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पैरासिटामोल

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पैरासिटामोल

कल शरीर में थोड़ी सी थकावट सी थी हल्का सा बुखार लग रहा था सो एक दवा दुकान पर पैरासिटामोल के लिए जाना हुआ….

दुकान वाला इशारे से सभी को सोशल डिस्टेसिंग करते हुए लाइन से आने को बोल रहा था मैं भी अपनी बारी का इंतजार करते हुए आगे बढ़ रहा था मेरे आगे एक बुजुर्ग थे कपड़े के नाम पर नीचे गमछा लपेटे थे और ऊपर एक उधड़ी हुई बनियान चेहरे पर उदासी और लाचारी साफ झलक रही थी।

अपना नम्बर आने पर दुकान वाले से उन्होंने दवाई मांगी गमछे से पैसा निकाले और दे दिए दुकानदार जबतक पैसा वापिस करता वे बगल में खड़े हो गए…

अब मेरी बारी आ गई थी मैने पैरासिटामोल का एक पत्ता मांगा दुकानदार ने कहा …

भाईसाहब…खत्म हो गई ये आखिरी एक ही पत्ता था जो अंकलजी को दे दिया….

लिखवा रखी है कल पता कर लीजिएगा। मैं उदास होकर वहां से निकलने लगा तभी बुजुर्ग ने कहा…मेरे पत्ते से आधा इनको दे दीजिए।

मैं बोला …नही रहने दीजिए, मैं किसी और दुकान से खरीद लूंगा और आपको वैसे भी इसकी जरूरत है।

तभी बुजुर्ग बोले….बेटा एक ही रात में थोड़ी ना सब टेबलेट खा लूंगा सामने वाली फूटपाथ पर मेरी बूढ़ी पत्नी लेटी हुई है। उसको बुखार है एक खाने से ही आज रात भर किसी तरह निकल जाएगी। तुम इसमें से आधी ले लो। तुम्हारा भी काम हो जाएगा आज के लिए….

दुकानदार ने कैंची से काटकर मुझे पांच टेबलेट पकड़ा दी और बोला कि इतने पैसे आप इनको दे दीजिए…

जैसे ही मैने जेब से पैसे निकालकर उनको देने चाहे… उन्होंने लेने से साफ इंकार कर दिया…

वह बोले कि “बेटा अब क्या हम तुमसे इतनी सी दवाई का पैसा लें”

मेरा गला भर आया…. मैं उनके पीछे पीछे चलने लगा सामने सड़क पार करने पर एक झोपड़ी में वे बुजुर्ग घुस गए जिसमे से मद्धम रोशनी आ रही थी।

मुझमे हिम्मत नही हुई कि मैं क्या बोलूं उनको और किस तरह से धन्यवाद दूं। अचानक टीवी पर देखी जाने वाली न्यूज चैनलों की खबरों की याद आ गयी…..

आज जब करोड़ों रुपये कमाने वाले और महल में रहने वाले, दवा का कारोबार करने में लगे हैं, ऐसे वक्त में कोई इंसान, अपने हिस्से की दवा मुझे दे गया।

प्रत्येक विचार एवं भाव या शब्द मानव कोशिकाओं का एक दृढ़ तरंग से तरंगित करती हैं. विचारों पर नियंत्रण रखते हैं उनकी भाषा, आवाज, में भी मधुरता पाई जाती है चेहरा सुन्दर, पवित्र एवं आंखें चमकदार प्रभावशाली दिखती हैं। हमारी सोच ही हमारा असली व्यक्तित्व और व्यवहार है जो भौतिक रूप में बाहर निकल कर लोगों के सामने आती है और उसी प्रकार से समाज में हमें मान सम्मान मिलता है।

हमारी सोच को अनुभवों से प्रभावित न होने दे, सदैव स्वच्छ सकारात्मक सोच रखे..!!

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

1 Comment

  • हमारी सोच ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं

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