प्रसन्नता का राज
एक बार एक संत एक पहाड़ी टीले पर बैठे बहुत ही प्रसन्न भाव से सूर्यास्त देख रहे थे। तभी दिखने में एक धनाढ्य व्यक्ति उनके पास आया और बोला, “बाबाजी! मैं एक बड़ा व्यापारी हूँ। मेरे पास सुख-सुविधा के सभी साधन हैं। फिर भी में खुश नहीं हूँ। आप इतना अभावग्रस्त होते हुए भी इतना प्रसन्न कैसे हैं?
कृपया मुझे इसका राज बताएं।” संत ने एक कागज लिया और उस पर कुछ लिखकर उस व्यापारी को देते हुए कहा, “इसे घर जाकर ही खोलना।
यही प्रसन्नता और सुख का राज है।” सेठ जी घर पहुंचे और बड़ी उत्सुकता से उस कागज को खोला। उस पर लिखा था– जहां शांति और संतोष होता है, वहां प्रसन्नता खुद ही चली आती है। इसलिये सुख और प्रसन्नता के पीछे भागने की बजाय जो है उसमें संतुष्ट रहना ही प्रसन्नता का राज है।
जय श्रीराम

Nice
Jai Shree Ram