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जय द्वारिकाधीश

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‘जय द्वारिकाधीश’

7 सितंबर 1965 वो तारीख है जब पाकिस्तान नेवी के कमोडोर एस एम अनवर को जिम्मा सौंपा गया द्वारिकाधीश मंदिर को तबाह करने का । उस वक्त 1965 का युद्ध चल रहा था, पाकिस्तान ने दूसरी बार भारत पर हमला किया था और लाल बहादुर शास्त्री भारत के प्रधानमंत्री थे । इन कठिन परिस्थितियों में पाकिस्तान की नेवी ने लॉन्च किया था मिशन द्वारका, जिसका पहला उद्देश्य था द्वारिकाधीश का मंदिर ।

द्वारिका.. भारत का पश्चिमी छोर है । द्वारिकाधीश मंदिर गुजरात में समुद्र के किनारे मौजूद है और पाकिस्तान का नेवल बेस कराची यहां से सिर्फ 100 किलोमीटर की दूरी पर है ।

7 सितंबर 1965 की रात को पाकिस्तान नेवी के कमोडोर एस एम अनवर ने द्वारिकाधीश मंदिर को टारगेट करके समंदर के अंदर से पाकिस्तानी युद्धपोत से 156 गोले दागे थे ।

पाकिस्तान के कमोडोर एस एम अनवर को लगा कि उसने द्वारिकाधीश के मंदिर को नष्ट कर दिया है । पाकिस्तान की आर्मी को सूचित कर दिया गया कि द्वारिकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर तोड़ दिया गया है । जल्द ही पाकिस्तान के अंदर पाकिस्तान रेडियो ने भी ये घोषणा कर दी द्वारिकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर तोड़ दिया गया है और ये इस्लाम के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है ।

जैसे ही पाकिस्तान का ये दावा भारत पहुंचा । भारत के अंदर लोगों में जबरदस्त आक्रोश फैल गया था । फौरन गुजरात के अफसरों और आर्मी अफसरों को भी द्वारिकाधीश मंदिर भेजा गया तो वहां देखा गया कि द्वारिकाधीश विराजमान हैं और पूजा अर्चना आरती जारी है जो गोले मंदिर परिसर में गिरे थे वो गोले फटे नहीं थे । द्वारिकाधीश में विशेष उत्साह के साथ जय द्वारिकाधीश के नारे जोर जोर से लग रहे थे ।

पाकिस्तान ने बाद में इस बात क जांच की कि आखिर क्यों द्वारिकाधीश मंदिर पर हमला नाकाम रहा तो उन्होंने तीन निष्कर्ष निकाले… पहला… 156 गोले दागे गए थे लेकिन जो गोले मंदिर में गिरे वो फटे नहीं… दूसरा… कुछ गोले समंदर के किनारों पर मौजूद पत्थर की दीवारों से टकराकर या समंदर में गिरकर फुस्स हो गए और तीसरा और चौंकाने वाला निष्कर्ष ये था कि समंदर की सतह अचानक ऊपर की तरफ उठ गई थी जिसकी वजह से युद्धपोत भी ऊपर की तरफ उठा और बहुत सारे गोले मंदिर के शिखर के ऊपर से बिना मंदिर को नुकसान पहुंचाए बाहर गिर गए  ।

इस घटना के बाद पाकिस्तान को द्वारिकाधीश की शक्ति का अहसास हुआ और फिर उसने मंदिर पर उस युद्ध में हमला नहीं किया.

जय श्रीराम

Lalit Tripathi
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