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रश्मों के पीछे का ईश्वर भाव ना भूलें |

#रश्मों के पीछे का ईश्वर भाव ना भूलें #मुहुर्त #आत्मा #ईश्वरीय भाव #मंत्रोच्चारण #हंसी खुशी #पूर्वजों #परिवार बेल #पवित्रता #जय श्री राम

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हम भारतीय हैं | हमारी अपनी संस्कृति हैं | हमारे भारत में हर त्यौहार हैं | हर तिथि में त्यौहार का सा भाव नजर आता हैं | हम किसी खुशी के माहौल में कुछ रस्में मानते हैं | उन जैसे शादियां है, घर में नया मेहमान का आना वगैरह वगैरह | हर कार्य रस्मों- रिवाज के साथ हम करते हैं |

घर में यदि नया बच्चा जन्म लेता है उसे और उसकी माँ को नहलाने का मुहुर्त निकालते हैं | उसी मुहुर्त में नहला कर पूजा की जाती है | बहुत सी रस्में निभाई जाती है | बच्चे को जब थोड़ा बड़ा होता है अन्नप्राशन की रस्म की जाती है | शादी के समय भी रस्मों का भण्डार होता है हमारे परिवारों में | इन सभी रस्मों को निभाते समय एक आत्मा दूसरी आत्मा को अपने जीवन में आने की दिल से स्वीकृति देती है | ईश्वरीय भाव पैदा होता है एक दूजे को अन्तरात्मा से स्वीकार करते हैं पण्डित जी के द्वारा जो मंत्रोच्चारण होता है उन्हीं मंत्रों में ईश्वर विराजमान होकर हृदय तक पहुँचते हैं | ईश्वरीय भाव उत्पन्न होता है | और इसी ईश्वरीय भाव को रखते हुए हंसी खुशी अपनी जिन्दगी बड़ी ही खूबसूरती से निकाल देते थे हम | किन्तु आजकल हर रस्म का मजाक बनाकर रख दिया इसीलिए रिश्ते टिकते ही नहीं | हमारी रस्मों के अन्दर छिपे ईश्वरीय भाव को समझना होगा | बचपन से बड़े होने तक बच्चों के सामने इन सबका जिक्र  करना होगा | अपने पूर्वजों एवं अपनी वंशावली के बारे में बच्चों को बताये उनके द्वारा किये गए समस्त अच्छे कार्यों को कहानी में पिरोकर सुनाए, ताकि वो अपने परिवार बेल को जाने और उनका सम्मान करें। तब ही बच्चों को ईश्वर की महत्ता समझ आएगी और जीवन की पवित्रता समझ आएगी और लव जिहाद समझ आएगा |

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

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