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पौष माह की ऐतिहासिक दीपावली…

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पौष माह की ऐतिहासिक दीपावली…

मन की गति से उड़ता पुष्पक विमान…. जब अवधपुरी के दर्शनयोग्य… क्षितिज पर पहुंच गया…. तो विह्नल…, अधीर… राम उन दर्शनो को नेत्रस्थ करके…. जैसे बालसम हो गए…., उछल पड़े…! आ गई अवधपुरी…., ओह्ह….! मेरा घर…, मेरी भूमि….।

उस भयंकर राक्षस से प्राणोपान्त युद्ध मे भी क्षण भर को जो विचलित ना हुए…. उन “मर्यादा पुरुषोत्तम” राम की….. यह अधीरता देख कर….. सभी विस्मित थे…. लेकिन प्रश्न नही थे किसी के हृदय में….., होते भी क्यों…..? उत्तर तो दे चुके थे राम जब विभिषण के लंका पर शासन करने के आत्मीय निवेदन को सविनय अस्वीकार्य कर चुके राम से…. लक्ष्मण ने पूछा था कि…. आखिर क्यों जाएं वहाँ जहाँ इतना बड़ा अन्याय हुआ था हमारे साथ…..?….तब कहा था राम ने अपना अंतस अनावृत कर….,अपि स्वर्णमयी लंका, न मे लक्ष्मण रोचते, जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि  गरीयसि।  भ्राता लक्ष्मण….! निःसंदेह….. सर्व ऐश्वर्यों से युक्त यह स्वर्णमयी लंका…. विभीषण के समर्पण सहित उपलब्ध है… फिर भी… मेरी इसमे कोई रुचि नही है…., माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।

पूछकर देखिये वीरान…, तप्त मरुभूमि के किसी व्यक्ति से…. की क्यों सहता है यह भीषण ताप…. और क्रोध भूमि का, क्यों नही चला जाता सुरसरि के तटों पर स्थित हरित क्षेत्रो में…. जंहा एक एक खेत ही सुंदर उपवन से है…., बारहमासी फलों से लदे…, जलामृत से सिंचित कण कण वाली उस भूमि पर….. जहां चार हाथ के खड्डे से भी जल निकल आता है….., क्यों जीवित ही जल जाना चाहता है… इस तपते तवे पर….?

तब अपनी मातृभूमि को एक दृष्टिभर अवलोकन के पश्चात हल्की मुस्कुराहट के साथ जो आपके इस “स्वर्णिम” प्रस्ताव को निलंबित कर देता है…. वह भाव है… “दीपावली की आत्मा”।

पूछकर देखिये जो राम …. आज नहीं पहुंच पाये अपनी “अयोध्या” किसी कारणवश कि क्या होता है…. दीपावली का अर्थ…?….. “अपने घर” के दूरस्थ दर्शन मात्र से राम जैसे मानवोत्तर परब्रह्म की आँखों का अनवरत छलक जाना है “दीपावली”।

विमानों से…, रेलों से…, बसों से…, तांगों से… बैलगाड़ियों से … अंत मे अपने पैरों से चलते चलते… जब अपने गांव के उस प्रथम वृक्ष के दर्शन होते हैं….. तो जो परमानंद का अनुभव होता है वह है “दीपावली”।

वह दीपावली…. जहाँ व्याकुल भरत और शत्रुघ्न…. विकल हो अपने कक्ष में बार बार वातायनों से झाँकते हो कि “भैया कब आएंगे”।

वह दीपावली….. जहां मिष्टान्न बनाती माता उबलते घृत को देखकर अदृश्य ताप से तप्त होकर राम का मार्ग निष्कंटक करती हो, अदृश्य बाधाओं को हर लेती हो…

वह दीपावली …. जहाँ पूर्वजों के सूक्ष्म कारण शरीर अपने राम की बाट जोहते हो….. कि राम आते ही उन्हें स्मरण करेगा और वे पीढ़ियों से संचित अपने आशीष की वर्षा कर देंगे उसपर…..। मुस्कुराते हुए कि शायद विज्ञान कभी नहीं समझ पायेगा इनके अस्तित्व और प्रभावों को…

वह दीपावली जहाँ अड़ोसी पडोसी भी आपके राम की प्रतीक्षा में आप से पूछे…. कि कब आ रहै है…., कैसे आ रहे है…., बेसन के मोदक बने है आज भेज देना लल्ला को आते ही…

दीपावली पर प्रज्वलित दीपों का ईंधन मात्र घी/तेल ही नहीं होता…., सुख से छलकते शुभाश्रु की बूंदें भी होती है… जिसका प्रमाण होता है… दीपक का.. कभी कभी ध्वनि उपन्न करना।

बस…! इससे अधिक सम्भवतः आपको भी असहज कर देगा!

आइये मनायें महापर्व दीपावली…., आइये प्रकाशित करें आत्मदीप को…, कुलदीप को…, ग्रामदीप को.., नगरदीप को… राष्ट्रदीप को…, भवदीप…, समाजदीप को…, धर्मदीप को…. और…. भावदीप को…. और देखें… कैसे अंधकार पर प्रकाश का आधिपत्य हमारे व्यक्त पुरुषार्थ को सार्थक करता है।

आप सभी को इस चिरप्रतीक्षित मंगलमय महापर्व की सकुटुम्ब, इष्टमित्रों, बंधु बांधवों सहित कोटि कोटि शुभकामनायें। परमात्मा श्रीरामचन्द्र जी आपके जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करें। आपका जीवन सर्वदा दीपावली की अयोध्या के समान चमकता रहे।

शुभ दीपावली।।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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