lalittripathi@rediffmail.com
Stories

पाजीटिव सोच

#पाजीटिव सोच #परिवार #सौभाग्य #सुरक्षित #लकी कार #नजरिया #सकारात्मक सोच #वरदान # बुद्धिमान #जय श्रीराम

238Views

पाजीटिव सोच

मेरे पड़ोसी ने कुछ माह पूर्व एक नई कार खरीदी। उन्होंने उस कार से अपने परिवार के साथ चिन्नई से दक्षिणी तमिलनाडु जाने का लम्बे कार्यक्रम की योजना बनाई। वे कुछ दिन उस जगह रुके और वापिस चिन्नई आ रहे थे। हाई वे पहुँचने के कुछ ही मिनटों बाद एक पेड़ की बड़ी सी टहनी कार के बोनट पर अचानक आ गिरी। कार का सामने वाला हिस्सा ध्वस्त हो गया। सब खिड़कियों के शीशे और विंड शील्ड टूट गए। सौभाग्य से दो बच्चों के साथ परिवार सुरक्षित बच गया। किसी को एक खरोंच भी नहीं आई। कार नई थी , किन्तु यह पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई थी। जैसे ही मैंने सुना तो मैंने कहा कि यह कार तो आपके लिए मनहूस सिद्ध हुई है। नई नई कार थी, पूर्णतः कार का बीमा था और कंपनी पड़ोसी को नई कार देने को राजी थी। मुझे लगा कि पड़ोसी उस मनहूस क्षतिग्रस्त कार के बदले नई कार लेने को सहमत हो जाएंगे। किन्तु मेरे पड़ोसी कहने लगे, “तुम्हें मेरी कार मनहूस क्यों लग रही है ? यह तो लकी कार है। इसने दुर्घटना का खतरा अपने ऊपर लेकर हमारी जानें बचाई हैं। अगर हम जिन्दा हैं तो इसी कार की वजह से। मुझे दूसरी कार नहीं चाहिए। इस कार को केवल रिपेयर की जरूरत है।”

मैं उनकी ऐसी सकारात्मक सोच देखकर आश्चर्यचकित रह गया।  दोस्तो, हम जिंदगी में जितने भी लोगों से मिलते है, उन सभी की सोच अलग अलग हो सकती है यानी जिंदगी को देखने का नजरिया अलग अलग हो सकता है। लेकिन जिन्दगी की गुणवत्ता नज़रिए पर निर्भर करती है। एक ही बात किसी को आपदा लगती है तो दूसरा उसमें से भी कोई अवसर तलाश लेता है।  इससे साबित होता है कि चाहे जैसी किस्मत लिखवाकर हम इस दुनिया में आए हों, सकारात्मक सोच की कलम से आगे की किस्मत को तो अच्छा लिख ही सकते हैं न!  

 यह वरदान सृष्टि के सभी प्राणियों में एकमात्र हम इंसानों को ही मिला है, उस पर भी छोटी-छोटी बातों पर रोते-बिसूरते रहें तो हमें बुद्धिमान कौन कहेगा?

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

2 Comments

Leave a Reply to SUBHASH CHAND GARG Cancel reply