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जिद्दी

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हवाईजहाज में बैठते ही,पत्नी सुधा की आवाज कानो में गूंजने लगी। उस लड़की से ज्यादा बात मत करना। हमे उससे कोई रिश्ता नही रखना है।जब हमारा बेटा ही ना रहा। तो उसका भी क्या करेंगे।

वैसे भी उसे नौकरी ही करनी है करती रहेगी वही रह कर, हम कर लेंगे गुजारा जैसे-तैसे। मुझे नहीं अच्छी लगती वह, हमारा अविनाश छीन लिया उसने हमसे। दिल्ली से बेगलुर 2 घंटे की फ्लाइट मे अविनाश के 27 साल के जीवन तक की बस यादे ही आती रही।और उनके साथ आते रहे आँसु।

अविनाश 25 साल का था, जब बेगलुरु आया था एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने। उसके अगले ही साल अविनाश ने श्रेया से कोर्ट-मैरिज कर ली। बेशक हमे बुलाया था,और हम पति-पत्नी सुबह की फ्लाइट से गये थे, और रात की फ्लाइट से वापस आ गये थे। दिल पर पत्थर रख लिया था हमने, इकलौते बेटे के एैसा करने से।

अविनाश शुरु से ही जिद्दी रहा था, इकलौता था ना। तब से बस एक बार बहू को लेकर घर आया था दो दिन के लिए और आज उसका बेगलुरु में ही अंतिम संस्कार होना था। नाजाने कैसे कोरोना की चपेट में आ गया था…और फिर बच ना सका।

श्रेया मुझे लेने एयरपोर्ट पर आई थी,मुंह पर मास्क, हाथो मे दस्ताने, आँखो में आँसू। मेरे मन में बनी उसकी छवि से वह बिल्कुल अलग लग रही थी वह मेरे पैरों में झुकी तो मेरा हृदय द्रवित हो गया उसे सफेद कपड़ों में देख कर। लेकिन फिर सुधा की आवाज कानो मे गूंजी तो फिर दिल कठोर कर लिया, और अपने हाथ पीछे खींच लिए,शमशान घाट पर बॉडी-बैग में लिपटा पड़ा था अविनाश। बहुत कहने के बाद मेडिकल-कर्मियो ने अंतिम दर्शन करवाए, कैसी विषम परिस्थिति थी।

बाप को बेटे का मृत शरीर अग्नि को समर्पित करना हो, तो इससे अधिक दुर्भाग्य की स्थित नहीं हो सकती। बस यही तक का साथ था हमारा। अग्नि देते ही मुझसे खड़ा ना रहा गया।मु झे चक्कर आने लगे तो श्रेया ने संभाला, और अपने साथ घर ले आई।

श्रेया एक अनाथ लड़की थी, अनाथालय में ही पली बढ़ी थी। ऊसे परिवार के साथ रहने का अनुभव ना था।अपनी मेहनत के बूते ही अविनाश के साथ ही कंपनी में काम करती थी, जहा वह उसके सम्पर्क में आई दोनों मे दोस्ती हुई और फिर प्यार और उन्होंने शादी कर ली। उसके साउथ इंडियन और अनाथ होने के कारण ही बेटे और उसने कोर्ट-मैरिज का फैसला लिया था। घर मे मैंने आराम किया तो बेचैनी खत्म हो गई। श्रेया ने बहुत स्वादिष्ट साउथ इंडियन खाना बनाया खाने के बाद मैं अविनाश का सामान देखने लगा।

उसका बैग खोला तो एक गुप्त जेब में एक लिफाफा निकला मैंने श्रेया को दिखाया उसे बहुत आश्चर्य हुआ।  वो पत्र उसने 4 महीने पहले हमारे लिए लिखा था। उसके पास पता ना होने के कारण उसने अविनाश को दिल्ली के घर का पता लिख कर कूरियर करने के लिए दिया था। उसके पूछने पर अविनाश ने बताया कि उसने भेज दिया है।

पत्र देख कर बेचारी हैरान परेशान होकर रोने लगी मैंने दुखी होते हुए उसके सिर पर हाथ फेरते हुए चुप कराया। ज़रा सा स्नेह मिलते ही उसका सब्र का बांध टूट गया और वह मुझसे लिपट कर जोर जोर से रोने लगी, उसके साथ साथ मैं भी रो पड़ा।

उसकी इजाज़त लेकर मैं पत्र पढ़ने लगा जो उसने टूटी-फूटी हिंदी में जरूर लिखा था, लेकिन उसका भाव मेरे हृदय के तार झंकृत कर गया। ‘वह हमारे साथ रहना चाहती थी; हमारी बेटी बन कर माँ-बाप का प्यार पाना चाहती थी।‘ लेकिन अविनाश को माँ के गुस्से का डर था और श्रेया को हिंदी भी आती न थी। दिल्ली में नौकरी की भी समस्या रहती, तो वह चाहता था कि हम ही बंगलुरु आ जाएं, लेकिन इसके लिए मैं खुद राजी न था’। इस पारिवारिक समस्या में वह बेचारी फँस गई थी। उसने हिम्मत करते हुए हमें पत्र भी लिखा, तो वह हम तक न पहुँचा। सच में! यदि पत्र हम तक पहुँचता तो भी मैं विभा को समझा लेता।

पत्र में उसने ‘अपने गर्भवती होने की भी सूचना दी थी, जो अविनाश ने कभी फोन पर भी नहीं बताया था’। मैं कोई भावुक व्यक्ति नहीं हूँ, लेकिन इन सब बातों ने मुझे अत्यधिक व्यथित कर दिया। विभा को भी मैं जानता हूँ, वह अड़ जाए तो मानती नहीं, बेटे जैसी ही जिद्दी है।

 लेकिन अब मेरे जिद्दी बनने का समय था। मैंने श्रेया को उसका सामान पैक करने, जॉब से रिजाइन करने और दिल्ली के दो टिकट बुक करने के लिए कह दिया। इसके बाद श्रेया के चेहरे पर जो भाव थे, उनका शब्दों में बयाँ करना असम्भव है। हमने बेटा खोकर बेटी पा ली थी।और उसकी कोख में पल रहे अविनाश को भी।

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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