मानसी की शादी के बाद पहली होली थी, जिसे लेकर वह अच्छी खासी उत्साहित थी। अभी तक तो लोगों से शादी के बाद पहली होली के किस्से ही सुनती आ रही थी, अब तो उसकी खुद की पहली होली थी, तो मन में नई उमंगे भरी हुई थी। साथ ही साथ डर भी बहुत था। मानसी का ससुराल एक संयुक्त परिवार था। मानसी के ससुर तीन भाई थे, जो एक ही बिल्डिंग में अलग-अलग फ्लोर पर अपने अपने परिवार के साथ रहते थे। और मानसी इस पीढ़ी की पहली बहू थी तो हमेशा देवरों और ननदों से घिरी ही रहती थी। साथ ही साथ दो बुआ सास भी थी, जो उसी शहर में रहती थी।
तीज त्यौहार पर आज भी यह पूरा परिवार के एक ही जगह एकत्रित होता था। जिसमें दोनों बुआ सास के परिवारों को भी बुलाया जाता था। मानसी भी हालांकि एक संयुक्त परिवार का हिस्सा रही है। पर एक ऐसे परिवार का, जहां मनमुटाव जरूरत से ज्यादा है। सब अपने में ही मस्त रहते हैं। किसी को किसी से कोई लेना देना नहीं। और अगर कभी इकट्ठे हुए भी तो बेचारी बहुएं रसोई में ही लगी रह जाती है। इसलिए मानसी को डर लग रहा है कि वह अकेली कैसे सब कुछ मैनेज करेगी? आखिर वह घर की बहू है, वह तो होली खेल ही नहीं पाएगी। सुबह से शाम तक रसोई में ही दौड़ती रह जाएगी।
शाम को होली पूजन के बाद जब सभी भाइयों का परिवार एकत्रित हुआ, तो दूसरे दिन खाने में क्या बनने वाला है उसका मीनू डिसाइड होने लगा। जिसे सुन सुनकर मानसी की धड़कनें ऊपर नीचे हो रही थी। सुबह इतने लोगों का इतना खाना कैसे बना पाएगी? सोच सोच कर ही उसकी हालत पतली हुई जा रही थी। क्योंकि किसी ने भी खाना बनाने वाला रखने की कोई बात नहीं की। इस बात को उसके पति रमन ने भांप लिया। मानसी के बदलते हाव भाव को देखकर रमन को समझते देर नहीं लगी कि मानसी के दिमाग में क्या चल रहा होगा?
खैर, उस समय उसने कुछ नहीं कहा। लेकिन जब रात को सोने के लिए अपने कमरे में गया तब मानसी ने कहा, “सुनिए रमन जी, मैं इतने लोगों का खाना कैसे बना पाऊंगी?” “देखो मानसी, इससे पहले भी इस घर की परंपरा रही है कि त्यौहार के दिन खाना एक ही रसोई में बनता है। तो तुम इस परंपरा को बदलने की कोशिश मत करो”……”मैं कहाँ कह रही हूं कि परंपरा को बदलो। पर कुछ मेरे बारे में भी तो सोचो। कैसे कर पाऊंगी मैं ये सब?”
“अब इसमें मैं क्या कर सकता हूं। आखिर तुम घर की बहू हो। सो, ये तुम्हारी ही जिम्मेदारी है। कल को दूसरी बहुएं भी आएगी, वो भी तुम्हें ही देखकर तो सीखेगी”….
“फिर मेरी होली???”….”तुम्हें होली की पड़ी है? बहू होने के नाते तुम्हारी कोई जिम्मेदारी भी तो बनती है। अब तुम अपनी जिम्मेदारियों से कैसे मुंह मोड़ सकती हो? और हां, कोई गलती मत कर देना। नहीं तो हमें शर्मिंदा होना पड़ेगा। अब सो जाओ। सुबह जल्दी भी तो उठना है। आखिर तुम्हें ही तो सबकुछ संभालना है” ऐसा कहकर रमन तो दूसरी तरफ मुंह कर कर सो गया और बेचारी मानसी की आंखों से नींद तो कोसों दूर हो गई। बेचारी की आंखों में आंसू तक आ गए। सारी रात करवटें बदलते बदलते उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला। सुबह जब नींद खुली तो देखा सब लोग जाग चुके हैं और मम्मी जी ने चाय बनाकर सबको परोस दी है।
“माफ करना मम्मी जी, मुझे देर हो गई”….”कोई बात नहीं बेटा। तुम्हारी चाय रखी है, वह पी लो”……”जी, ठीक है”…अपनी चाय लेकर मानसी कमरे में गई तो रमन कमरे में पहले से ही बैठा था, “तुम्हें मैंने रात को ही कहा था ना कि सुबह जल्दी उठ जाना। आखिर सब कुछ तुम ही को संभालना है, लेकिन तुम हो कि तुम्हें किसी की बात सुननी ही नहीं है”
“पर रमन जी, मम्मी जी ने तो कुछ नहीं कहा”…..”मेरी मम्मी तो सीधी है कुछ नहीं कहेगी। पर तुम्हें तो अक्ल होनी चाहिए। तुम भी तो संयुक्त परिवार में रही हो। क्या तुम्हें पता नहीं है कि किस हिसाब से सब कुछ मैनेज करना पड़ता है। अब जल्दी से चाय पियो और फटाफट काम पर लगो”
रमन तो डांट कर चला गया, पर मानसी की हालत खराब। जैसे तैसे चाय पी और रसोई की तरफ चल दी। रसोई में जाकर देखा, तो कुछ भी नहीं था। अपनी सासू मां से जाकर पूछा, “मम्मी जी खाना कहां बनेगा?”
“खाना तो ऊपर छत पर बनेगा, बेटा। रसोई में इतनी जगह कहाँ?”…..”जी, ठीक है”…मानसी ऊपर छत की तरफ रवाना हो गई। वहां जाकर देखा तो एक बार उसको अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ। शायद उसने यह मंजर कभी सपने में भी नहीं सोचा था। घर के पुरुष मिलकर रसोई का काम कर रहे थे। चाचा जी सब्जियां साफ कर रहे थे, वही दो देवर मिलकर आटा गूंथने का काम कर रहे थे, कोई रायते की तैयारी कर रहा था, तो कोई ग्रेवी बनाने की तैयारी कर रहा था, तो कोई मिठाई की तैयारी। सबने अपना अपना काम बांट रखा था।
“ये… सब…??”….”क्या हुआ बेटा? कुछ चाहिए था तुम्हें”….”नहीं पापा, ये आप क्या कर रहे हैं”….”आज के दिन महिलाओं की छुट्टी है रसोई से”….”क्या?”
“देखो बेटा, यह हमारे घर का रिवाज है कि होली के दिन महिलाओं की रसोई से छुट्टी कर दी जाती है। और रसोई की जिम्मेदारी हम पुरूषों की होती है। इसलिए तुम जाओ और होली खेलने की तैयारी करो। बस हम रसोई की तैयारी करके नीचे आते हैं”
“जी”….कहकर मानसी पलटी ही थी कि “कुछ चाहिए मैडम आपको”…अचानक रमन की आवाज सुनकर मानसी ने पलट कर देखा तो रमन हाथ में रंग की बाल्टी लिए हंस रहा था। रमन को हंसता देखकर सभी देवर हंसने लगे। इससे पहले कि मानसी कुछ समझ पाती, रमन ने उस पर रंग की बाल्टी उड़ेल दी। घर के बड़े वहाँ मौजूद थे, इसलिए मानसी कुछ ना कर पाई।
मानसी रमन को घूरते हुए नीचे की तरफ जाने लगी। तभी पीछे से एक देवर ने कहा, “आज तो भाई, गया काम से” और पूरा माहौल ठहाको से गूंज उठा।
जय श्री राम

होली है भई होली है
Family me aisa environment rahe to Har din Shubh Deewali and Shubh Holi… Jai Shree Ram
Wah bhai wah….