मस्तराम का खजाना
राजा-महाराजाओं के जमाने की बात है। किसी गांव में मस्तराम नाम का एक युवक रहता था। वह था तो बहुत गरीब और उसे मुश्किल से ही भरपेट भोजन मिल पाता था। मगर फिर भी वह चिंता नहीं करता था और सदा हंसता-मुस्कराता रहता था। उसमें एक खास बात यह थी कि वह लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता था। कोई उससे जो भी काम करने को कहता था वह तुरंत कर देता था और बदले में जो भी मजदूरी मिलती थी उसे खुशी-खुशी ले लेता था। बस यही उसकी आमदनी थी और इसी में उसका गुजारा होता था। एक दिन मस्तराम किसी धनी सेठ के यहां काम के लिए गया और सेठ उसके काम से बहुत खुश हो गए। उन्होंने खुश होकर मस्तराम से पूछा-“भाई,मस्तराम मैं तुम्हारे काम से बहुत खुश हूं। मैं तुम्हें इनाम देना चाहता हूं। बोलो तुम्हें क्या इनाम चाहिए?”…..मस्तराम ने मजाक-मजाक में कह दिया कि-“सेठ जी, मेरे लिए ऐसी पोशाक बनवा दीजिए जिसे पहनकर मैं भी आप जैसा सेठ दिखने लगूं।” मस्तराम की बात सुनकर सेठ हंसने लगे और फिर उन्होंने सचमुच ही उसके लिए एक कीमती पोशाक बनवा कर दे दी। उस पोशाक को पाकर मस्तराम बहुत खुश हुआ। घर जाकर खूब अच्छे से नहा-धोकर उसने वह पोशाक पहनी और फिर लोगों को दिखाने के लिए घर से निकल लिया।
घर से निकलने के बाद उसकी मुलाकात एक किसान से हुई। किसान मस्तराम की महंगी पोशाक देखकर कहने लगा-“बड़ी कीमती पोशाक है! बहुत बड़े से सेठ लगते हो?”……किसान की बात सुनकर मस्तराम पर मस्ती छा गयी और फिर सेठों के जैसा रौब दिखाते हुए बोला-“सेठ क्या चीज़ है मेरे सामने! मेरे पास तो वो कीमती खजाना है जो यहां के राजा के पास भी नहीं है।”…..यह सुनकर किसान हैरत में पड़ गया और उसने तीन बार ताली बजाई। जैसे ही किसान ने ताली बजाई वहां पर चार लोग आए और वे मस्तराम को पकड़ कर अपने साथ ले गए। दरअसल वह किसान राजा था और उस समय किसान के भेष में घूम रहा था। उसके साथ उसके चार सैनिक भी भेष बदल कर घूम रहे थे। सैनिक मस्तराम को दरबार में ले आए और फिर राजा ने मस्तराम सवाल किया-“सुनो नौजवान, जल्दी से हमें बता दो कि तुमने खजाने को कहां छिपा रखा है?”
“महाराज, मैंने खजाने को कहीं नहीं छिपाया है।”…..“कुछ देर पहले तो कह रहे थे कि तुम्हारे पास तो वो कीमती खजाना है जो राजा के पास भी नहीं है।”….“महाराज, वो तो मैं अब भी कह रहा हूं।” “तो फिर बताते क्यों नहीं कि कहां छिपा रखा है? जल्दी से बता दो,अन्यथा फिर कोड़ों की मार पड़ेगी और रोते-रोते बताना पड़ेगा।” कोड़ों की बात सुनकर मस्तराम हंसने लगा और यह देखकर राजा को उस पर बहुत क्रोध आया। वह बोले-“मूर्ख आदमी, तू कोड़ों खाने की बात पर भी हंस रहा है! क्या तुझे डर नहीं लगता?”…..इस बार मस्तराम हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला-“क्षमा करें महाराज, सच में ही मेरे पास आपके और दुनिया के सब खजानों से कीमती खजाना है। मगर वह धन का नहीं, बल्कि मन का खजाना है। मेरे पास ऐसा मन है जिसमें मैंने मस्ती और उत्साह के दो पात्रों में संतोष और प्रसन्नता को जमा करके रखा है। इसी कारण मैं कभी चिंता में नहीं पड़ता हूं और हमेशा हर स्थिति में हंसता-मुस्कराता रहता हूं। अब आप ही बताइए कि क्या दुनिया में इससे कीमती भी कोई खजाना हो सकता है क्या?”
मस्तराम के इस खजाने के बारे में जानकर राजा को बड़ी खुशी हुई और बोले-“मस्तराम, सच में ही तुम्हारा खजाना सब खजानों से कीमती खजाना है और तुम दुनिया के सबसे अमीर आदमी हो।”
शिक्षा:- संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं है।
जय श्रीराम
संतोषी सदा सुखी
Thanks Sir… Jai Shree Ram
Well said. Mast raho khush raho
Yes Nirmala madam… Nowadays people have forgotten it… remember to be happy. Jai Shree Ram
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