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कैसे मिलता है पितरों को भोजन

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प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है? कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं। कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिंड से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है? इस शंका का स्कंद पुराण में बहुत सुन्दर समाधान मिलता है।

एक बार राजा करंधम ने महायोगी महाकाल से पूछा, ‘मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिंडदान किया जाता है तो वह जल, पिंड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है?’

 भगवान महाकाल ने बताया कि विश्व नियंता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरूप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि। पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गईं स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं।

वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं। 5 तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति- इन 9 तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर 10वें तत्व के रूप में साक्षात भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं इसलिए देवता और पितर गंध व रसतत्व से तृप्त होते हैं। शब्द तत्व से तृप्त रहते हैं और स्पर्श तत्व को ग्रहण करते हैं। पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वे वर देते हैं।

पितरों का आहार है अन्न-जल का सारतत्व ।।

 जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सारतत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।

 किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार ।।

 नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं। यदि पितर देव योनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें ‘अमृत’ होकर प्राप्त होता है। यदि गंधर्व बन गए हैं, तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है। यदि पशु योनि में हैं, तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है। नाग योनि में वायु रूप से, यक्ष योनि में पान रूप से, राक्षस योनि में आमिष रूप में, दानव योनि में मांस रूप में, प्रेत योनि में रुधिर रूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता है।

जिस प्रकार बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूंढ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मंत्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं। जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।

श्रीराम द्वारा श्राद्ध में आमंत्रित ब्राह्मणों में सीताजी ने किए राजा दशरथ व पितरों के दर्शन ।

श्राद्ध में आमंत्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधि रूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गईं। ब्राह्मण भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं। आपने जब नाम-गोत्र का उच्चारण कर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन किया तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छाया रूप में सटकर उपस्थित थे। ब्राह्मणों के शरीर में मुझे अपने ससुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघन कर वहां कैसे खड़ी रहती? इसलिए मैं ओट में हो गई।’

*तुलसी से पिंडार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यंत तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरूढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।

 पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न ।।

श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है। आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्। पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।। (यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)

*यमराज का कहना है कि श्राद्ध करने से मिलते हैं ये 6 पवित्र लाभ-

श्राद्ध कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है

*पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।

*परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।

श्राद्ध कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।

पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।

श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता, वरन वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है

हिन्दु धर्म ग्रंथो अनुसार पितर  संदेशवाहक 

शास्त्रों में बताया गया है कि ॐ अर्यमा न तृप्यताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नम:। ॐ मृर्त्योमा अमृतं गमय। अर्थात, अर्यमा पितरों के देव हैं, जो सबसे श्रेष्ठ है उन अर्यमा देव को प्रणाम करता हूँ ।हे! पिता, पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम है,  हम पूरे वर्ष भर अपने देवों को समर्पित अनेकों पर्वों का आयोजन करते हैं, लेकिन हममे से बहुत से यह अनुभव करते है की हमारी प्रार्थना देवों तक नही पहुँच पा रही है, , हमारे पूर्वज देवों और हमारे मध्य एक सेतु का कार्य करते हैं, और जब हमारे पितृ हमारी श्रद्धा, हमारे भाव, हमारे कर्मों से तृप्त हो जाते है, हमसे संतुष्ट हो जाते है तो उनके माध्यम से उनके आशीर्वाद से देवों तक हमारी प्रार्थना बहुत ही आसानी से पहुँच जाती है और हमें मनवांछित फलों की शीघ्रता से प्राप्ति होती है

पितृ पक्ष में पित्तरों का श्राद्ध और तर्पण –

 पितृ पक्ष में रोज पित्तरों के निमित जल, जौं और काले तिल और पुष्प के साथ पित्तरों का तर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष दूर होता है।

श्राद्ध पक्ष में अपने पित्तरों की मृत्यु तिथि पर किसी ब्राह्मण को अपने पूर्वजों की पसंद का भोजन अवश्य कराएं। ऐसा करने से भी पित्तरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.!

 पितृ पक्ष में अपने पित्तरों के नाम से श्रीमद भागवत कथा, भागवत गीता, गरूड़ पुराण, नारायण बली, त्रिपिंडी श्राद्ध, महामृत्युंजय मंत्र का जाप ओर” पितर गायत्री मंत्र” की शांति कराने से भी पित्तरों को शांति प्राप्त होती है.!

 श्राद्ध पक्ष में गया जी जाकर अपने पित्तरों का श्राद्ध अवश्य करें। ऐसा करने से भी आपके पितृ शांत होते हैं और आपको पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

 यदि आपको अपने पित्तरों की मृत्यु तिथि नहीं पता है तो आप सर्व पितृ अमावस्या पर उनका श्राद्ध कर सकते हैं। ऐसा करने से भी आपको पितृ दोष से मु्क्ति मिलती है।

 आपको सर्व पितृ अमावस्या और हर अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में स्नान अवश्य करना चाहिए और योग्य ब्राह्मण से अपने पित्तरों का श्राद्ध कराना चाहिए और 13 ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देनी चाहिए। पितृ पक्ष में आपको कौवों को भोजन अवश्य कराना चाहिए। क्योंकि माना जाता है कि इस समय में हमारे पितृ कौवों का रूप धारण करके धरती पर उपस्थित रहते हैं।

 आपको पितृ पक्ष में गाय की सेवा अवश्य करनी चाहिए। आपको गाय को भोजन करना चाहिए और किसी गऊशाला में भी दान अवश्य देना चाहिए। ओर पितर पक्ष में पंचबलि चींटी, कुत्ता, गाय, देवादि ओर कौआ यह अबश्य देनी चाहिए।

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

1 Comment

  • सनातन धर्म की परम्पराओं की विस्तृत जानकारी देने के लिए आपके प्रयास सराहनीय हैं।।।
    विस्मृत परंपराओं को जन-जन को पहुंचाना प्रशंसनीय कार्य है।।।
    साधुवाद।।।

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