रमा नाम की एक स्त्री थी जो किसी गांव में रहती थी.. 5-6 बरस उसकी शादी को हो गए थे लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं थी। एक बार श्री राधा अष्टमी का उत्सव आया.. गांव की औरतें बरसाना जा रही थी.. औरतों ने कहा तुम भी बरसाना चलो.. राधा रानी बड़ी दयालु है.. तुम्हारी गोद जरूर भरेगी। वह कभी सात आठ दिन अपने घर से बाहर नहीं रही थी.. उसके पति और सास ने भी उसे जाने की आज्ञा दे दी। बस उसने मन में ठान लिया कि राधा रानी मेरी गोद जरूर भरेंगी। जिस दिन उसे जाना था उसी दिन पैर में चोट लग गई.. चला भी नहीं जा रहा था.. फिर भी वह स्त्रियों के संग यात्रा पर चल पड़ी। सारे रास्ते ट्रेन में राधा कृष्ण का जाप कीर्तन चलता रहा.. इस प्रकार सभी स्त्रियों के साथ वह बरसाना पहुंच गई।
सभी नहा धोकर राधा जी के मंदिर में जाने के लिए तैयार हुए.. राधा जी के महल में जब जाते हैं तो ऊपर बहुत से सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.. जैसे सीढ़ियां चढ़ने लगे वह स्त्रियों को बोली तुम लोग आगे आगे चलो मैं धीरे धीरे सीड़ियों से आ रही हूं.. पैर में चोट लगने की वजह से चला भी नहीं जा रहा था.. दो चार सीढ़ियां चढ़ने के बाद उसका पैर मुड़ गया और वह नीचे गिरने लगी.. तभी एक सात आठ साल की कन्या ने उसका हाथ पकड़ लिया.. रमा बोली बेटी आज अगर तुम ना होती तो मैं नीचे गिर गई होती। वह कन्या बोली मैया ऐसे कैसे गिर जाने देती मैं तुम्हें.. रमा ने पूछा बेटी तुम्हारा क्या नाम है.. वह बोली, लाडो नाम है मेरा, यही पास में रहती हूं….वे दोनों सीढ़ियों पर बैठ गए.. लाडो कहने लगी मैया मेरे लिए क्या लाई हो.. ना कोई जान पहचान और लाडो ऐसी बात कर रही है रमा ने सोचा, फिर रमा ने कहा लाडो मैं कल तुम्हारे लिए लेकर आऊंगी तुम्हें क्या पसंद है।
लाडो बोलती है मुझे नथनी, गले का हार, कान के कुंडल, चूड़ियां, मेहंदी, घाघरा चोली यह सब चीजें पसंद है कुछ भी ले आना.. इतना कहकर वह बालिका भाग गई। जैसे तैसे रमा भी मंदिर में दर्शन करके लौट आई। आकर सोचने लगी उस बालिका के बारे में.. और बाजार से उसने गले का हार और चूड़ियां उसके लिए लाई। अगले दिन वहीं जहां मिले थे, वह लाडो उसका इंतजार करते मिली.. चूड़ियां और गले का हार जैसे उसे दिया वह बोली बस इतनी सी ही और चीजें नहीं लाई और वह मुंह फुला कर बैठ गई। तब रमा बोली अभी मैं 8 दिन यहीं पर हूं रोज तुम्हारे लिए कुछ ना कुछ लाया करूंगी। यह सुनकर लाडो उसकी गोदी में बैठ गई और गले से लग गई। रमा तो रोने लगी उसे जैसे एक संतान मिल गई.. खूब प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा.. ऐसे ही वह फिर चली गई। रमा ने मंदिर से आकर घाघरा और चोली उसके लिए बनवाए.. ऐसे ही रोज कुछ ना कुछ वह उसे देती।
एक दिन रमा कहती है अब यह सारी चीजें मुझे पहनकर भी तो दिखा कैसी लगती है.. लाडो बोली कल राधा अष्टमी है कल पहनूंगी.. इस बार लाडो के साथ एक लड़का भी था.. उसे देखकर रमा ने कहा आज पता नहीं मेरे मन में क्या आया मैंने एक धोती और मुकुट मोर वाला लिया है.. क्या मैं इसे दे दूं.. लाडो बोली यह कनुआ है.. मेरे साथ ही रहता है.. हां तुम इसे दे दो.. ऐसा कहकर वे दोनों सामान लेकर चले गए। अगले दिन राधाष्टमी थी.. जब रामा सीढ़ियों पर आई वहां उसे आज कोई ना मिला..बहुत इंतजार के बाद जब वह मंदिर में पहुंची तो वहां बहुत भीड़ थी.. कीर्तन और नृत्य हो रहा था.. इसी तरह भीड़ को चीरती हुई वह आगे पहुंची.. और वहां देख कर राधा जी को देखा और ठाकुर जी को देखा.. वही सामान सब जो वह लाई थी उन्होंने धारण किया हुआ था.. वह पत्थर सी हो गई.. आंखों से आंसू बहने लगे.. बात समझते देर न लगी कि वह लाडो राधा जी और कनुआ कृष्ण जी हैं..
स्वयं जगत के पालनहार उसके पास आते हैं.. राधा जी उसकी गोदी में बैठती हैं… और उसे मातृ सुख प्रदान करती है। वह तो जैसे बावरी हो गई.. दिन-रात लाडो लाडो कहती रहती.. पुकारती रहती.. वह स्त्रियों से बोली तुम लोग घर जाओ मैं नहीं जाऊंगी.. उसकी सास और पति भी उसे लेने आए.. पर वह साथ नहीं गई। अब तो प्रतिदिन वह सीढ़ियों पर बैठे-बैठे आंसुओं से सीढ़ियां धोती.. पलकों से बुहारती.. ऐसा करते करते उसे 30 बरस हो गए.. एक दिन एक बालिका उसका हाथ पकड़ कर ऊपर अटालिका में ले गई.. वहां जाकर बोलती है.. लो आ गई तेरी लाडो.. ऐसा कहकर बाहे फैलाकर रमा को बुलाने लगी और अपने गले लगा लिया….उस दिन रमा ऐसे गले लगी कि इस पार्थिव शरीर को छोड़कर सदा के लिए अपनी लाडो के पास चली गई..
इस घटना से हम सबको यह सीख मिलती है कि जो भी आशा रखें चाहे वह सकाम हो या निष्काम केवल भगवान से ही रखें..!!
जय श्री राम

जय जय श्री राधे।।।
ब्रजभूमि के कण-कण में श्री राधे रानी की कृपा और करूणा समायी है, बसआवश्यकता पूर्ण समर्पण की है।।।
Jai Jai shree Radhe