सुविचार-सुन्दरकाण्ड-143
जय श्री राधे कृष्ण ……. "मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा, जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा, चूड़ामनि उतारि तब दयऊ, हरष समेत पवनसुत लयऊ ।। भावार्थ:- (हनुमान जी ने कहा) हे माता! मुझे कोई चिन्ह (पहचान) दीजिये, जैसे श्री रघुनाथ जी ने...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा, जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा, चूड़ामनि उतारि तब दयऊ, हरष समेत पवनसुत लयऊ ।। भावार्थ:- (हनुमान जी ने कहा) हे माता! मुझे कोई चिन्ह (पहचान) दीजिये, जैसे श्री रघुनाथ जी ने...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि, जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि ।। भावार्थ:- पूँछ बुझा कर, थकावट दूर कर के और फिर छोटा सा रूप धारण कर हनुमान जी श्री जानकी...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "ता कर दूत अनल जेहिं सिरजा, जरा न सो तेहि कारन गिरिजा, उलटि पलटि लंका सब जारी, कूदि परा पुनि सिंधु मझारी ।। भावार्थ:- (शिव जी कहते हैं) हे पार्वती! जिन्होंने अग्नि को बनाया, हनुमान...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "*साधु अवग्या कर फलु ऐसा, जरइ नगर अनाथ कर जैसा, जारा नगरु निमिष एक माहीं, एक बिभीषन कर गृह नाहीं ।। भावार्थ:- साधु के अपमान का यह फल है कि नगर अनाथ की तरह जल...
मिट्टी का खिलौना – एक गांव में एक कुम्हार रहता था, वो मिट्टी के बर्तन व खिलौने बनाया करता था, और उसे शहर जाकर बेचा करता था। जैसे तैसे उसका गुजारा चल रहा था, एक दिन उसकी बीवी बोली कि...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "तात मातु हि सुनिअ पुकारा, एहिं अवसर को हमहि उबारा, हम जो कहा यह कपि नहिं होई, बानर रूप धरें सुर कोई ।। भावार्थ:- हाय बप्पा! हाय मैया! इस अवसर पर हमें कौन बचाएगा ?...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "देह बिसाल परम हरुआई, मंदिर तें मंन्दिर चढ़ धाई, जरइ नगर भा लोग बिहाला, झपट लपट बहु कोटि कराला ।। भावार्थ:- देह बड़ी विशाल, परन्तु बहुत ही हल्की (फुर्तीली) है । वे दौड़ कर एक...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारींं, भईं सभीत निसाचर नारीं ।। भावार्थ:- बन्धन से निकल कर वे सोने की अटारियों पर जा चढ़े । उनको देखकर राक्षसों की स्त्रियाँ भयभीत हो गयीं ।। हरि प्रेरित तेहि...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "बाजहिं ढोल देहिं सब तारी, नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी, पावक जरत देखि हनुमंता, भयहु परम लघु रूप तुरंता ।। भावार्थ:- ढोल बजते हैं, सब लोग तालियाँ पीटते हैं । हनुमान जी को नगर में...
जय श्री राधे कृष्ण ……. "रहा न नगर बसन घृत तेला, बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला, कौतुक कँह आए पुरबासी, मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी ।। भावार्थ:- (पूँछ के लपेटने में इतना कपड़ा और घी - तेल लगा कि) नगर...