगोश और लोमड़ी सर्टिफिकेट

एक दिन जंगल में एक लोमड़ी ने एक खरगोश को पकड़ लिया। वह उसे खाने ही जा रही रही थी, सुबह का नाश्ता ही करने की तैयारी थी की खरगोश ने कहा, “रुको”! तुम लोमड़ी हो, इसका सबूत क्या है? ऐसा किसी खरगोश ने इतिहास में पूछा ही नहीं था। लोमड़ी भी सकते में आ गयी। उसे भी पहली दफे विचार उठा की बात तो ठीक है, सबूत क्या है? उस खरगोश ने पूछा, “प्रमाण-पत्र कहां है, सर्टिफिकेट कहां है? “उसने खरगोश से कहां, “तू रुक, मैं अभी आती हूं। वह गयी जंगल के राजा सिंह के पास, और उसने कहां, “एक खरगोश ने मुझे मुश्किल में डाल दिया। मैं उसे खाने ही जा रही थी तो उसने कहां, “रुक, सर्टिफिकेट कहां है? सिंह ने अपने सर पर हाथ मार लिया और कहां की आदमियों की बीमारी जंगल में भी आ गई। कल मैंने एक गधे को पकड़ा, वह गधा बोला…..की पहले सबूत प्रमाण-पत्र दिखाओ की तुम सिंह हो? पहले तो मैं भी सकते में आ गया की आज तक किसी गधे ने पूछा ही नहीं। इस गधे को क्या हो गया? वह आदमी के सत्संग में रह चूका था।

सिंह ने कहां, मैं लिखे देता हूं, उसने लिखकर दिया की यह लोमड़ी ही है। लोमड़ी गई, बड़ी प्रसन्न, लेकर सर्टिफिकेट खरगोश बैठा था। लोमड़ी को तो शक था की भाग जायेगा- की सब धोखा है। लेकिन खरगोश बैठा था, खरगोश ने सर्टिफिकेट पढ़ा। लोमड़ी के हाथ में सर्टिफिकेट दिया और भाग खड़ा हुआ। पास के ही बिल में जाकर छुप गया। लोमड़ी सार्टिफिकेट के लेन-देन में लग गई और उस बिच वह खिसक गया। वह बड़ी हैरान हुई। वह वापस सिंह के पास गई और बोली, यह तो बहुत मुश्किल की बात हो गई। सर्टिफिकेट तो मिल गया, लेकिन वह खरगोश निकल गया। तुमने गधे के साथ क्या किया था? सिंह ने कहां की देख, जब मुझे भूख लगी होती है, तब मैं सर्टिफिकेट की चिंता नहीं करता, पहले मैं भोजन करता हूं। वही काफी सर्टिफिकेट है की मैं सिंह हूं। और जब मैं भूखा नहीं होता, तो मैं सर्टिफिकेट की बिलकुल चिंता नहीं करता। मैं सुनता ही नहीं मगर यह बीमारी जोर से फ़ैल रही है।

शिक्षा:- आदमी में यह बीमारी बड़ी पुरानी है, जानवरो में शायद अभी पहुंची होगी। बीमारी यह है की तुम दुसरों से पूछते हो की मैं कौन हूं। जब हजारों लोग जय-जयकार करते है, तब तुम्हे सर्टिफिकेट मिलता है की तुम कौन हो? जब कोई तुम्हे उठाकर सिंघासन पर बैठा देता है, तब तुम्हे प्रमाण-पत्र मिलता है की तुम कुछ हो। दूसरों से प्रमाण-पत्र लेने की जरूरत है? दूसरों से पूछना आवश्यक है की तुम कौन हो?…..

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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