यद्यपि किसी को दंडित करना या प्रताड़ित करना आपके बाहुबल को दर्शाता है तथापि शास्त्रों में क्षमा को ही वीर पुरुषों का आभूषण माना गया है। “क्षमा वीरस्य भूषणं और क्षमा वाणीस्य भूषणं “
क्षमा साहसी लोगों का आभूषण है और क्षमा ही वाणी का भी आभूषण है। क्षमा जिस मनुष्य के अन्दर है वो किसी वीर से कम नहीं। अगर आप किसी को क्षमा करने का साहस रखते हैं तो सच मानिये कि आप एक शक्तिशाली सम्पदा के धनी हैं और इसी कारण आप सबके प्रिय भी बन जाते हैं ।
एक बार एक धोबी नदी किनारे की सिला पर रोज की तरह कपडे धोने आया। उसी सिला पर आज कोई साधु महाराज भी ध्यानस्थ थे। धोबी ने आवाज़ लगायी, उसने नहीं सुनी। धोबी को जल्दी थी, दूसरी आवाज़ लगायी वो भी नहीं सुनी । चूंकि धोबी की तो वह सीला रोजी रोटी थी, नही सुनने पर साधु महाराज को धक्का मार दिया।
ध्यानस्थ साधु की आँखें खुली, क्रोध की जवाला उठी, कहा सुनी हुयी और दोनों के बीच में खूब मार -पिट और हाथा पायी हुयी। पिट पाट कर दोनों अलग अलग दिशा में बैठ गए। एक व्यक्ति दूर से यह सब बैठ कर देख रहा था। साधु के नजदीक आकर उसने पूछा, महाराज आपको ज्यादा चोट तो नहीं लगी, उसने बहुत मारा आपको।
महाराज ने कहा, उस समय आप छुडाने क्यों नहीं आए?
व्यक्ति ने कहा, आप दोनों के बीच मे जब युद्ध हो रहा था उस समय मैं यह निर्णय नहीं कर पाया की धोबी कौन है और साधू कौन है? कहानी का सार यह है कि प्रतिशोध और बदला साधू को भी धोबी के स्तर पर उतार ला देता है। इसीलिए कहा जाता है कि, बुरे के साथ बुरे मत बनो, नहीं तो साधू और शठ की क्या पहचान। दूसरी तरफ, क्षमा करके व्यक्ति अपने स्तर से काफी ऊँचा उठ जाता है। इस प्रक्रिया में वो सामने वाले को भी ऊँचा उठने और बदलने की गुप्त प्रेरणा या मार्गदर्शन देता है।
आजकल परिवारों का उदाहरण ले तो परिवारों में अशांति और क्लेश का एक प्रमुख कारण यह भी है कि हमारे जीवन से और जुबान से क्षमा नाम का गुण चला गया है।
निश्चित ही अगर आप जीवन में क्षमा करना सीख जाते हैं तो आपके जीवन से कई झंझटों और कई संकटों का स्वत:निदान भी हो जाता है
जय श्रीराम
क्षमा की महत्ता बहुत ही सटीक तरह से बताई गई है।
क्षमा मन को सुख और शांति देता है