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राधा -कृष्ण के वचन

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राधा-कृष्ण के वचन

कान्हा जी!…. अगर मै राधे न होती… तो भी आप मुझे इतना ही प्रेम करते???” श्री राधे ने एक नन्ही बच्ची की तरह एक ओर गर्दन झुकाते हुए पूछा।

कृष्णा जी अपना माखन खाने में बहुत ही व्यस्त थे…जो उन्होंने अभी जल्दी में ही कहीं पड़ोस से चुराया था … उन्होंने राधे की बात पर ध्यान नहीं दिया।

श्रीराधे ने झटपट उनके हाथ से माखन का पात्र छीन लिया….और चिल्लायीं “साँवरिया!!!!….. मै तुमसे बात कर रहीं हूँ….!!!”

“क्या है???…. राधे???….” कृष्णा और भी जोर से चिल्लाये… उनका माखन से लथपथ मुह किसी लंगूर से कम नहीं लग रहा था..

श्री राधे बहुत ही नाराज़ होकर वहां से जाने लगीं… उनका गुलाबी चेहरा गुस्से से लाल हो चला था…”तो ठीक है… मै जा रही हूँ… मुझे दुबारा कभी बुलाना मत !”

कृष्णा ने उनका हाथ पकड़कर पीछे खींच लिया…. “बिलकुल राधे!!! मै तब भी तुम्हे उतना ही प्रेम करता…..अच्छा तुम बताओ…अगर मै कृष्ण ना होकर कोई वृक्ष होता तो???….तब तुम क्या करतीं???”

“तब मै….लता बनकर तुम्हारे चारो और लिपटी रहती….” श्री राधे ने अपने गुस्से को ठंडा करते हुए कहा…

“और अगर मै यमुना नदी होता तो???” कृष्णा ने राधे को मनाने वाली बच्चो की मुस्कान देकर कहा…

“हम्म्म्म…..तब मै… लहर बनकर तुम्हारे साथ साथ बहती रहती…..कान्हा जी!!!” श्री राधे ने उत्तर दिया… उनका गुलाबी रंग वापिस लौट आया था… वे ठुड्डी के नीचे अपना हाथ रखकर अगले प्रश्न की प्रतीक्षा करने लगीं…..

“अच्छा!!!!!उम्म्म…. अगर मै उसकी तरह गौ होता तो???….तो तुम क्या करती??हहहहाहा…..मै गौ….हहहा”……..कृष्ण निकट घास चरती एक गौ की तरफ इशारा करके बोले…

“हाहाहाहा……तो मै घंटी बनकर आपके गले में झूमती रहती… परन्तु आपका पीछा नहीं छोडती….हहाहहाहा……प्राणनाथ….हहाहा….” श्री राधे कान्हा जी के गाल खींचती हुई बोलीं…

फिर अगले कुछ पलों तक वहां शान्ति छाई रही…. केवल यमुना की लहरें और मोर की आवाज़ ही सुनाई देती थी…

श्री राधे ने चुप्पी तोड़ते हुए कान्हा जी से पूंछा… “आप हमें कितना प्रेम करते हैं…कान्हा जी???….मेरा मतलब अगर …हमारे प्रेम को अमर करने के लिए कोई वचन देना हो…तो आप क्या वचन देंगे…???”

कृष्णा ने राधे के कर-कमल चूमते हुए कहा… “मै तुम्हे इतना प्रेम करता हूँ राधे… की जो भी भक्त तुम्हे स्मरण करके ‘रा…’ शब्द बोलेगा… उसी पल मै उसे अपनी अविरल भक्ति प्रदान कर दूंगा….और पूरा ‘राधे’ बोलते ही मै स्वयं उसके पीछे पीछे चल दूंगा…..”

“और मै आज वचन देती हूँ कान्हा जी!!!….कि मेरे भक्त को तो कुछ बोलने की भी ज़रुरत नहीं पड़ेगी… जहाँ भी जिस किसी के ह्रदय में तुम्हारे नाम सच्चा प्रेम होगा… मै स्वयं ज़बरन तुम्हे लेकर उसके पीछे पीछे चल दूँगी….” श्री राधे ने अपने नैनो में प्रेम के अश्रु भरकर कहा…

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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