जय श्री राधे कृष्ण …….
“नूतन किसलय अनल समाना, देहि अगिनि जनि करहि निदाना, देखि परम बिरहाकुल सीता, सो छन कपिहि कलप सम बीता….!!
भावार्थ:- तेरे नए-नए कोमल पत्ते अग्नि के समान हैं। अग्नि दे, विरह-रोग का अन्त मत कर (अर्थात विरह-रोग को बढ़ा कर सीमा तक न पहुँचा)। सीता जी को विरह से परम व्याकुल देख कर वह क्षण हनुमान जी को कल्प के समान बीता…!!
सुप्रभात
आज का दिन प्रसन्नता से परिपूर्ण हो..
