lalittripathi@rediffmail.com
Stories

जिम्मेदारी-भाग लो या भाग लो

# जिम्मेदारी-भाग लो या भाग लो

764Views

सरला की नई-नई शादी हुई थी। ससुराल से 1 महीने बाद जब अपने मायके लौटी तो मां के सामने रोने बैठ गई। आंसू बहाते हुए बोली मां तुमने मुझे किस घर में पटक दिया। वहां तो मेरी कोई इज्जत ही नहीं है ,सारा दिन नौकरानी की तरह रसोई घर में खड़ी रहती हूं। किसी को भी दया नहीं आती, सास ससुर की रोटी सेकना दो, छोटे देवर की रोटियां सेकना, एक नंद है उसकी रोटियां सेकना,आए दिन सासू मां के रिश्तेदार आते रहते हैं।

उन सबके लिए भी मुझे ही चाय नाश्ता खाना वगैरह तैयार करना होता हैं। रोज गंदे कपड़ों के ढेर इकट्ठे हो जाते हैं। आराम ही नहीं मिलता जिंदगी नरक सी बन गई

हैं। नंनद को बिस्तर पर बैठे-बैठे ही सब कुछ चाहिए।

मुझे अपने पति पर तब गुस्सा आई, जब उन्होंने महीने की पूरी तनख्वाह सासू मां के हाथ में सौंप दी और मुझसे कहा तुम्हें जो कुछ भी चाहिए एक पर्ची पर लिख देना, मैं शाम को ड्यूटी से छुट्टी होने पर लेता आऊंगा।

सरला की मां ने कहा -“भाग लो या भाग लो”

तुम्हारे पास दो ही रास्ते हैं। एक तुम जिम्मेदारियों में भाग लो और वहीं रहो और उन सब की सेवा करो क्योंकि वह परिवार भी अब तुम्हारा ही हैं। या दूसरा जिम्मेदारियों से भाग लो। अगर तुम चाहती हो तो तुम अपने पति को किसी किराए के मकान में ले जा सकती हो। वहां तुम्हें किसी का खाना नहीं बनाना पड़ेगा। किसी के कपड़े नहीं धोने पड़ेंगे। पति की पूरी तनख्वाह भी हाथ में ही तुम्हें मिलेगी। लेकिन याद रखना जब तुम्हारे कोई पुत्र होगा और जब वह बड़ा हो जाएगा। उसकी भी शादी होगी। घर में तुम्हारे जब बहू आएगी। उस वक्त, तुम यही चाहोगी कि मेरा बेटा और मेरी बहू मेरे ही साथ रहे और मैं अपने नाती पोतों के साथ खेलूं। प्यास लगने पर मेरे नाती पोते दौड़ कर मेरे पास, मेरे लिए एक गिलास पानी ले आएंगे। कोई ऐनक ढूंढ कर मेरे हाथ में थमा देगा। कोई कहेगा-“दादी जी खाना बन चुका हैं थाली लग गई हैं”। “आओ हम सब मिलकर भोजन करेंगे”

मां ने कहना जारी रखा

जिन कामों को तुम दुख बता रही हो, एक-एक करके गिना रही हो, दरअसल यही जीवन के महत्वपूर्ण क्षण हैं। एक सफल ग्रहणी अपने हर एक कार्यों को सरल बना कर झट निपटा देती हैं। उसका रोना नहीं रोती। दुनिया में जो लोग सफल हुए हैं, वह अपनी जिम्मेदारियों से भागते नहीं, बल्कि अपनी जिम्मेदारियों को बेखूबी निभा लेते हैं। सरला की आंख में आंसू थे। सरला ने अपना थैला उठाया और बोली-” बस मां, मैं समझ गई” मैं चली अपने ससुराल। शाम होने वाली हैं, सासू मां के पैरों में दर्द रहता हैं। उनके घुटनों की मालिश भी करनी हैं। सरला इतना कह कर मुस्कुराती हुई ।ससुराल की ओर चल दी।

जय श्री राम

जय श्री राम

Lalit Tripathi
the authorLalit Tripathi
सामान्य (ऑर्डिनरी) इंसान की असमान्य (एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी) इंसान बनने की यात्रा

8 Comments

Leave a Reply to Sanjay Cancel reply