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Quotes

जिन्दा हु मै

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रवि को घर जाने की कोई शीघ्रता नहीं थी इसलिए मेट्रो से उतरकर चहलकदमी करता हुआ घर की ओर चल दिया।

दो महीने पहले ही पिता का देहांत हुआ था तब से घर बेगाना लगने लगा था। पहले घर पहुंचने की जल्दी होती थी तो रिक्शा कर लेता था लेकिन अब मन बोझिल रहता था। पिता के कमरे में बेटे ने आधिपत्य जमा लिया था,दो कमरे के फ्लैट में स्थान की मारामारी तो थोड़ी रहतीं थीं। उसने क्षीण स्वर में कहा भी कि इतनी क्या जल्दी है , कुछ समय और उनकी यादों को इस कमरे में बिखरा रहने दो।

पत्नी ने कहा :” समझा करो , बच्चें का बारहवीं का बोर्ड है ,सारा दिन ड्राइंग रूम में पड़ा रहता है। अलग कमरे में एकांत में कुछ पढ़ाई तो हो सकेगी।”

कमरे की कायापलट गई , यकीन नहीं हो रहा था उसे कि कभी पिताजी रात दिन इस कमरे में रहते थे। कुछ दिन बाद पत्नी सकुचाते हुए बोली :” सुनो अगर आपको आपत्ति न हो तो महिला मंडल और किटी पार्टी में जाना शुरू कर दूं।कईं साल से पिताजी बीमार थे इसलिए कोई सामाजिक दायरा नहीं बढ़ाया।अब तो ऐसी कोई बंदिश नहीं है अगर आप कहें तो….।”

रवि ने हां तो कर दी लेकिन मन में विचार आया क्या ये दोनों पिताजी के जाने का इंतजार ही कर रहे थे। लेकिन ऐसा तो नहीं कह सकते, दोनों ने कभी पिताजी का अनादर नहीं किया, हमेशा प्रेम से ही व्यवहार करते थे। पत्नी ने सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

शायद वो दोनों समय के साथ आगे बढ़ रहे थे और वह कहीं ठहर सा गया था। या यह भावनाओं और व्यवहारिकता के बीच की कशमकश थी। उसको लगता उन दोनों का पिताजी से इतना करीब का रिश्ता नहीं था जितना उसका था।

चलते हुए रवि को महसूस हुआ कि सामने जो बुजुर्ग चल रहें हैं वो उसके पिता से मिलती जुलती कद-काठी के हैं। उनके हाथों में कुछ सामान था जिसके कारण उन्हें चलने में परेशानी हो रही थी। रवि उनके पास जाकर बोला :”सामान मुझे दे दीजिए, मैं आपको छोड़ आता हूं।”

पहले तो बुजुर्ग ने उसे ध्यान से देखा फिर अपना झोला उसे पकड़ा दिया।इधर उधर की बातें करते हुए रवि ने उन्हें उनकी सोसायटी तक पहुंचा दिया, उसकी सोसायटी के सामने ही थी। अगले कईं दिन तक यह संयोग बना रहा कि वो बुजुर्ग उसे रास्ते में मिल जाते और दोनों बात करते हुए चलते जातें। रवि को अपने अंदर की बैचेनी कुछ कम लगने लगी। बुजुर्ग महाशय का बेटा विदेश में बस गया था और पत्नी का एक साल पहले देहांत हो चुका था।

एक दिन रवि को आफिस में देर हो गई, सोच रहा था आज मुलाकात नहीं होगी बुजुर्ग महाशय। लेकिन उनको खड़ा देख वह आश्चर्य चकित रह गया। उसको देखते ही वह बोले:”बड़ी देर कर दी बेटा तुमने आज,कब से इंतजार कर रहा था। दस कदम का तुम्हारा साथ जिंदा होने का अहसास दिला जाता है।”

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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