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*देने वाला घाटे मे नहीं रहता*

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देने वाला घाटे में नहीं रहता

प्रकृति का नियम है – “जो देता है वह पाता है, जो रोकता है, वह सड़ता है । छोटी पोखर का पानी घटता, सड़ता और सूखता है, किंतु झरने में सदा स्वच्छता, गतिशीलता बनी रहती है और वह अक्षय भी बना रहता है । जो देने से इनकार करेगा, अजस्र अनुदान पाने की पात्रता से उसे वंचित ही रहना पड़ेगा ।

धरती अपना जीवन-तत्व वनस्पति को देती है । धरती का कोष घटा नहीं, वनस्पति की सड़न से बना खाद और वर्षा का जल उसका भंडार भरते चले आ रहे हैं । धरती की देते रहने की साध उसकी मूर्खता नहीं है । वह जो देती है, प्रकृति उसकी पूरी तरह भरपाई करती रहती है ।

वृक्ष, फल-फूल, पत्ते प्राणियों को देते हैं । जड़ें गहराई से लाकर उनकी क्षति पूर्ति करती है । समुद्र बादलों को देता है, उस घाटे को नदियाँ अपना जल देकर पूरा किया करती हैं । बादल बरसते हैं, समुद्र उन्हें कंगाल नहीं बनने देता । हिमालय अपनी बर्फ गलाकर नदियों को देता है, नदियाँ जमीन को सींचती है । हिमालय पर बर्फ जमने का क्रम प्रकृति ने जारी रखा है, ताकि नदियों को जल देते रहने की उसकी दान वीरता में कमी न आने पाए ।

शिक्षा:-आज का दिया हुआ भविष्य में असंख्य गुना होकर मिलता है और मिलने वाला है, विश्वास रखे कि देने वाला खाली नहीं होता, प्रकृति उसकी भरपाई पूरी कर देती है ।

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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